संगमनेर (महाराष्ट्र),12 अप्रैल . महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के अहिल्यानगर में हर साल हनुमान जयंती पर आयोजित होने वाली हनुमान रथयात्रा नारीशक्ति का अनूठा प्रतीक बन चुकी है.
इस रथयात्रा को महिलाएं खींचती हैं, जो ब्रिटिश शासनकाल से चली आ रही एक ऐतिहासिक परंपरा का हिस्सा है. यह परंपरा 1929 में उस साहसिक घटना से शुरू हुई, जब अंग्रेजों की रोक के बावजूद सैकड़ों महिलाओं ने एकजुट होकर रथयात्रा निकाली थी. आज भी यह आयोजन पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है.
इस रथयात्रा की शुरुआत एक विशेष समारोह के साथ होती है, जिसमें पुलिस का लाया ध्वज, ढोल-ताशों की गूंज के बीच रथ पर स्थापित किया जाता है. इसके बाद ही यात्रा औपचारिक रूप से शुरू होती है. यह परंपरा न केवल धार्मिक उत्साह को दर्शाती है, बल्कि सामाजिक समरसता का भी प्रतीक है.
इतिहास के पन्नों में दर्ज 1929 की वह घटना आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. उस समय अंग्रेजों ने रथयात्रा पर पाबंदी लगा दी थी और कई युवकों को गिरफ्तार कर लिया था. 23 अप्रैल 1929 की सुबह, हनुमान जयंती के दिन, मंदिर के चारों ओर पुलिस ने घेराव कर लिया था. अंग्रेजों के दबाव और विरोध के चलते पुरुष पीछे हट गए और अपने घर लौट गए. लेकिन उस विकट परिस्थिति में महिलाओं ने अदम्य साहस का परिचय दिया.
लगभग 200 से 250 महिलाओं ने एकजुट होकर रथ अपने कब्जे में ले लिया. जैसे ही यह खबर फैली, महिलाओं की संख्या बढ़कर 500 तक पहुंच गई. पुलिस ने उन्हें डराने की कोशिश की, बहस की और गिरफ्तारी व मुकदमे की धमकियां दीं. लेकिन महिलाएं अपने इरादों से टस से मस नहीं हुईं. झुंबरबाई अवसक, बंकाबाई परदेशी, लीला पिंगळे जैसी साहसी महिलाओं और युवतियों ने रथ पर चढ़कर हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित की और “बलभीम हनुमान की जय” के जयकारों के साथ रथ खींचना शुरू कर दिया.
इस घटना ने इतिहास रच दिया और तभी से यह परंपरा कायम है. आज यह रथयात्रा नारीशक्ति के उत्सव के रूप में मनाई जाती है, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं और युवतियां उत्साहपूर्वक भाग लेती हैं. यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक सशक्तीकरण और नारी साहस की मिसाल भी प्रस्तुत करता है. यह परंपरा आज भी हर साल हजारों लोगों को एकजुट करती है और महिलाओं के साहस व एकता की कहानी को जीवंत रखती है.
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एकेएस/केआर