ऐसे टूटा लोकसभा–विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने का क्रम

नई दिल्ली, 20 सितंबर . नरेंद्र मोदी सरकार ने बार-बार होने वाले चुनावों से देश को मुक्ति दिलाने की दिशा में ‘एक देश, एक चुनाव’ के संबंध में बुधवार को प्रस्ताव पारित कर दिया. इससे एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया गया है. अब इसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किया जाएगा. बीजेपी का दावा है कि देश में एक साथ चुनाव होने से जहां विकास की गति तेज होगी, वहीं सरकारी धन की भी बचत होगी, लेकिन कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल बीजेपी के इस तर्क का विरोध कर रहे हैं.

आजादी से 1967 तक देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते रहे, लेकिन बाद में यह क्रम टूट गया. इसके पीछे की वजह कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दलों का उभार सहित समयपूर्व विधानसभा का भंग होना बताया जाता है. देश में पहली, दूसरी और तीसरी लोकसभा ने अपना कार्यकाल पूरा किया. इसके बाद, 1968 और 1969 में कुछ राज्यों में समयपूर्व विधानसभा के भंग होने से एक साथ चुनाव का क्रम टूट गया. इसकी शुरुआत सबसे पहले केरल से हुई, जहां कम्युनिस्ट पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा द‍ि‍या. लोकसभा के साथ हुए विधानसभा चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी को 126 विधानसभा सीटों में से 60 सीटों पर जीत हासिल हुई. इसके बाद, लेफ्ट ने पांच निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर सरकार बनाई.

1967 में एक साथ हुए लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सियासी मोर्चे पर भारी नुकसान का सामना करना पड़ा था. इसके बाद ही इंदिरा गांधी ने तय कर लिया कि दोनों ही चुनावों के मुद्दे अलग-अलग रहने दिए जाए, ताकि मतदाताओं को अपने तरीके से रिझाया जा सके.

दिसंबर 1970 में लोकसभा भंग होने के बाद इंदिरा गांधी ने 10 हफ्ते में हजारों किलोमीटर की यात्रा की. इस दौरान, उन्होंने 300 से ज्यादा रैलियों को संबोधित किया. उस वक्त 518 लोकसभा सीटों में से इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर) को 352 सीटों पर जीत मिली थी. वहीं, सीपीएम को 25, सीपीआई को 23, जनसंघ को 22 और कांग्रेस (ओ) को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इसके बाद विधानसभा और लोकसभा चुनाव की राहें पूरी तरह से जुदा हो गईं.

इसके बाद आया आपातकाल का दौर. इंदिरा गांधी ने 1975 में देश में आपातकाल घोषित कर दिया. 1977 में हुए चुनाव में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा. मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी. यह देश में केंद्र में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी, लेकिन यह सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. 1980 में लोकसभा के चुनाव हुए. कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाते हुए सत्ता में वापसी की. इस तरह से फिर देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाने का क्रम टूट गया, लेकिन अब एक बार फिर इसे एक साथ कराए जाने की कवायद तेज हो चुकी है. बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस संबंध में प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. इस पर संसद के शीतकालीन सत्र में चर्चा होगी. इसके बाद, एक साथ चुनाव कराए जाने का मार्ग प्रशस्त किया जाएगा.

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