नई दिल्ली, 8 सितंबर . पश्चिम बंगाल की ममता सरकार को रविवार को जोरदार झटका लगा. पार्टी से राज्यसभा सांसद जवाहर सरकार ने इस्तीफा दे दिया. उन्होंने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भेजा. उन्होंने लिखा, आपने मुझे राज्यसभा में पश्चिम बंगाल से सांसद के रूप में चुनकर सम्मानित किया है. हमारे राज्य की विभिन्न समस्याओं को केंद्र सरकार के ध्यान में लाने का अवसर देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. लेकिन काफी सोच-विचार के बाद मैंने सांसद पद से इस्तीफा देने और खुद को राजनीति से पूरी तरह अलग करने का फैसला किया है.
उन्होंने आगे लिखा, तीन साल पहले मुझे देश के उच्चतम स्तर पर राजनीतिक विचार और प्रक्रिया का अवलोकन और विश्लेषण करने का अमूल्य अवसर देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. जीवन के अंतिम पड़ाव पर 69 से 70 वर्ष की आयु में कोई भी व्यक्ति किसी विशेष पद के लिए उम्मीदवार के रूप में राजनीतिक क्षेत्र में नहीं उतरता, इसलिए मेरी कभी भी किसी पार्टी पद या किसी अन्य चीज़ के लिए कोई महत्वाकांक्षा नहीं रही.
अपनी सक्रिय भागीदारी का जिक्र भी उन्होंने किया. लिखा, दलगत राजनीति में प्रत्यक्ष भागीदार हुए बिना, सांसद बनने का मेरा एकमात्र उद्देश्य संसद में मोदी और भाजपा सरकारों की निरंकुश और सांप्रदायिक राजनीति को बेनकाब करने के संघर्ष में शामिल होना था. इस संघर्ष में एक छोटा सिपाही होते हुए भी, मैं संसद में कई बहसों में भाग लेने में सक्षम रहा हूं, जिसका प्रचुर प्रमाण संसद टीवी या यूट्यूब पर मिलता है.
मोदी सरकार की सत्तावादी, विभाजनकारी, भेदभावपूर्ण और अलोकतांत्रिक गतिविधियों और नीतियों की स्पष्ट रूप से और कड़ी आलोचना करने में सक्षम होने से मुझे बहुत संतुष्टि मिलती है.
उन्होंने पत्र में आगे लिखा, मेरा विश्वास करें कि इस समय हम राज्य की आम जनता में जो स्वतःस्फूर्त आंदोलन और गुस्से का विस्फोट देख रहे हैं, उसका मूल कारण कुछ पसंदीदा नौकरशाहों और भ्रष्ट व्यक्तियों का बाहुबल है. मैंने अपने जीवन के सभी वर्षों में सरकार के प्रति इतना गुस्सा और पूर्ण अविश्वास कभी नहीं देखा. यहां तक कि जब सरकार कोई जानकारीपूर्ण या सच्चा बयान लोगों के सामने रख रही होती है तो भी लोग उस पर विश्वास नहीं करते.
मैंने पिछले महीने आरजी कर अस्पताल की घृणित घटना के खिलाफ हर किसी की प्रतिक्रिया को धैर्यपूर्वक देखा है. सरकार अब जो दंडात्मक कदम उठा रही है, उसमें देरी हुई है. सभी का मानना है कि अगर भ्रष्ट डॉक्टरों के गिरोह को तोड़ने के लिए समय पर निर्णय लिया गया होता और इस जघन्य घटना में शामिल उच्च पदस्थ अधिकारियों को तुरंत कड़ी सजा दी गई होती, तो राज्य में स्थिति बहुत पहले ही सामान्य हो गई होती.
मेरा मानना है कि जो लोग इस आंदोलन में उतरे हैं, वे विरोध कर रहे हैं इसलिए राजनीतिक नाम का इस्तेमाल कर इस आंदोलन को रोकना उचित नहीं होगा. बेशक विपक्षी दल इस आंदोलन से अपना हित साधने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन आए दिन सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे आम छात्र और लोग इन पार्टियों को अंदर नहीं जाने दे रहे हैं. उनमें से किसी को भी राजनीति पसंद नहीं है, वे केवल मुकदमे और सजा की मांग कर रहे हैं.
अगर हम इस आंदोलन का निष्पक्ष विश्लेषण करें तो पाएंगे कि यह विरोध न केवल ‘अभय’ के पक्ष में है, बल्कि राज्य सरकार और सत्तारूढ़ दल के खिलाफ भी है. इसलिए, तत्काल परिवर्तन की आवश्यकता है, अन्यथा सांप्रदायिक ताकतें इस राज्य पर कब्जा कर लेंगी.
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डीकेएम/केआर