समतामूलक समाज की स्थापना में लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर का अद्वितीय योगदान: संवर्द्धिनी न्यास

नई दिल्ली, 25 जून . संवर्द्धिनी न्यास ने बुधवार को दिल्ली के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग परिसर में लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर त्रि-शताब्दी कार्यक्रम का सफलतापूर्वक आयोजन किया.

इस अवसर पर पूर्व न्यायाधीश डॉ. विद्युत रंजन सारंगी, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य विजय भारती, पूर्व सदस्य डॉ. ज्ञानेश्वर मुले, प्रो. लीना गहाने उपस्थित रहे.

मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित लीना गहाने ने अहिल्याबाई होल्कर की प्रशासनिक कुशलता और न्याय नीतियों के बारे में विस्तार से बात की. उन्होंने न्यायप्रिय और दूरदर्शी शासक के रूप में अहिल्याबाई की स्थायी विरासत पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि अहिल्याबाई होल्कर न केवल एक महान प्रशासक थीं, बल्कि एक सम्मानित समाज सुधारक भी थीं, जिन्होंने एक अधिक समतामूलक समाज को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इस कार्यक्रम में दिल्ली राज्य की संवर्द्धिनी न्यास की संयोजक डॉ. राधा जैन ने भी अपने विचार व्यक्त किए, जिन्होंने आज के समय में अहिल्याबाई होल्कर के मूल्यों की निरंतर प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला.

लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर एक प्रसिद्ध मराठा शासिका थीं. अहिल्याबाई होल्कर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चोंडी गांव में हुआ था. वह एक साधारण परिवार से थीं. उनकी शादी मराठा साम्राज्य के होल्कर शासक मल्हार राव होलकर के पुत्र खांडेराव से हुई थी. 1767 में, अपने ससुर मल्हार राव होलकर की मृत्यु के बाद, अहिल्याबाई ने मालवा की राजगद्दी संभाली.

वे 1767 से 1795 तक मालवा क्षेत्र की शासक रहीं. अहिल्याबाई भारत की सांस्कृतिक विरासत की महान संरक्षक थीं. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने मंदिरों और घाटों का निर्माण, नदियों पर पुलों का निर्माण, कृषि का विकास, न्याय व्यवस्था में सुधार, महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना जैसे अहम कार्य किए.

प्रजा के प्रति उनकी करुणा और न्यायप्रियता के कारण उन्हें लोकमाता की उपाधि मिली. अहिल्याबाई को एक प्रगतिशील और दूरदर्शी सोच वाली और समाज को दिशा दिखाने वाली सशक्त महिला के रूप में जाना जाता है. 13 अगस्त 1795 को 70 वर्ष की आयु में अहिल्याबाई का निधन हुआ था.

पीएके/डीएससी