प्रयागराज, 22 मार्च . हर साल चैत्र माह में मनाया जाने वाला शीतला अष्टमी का पावन पर्व इस बार भी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जा रहा है. इसे बसौड़ा नाम से भी जाना जाता है, और इस दिन मां शीतला को बासी भोजन का भोग अर्पित किया जाता है. इस अवसर पर प्रयागराज के प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां कल्याणी देवी मंदिर में तीन दिवसीय वार्षिक मेला शुरू हुआ है.
पंडित श्याम जी पाठक ने से बात करते हुए कहा कि इस मंदिर का काफी महत्व है. यह शक्तिपीठों में गिना जाता है. उन्होंने कहा कि यहां आज मेला लगा है, जो करीब 150 वर्षों से चला आ रहा है. सुबह से ही महिला श्रद्धालुओं की भीड़ लग जाती है. महिलाएं अपने पति और पुत्र के लिए माता की पूजा करती हैं.
21 मार्च से शुरू हुए इस मेले के दौरान मंदिर के कपाट ब्रह्म मुहूर्त में मां की मंगला आरती के बाद श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोले गए. इस समय भक्तों की लंबी कतारें लगी रहीं, जहां लोग मां की एक झलक पाने के लिए सुबह से ही लाइन में खड़े थे. मेले के दौरान प्रत्येक दिन मां का अलग-अलग वस्त्रों और श्रृंगार से पूजन होगा.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शीतला माता को आरोग्य और स्वास्थ्य देने वाली देवी माना जाता है. स्कंद पुराण में वर्णित है कि जो महिलाएं इस दिन श्रद्धापूर्वक शीतला माता का पूजन करती हैं, उनके परिवार और बच्चों का स्वास्थ्य उत्तम रहता है. शीतला अष्टमी के दिन व्रत रखने से शरीर निरोगी रहता है और गर्मी में होने वाली संक्रामक बीमारियों, जैसे चेचक से रक्षा मिलती है.
माता शीतला को शीतलता देने वाली देवी कहा जाता है. इस दिन विशेष रूप से भक्त ठंडा भोजन ग्रहण करते हैं, जिसे शीतल भोजन कहा जाता है, और इस प्रकार वे सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. शीतला अष्टमी का पर्व न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी माना जाता है. इस मेले में दूर-दूर से आए श्रद्धालु श्रद्धा भाव से मां की पूजा-अर्चना कर रहे हैं और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति की कामना कर रहे हैं.
मारा जाता है कि शीतालष्टमी के साथ ही गर्मियों की विधिवत शुरुआत होती है. कई लोग व्रत के पीछे के वैज्ञानिक कारणों का भी उल्लेख करते हैं. जानकारों के मुताबिक यह त्योहार सांकेतिक रूप से बताता है कि इस दिन के बाद से बासी आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए. गर्म पानी से नहीं नहाना चाहिए. शीतल भोजन ग्रहण करना चाहिए. आयुर्वेद के मुताबिक चैत्र महीने से जब गर्मी शुरू जाती है तो शरीर में अनेक प्रकार के पित्त विकार भी प्रारंभ हो जाते हैं. अत: इस समय मनुष्य को चेचक से बचाने का शीतला सप्तमी और शीतलाष्टमी व्रत करने का चलन बढ़ा. आयुर्वेद की भाषा में चेचक को ही शीतला नाम दिया गया. इस दिन की उपासना से शारीरिक शुद्धता, मानसिक पवित्रता और खान-पान की सावधानियों को लेकर संदेश मिलता है.
व्रत में चैत्र कृष्ण अष्टमी के दिन ठंडे पदार्थों का मां शीतला को भोग लगाया जाता है. धर्म ग्रंथों के अनुसार चेचक, घोंटू, बड़ी माता, छोटी माता, दुर्गंधयुक्त फोड़े, नेत्र रोग और शीतल जनित सभी प्रकार के दोष शीतला माता की आराधना से दूर हो जाएं, ऐसा मां से वर मांगा जाता है.
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डीएससी/केआर