मुंबई, 10 दिसंबर . मुंबई के कुर्ला में सोमवार रात हुए बृह्नमुंबई विद्युत आपूर्ति एवं परिवहन (बेस्ट) बस हादसे में 7 लोग के मौत की पुष्टि हो चुकी है. जबकि 30 से ज्यादा लोग घायल हैं. इस हादसे में मृतक अनम शेख के मामा असगर शेख और मृतक कनीस फातिमा के पुत्र आबिद ने अपनों को खोने की दास्तां सुनाई.
असगर शेख ने अनम के बारे में बताते हुए कहा, “मेरी भांजी अनम के साथ मेरे बहनोई का भी एक्सीडेंट हुआ है, मेरी भांजी की मौत हो गई जबकि मेरे बहनोई अस्पताल में भर्ती हैं. उनके सिर में चोट आई है. एक्सीडेंट किस तरह हुआ, इसके बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है. जो लोग वहां मौजूद थे, उन्हें ही पता होगा. मुझे कॉल आया था कि एक्सीडेंट हो गया है और मेरी भांजी का निधन हो गया है. वह पढ़ाई कर रही थी. वह कैटरिंग भी सीख रही थी, खासकर केक बनाना. उसे सामान लेने के लिए मुंबई जाना पड़ा था और कल ही हमने 50,000 रुपये दिए थे ताकि वह अपनी शिक्षा और कारोबार आगे बढ़ा सके. लेकिन, फिर क्या हुआ, भगवान की मर्जी थी कि वह वापस नहीं आई. जब वह स्टेशन पर थी, तो उसने अपने पिता को कॉल किया था और कहा था कि रिक्शा नहीं मिल रहा है, आकर मुझे ले जाओ. वह कुर्ला के हलाऊ पोल में रहती थी.”
उन्होंने आगे कहा, “वह जब सामान लेने गई थी, तो उसकी एक दोस्त भी साथ में थी. उसकी दोस्त को रिक्शा मिल गया, लेकिन अनम को रिक्शा नहीं मिला, क्योंकि वह ज्यादा दूर नहीं थी. फिर उसने कॉल किया कि उसे रिक्शा नहीं मिल रहा है, और उसके पिता गाड़ी लेकर वहां पहुंचे थे. लेकिन काफी देर हो गई, वह घर नहीं आई. तब हमें हादसे की खबर मिली. हमारे भांजे के एक दोस्त ने गाड़ी का नंबर देखा और फिर हमें जानकारी दी. गाड़ी वहीं पड़ी थी, लेकिन लोग उनका पता नहीं लगा पा रहे थे. बाद में जब उनकी तलाश की गई, तो पता चला कि भांजी और उनके पिता अस्पताल में थे और फिर भांजी का निधन हो गया. हमारे परिवार में केवल चार लोग हैं. एक बेटा, एक बेटी और उनके माता-पिता. अब हमारे घर से एक जान चली गई है और हम चाहते हैं कि सरकार इस मामले में उचित कार्रवाई करे. हमें नहीं लगता कि जान के बदले जान का कानून चल रहा है, लेकिन कार्रवाई तो जरूर होनी चाहिए. अगर ऐसा होता, तो लोग उस ड्राइवर को वहीं सजा दे देते. हम दुखी हैं क्योंकि हमारे परिवार की एक सदस्य हमें छोड़कर चली गई.”
अपनी मां को इस एक्सीडेंट में खो चुके आबिद ने कहा, “मेरी मां रोज काम पर जाती थी, उनका काम का समय सुबह आठ बजे का था. लेकिन उस दिन वह एक घंटा लेट हो गई, क्योंकि सुबह थोड़ी देर से उठी थीं. हमें करीब 9.30 बजे कॉल आया कि एक एक्सीडेंट हुआ है. कॉल करने वाले ने कहा कि हम तुरंत अस्पताल आकर स्थिति जानें. हम सब घबराए हुए वहां पहुंचे. घटनास्थल पर अफरा-तफरी मची हुई थी, खून और सामान बिखरा हुआ था, कारों को नुकसान हुआ था. हमने अपनी मां को ढूंढना शुरू किया और मेरे भाई ने सबसे पहले एक शव को देखा, जो बस और कार के बीच था. उस शव को पहचानने में हमें देर नहीं लगी, क्योंकि मेरी मां ने जो साड़ी पहनी हुई थी, वही पहचानने वाली निशानी थी. फिर पुलिस आई और शव को अस्पताल ले गई. वहां पर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.”
उन्होंने कहा, “यह घटनाएं दरअसल प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है, जिसके कारण हमें यह सब सहना पड़ा. मेरी मां वहीं पास के अस्पताल में काम करती थीं, जहां हादसा हुआ. और वह अस्पताल दो मिनट की दूरी पर है. हम वहीं रहते थे, बालाजी मंदिर के पास. मेरी मां की उम्र 63 साल थी और वह 7-8 साल से उस अस्पताल में काम कर रही थी. वह काम पर जा रही थी, जब यह हादसा हुआ. यह पूरी घटना प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है, क्योंकि वहां पर एक पुलिस चौकी, आरटीओ कार्यालय, बीएमसी बोर्ड और बस डिपो है, फिर भी क्या इनकी जिम्मेदारी नहीं बनती कि इन बसों की सही जांच-पड़ताल की जाए? बस ड्राइवर की जांच के बिना ही वह गाड़ी चलने दी जाती है. ऐसा हादसा दिन में होता, तो यह और भी बड़ा हो सकता था, क्योंकि उस इलाके में बच्चे स्कूल जा रहे होते. अब तक इस हादसे में 47 लोग घायल हुए हैं और 6-7 लोग मारे गए हैं, जिनमें मेरी मां भी शामिल हैं.”
उन्होंने आगे कहा, “वहां पर हालात बहुत खराब थे, खून, सामान और चीख पुकार थी. हम जब घटनास्थल पर पहुंचे तो हमने बहुत मुश्किल से अपनी मां की पहचान की. बाद में पता चला कि ड्राइवर की जॉइनिंग एक दिसंबर से हुई थी और उसकी ट्रेनिंग भी पूरी नहीं हुई थी. यह सब भ्रष्टाचार की वजह से हो रहा है. आजकल ड्राइवर बिना सही ट्रेनिंग के बस चला रहे हैं और स्पीड में गाड़ी चलाई जा रही है. अगर आप सीसीटीवी फुटेज देखें, तो साफ दिखेगा कि गाड़ी की स्पीड कितनी थी. अगर इस तरह की गाड़ी की स्पीड बढ़ाई जाती है, तो यह हादसे को और बढ़ा सकती है. प्रशासन को यह समझना चाहिए कि इन बसों के लिए स्पीड लिमिट होनी चाहिए और इमरजेंसी ब्रेक सिस्टम का भी सही इस्तेमाल होना चाहिए. हमारी स्थिति भी बहुत खराब है, हम जैसे-तैसे अपना घर चला रहे हैं. 63 साल की उम्र में मेरी मां ने काम करना शुरू किया था, क्योंकि महंगाई इतनी बढ़ गई थी कि एक आदमी की कमाई से घर का खर्चा नहीं चलता था. अब जब वह काम करने गई और हादसा हुआ, तो प्रशासन से मेरी सिर्फ एक मांग है कि हमें मुआवजा मिले, लेकिन इसके साथ-साथ हमें कुछ सुविधाएं भी चाहिए.”
उन्होंने कहा, “हमने देखा कि अस्पताल में शव को ले जाने के लिए कोई एंबुलेंस नहीं थी. हमें प्राइवेट एंबुलेंस से शव ले जाना पड़ा. अब यह सब काले बाजार का हिस्सा बन गया है और हम चाहते हैं कि प्रशासन इस पर कार्रवाई करे. हमारे लिए यह मुआवजा नहीं है, बल्कि हमें तो कुछ सुविधाएं चाहिए, ताकि इस हादसे के बाद हमारी कुछ मदद हो सके. सरकार से मेरी यह अपील है कि अगर जीते जी हमें कोई मदद नहीं दी, तो कम से कम मरने के बाद ही सही, हमारी मदद करें.”
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पीएसएम/जीकेटी