बच्चों में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृत्ति, विशेषज्ञों की राय ‘अभिभावकों के लिए संकेत पहचानना जरूरी’

New Delhi, 22 नवंबर . बच्चों में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति देश में चिंता का विषय बन गई है. हाल के दिनों में दिल्ली, Madhya Pradesh और Rajasthan जैसे राज्यों से ऐसी खबरें आईं जो किसी भी देश और समाज के विकास में बाधक हैं. बच्चों ने दबाव न झेल पाने की दशा में खुदकुशी कर ली. इस मुद्दे को मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट ने बेहद गंभीर मानते हुए अभिभावकों से अपील की कि वे आत्महत्या से जुड़े संकेतों को पहचानें और उस पर काम करें.

पिछले कुछ हफ्तों में कुछ ऐसे मामले सामने आए जिसमें किसी मानसिक दबाव या पीड़ा से गुजर रहे स्कूली छात्र ने खुदकुशी का रास्ता चुना. हाल ही में दिल्ली के राजेन्द्र प्लेस मेट्रो स्टेशन से कूद कर दसवीं में पढ़ने वाले 16 साल के बच्चे ने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली.

वहीं रीवा (Madhya Pradesh) के एक निजी स्कूल में पढ़ने वाले 11वीं के छात्र ने भी आत्महत्या कर ली. उसका सुसाइड नोट भी बरामद किया गया था. वहीं jaipur में तो एक बच्ची ने स्कूल की चौथी मंजिल से कूद कर जान दे दी.

विशेषज्ञों की राय है कि ये बच्चों में बढ़ते मानसिक दबाव का नतीजा है. खासकर शहरी इलाकों में स्थिति जटिल है.

लेडी हार्डिंग कॉलेज में मनोचिकित्सक डॉ शिव प्रसाद ने से बातचीत में माना, “विश्व स्तर पर किशोरों में डिप्रेशन और एंग्जाइटी के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है. लेकिन कई अभिभावक और शिक्षक इसे आलसपन या अरुचि का नाम दे देते हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “शुरुआत में बच्चे में भावनात्मक और व्यवहार संबंधी बदलाव के संकेत दिखने लगते हैं. ये माता-पिता और शिक्षकों के लिए चेतावनी है. अक्सर देखा जाता है कि बच्चा परिवार, दोस्तों या उन गतिविधियों से दूरी बनाने लगता है जिनमें उसे कभी रुचि हुआ करती थी. वो बहुत चिड़चिड़ा हो जाता है, उसे गुस्सा आने लगता है, किसी बात की बहुत फिक्र करने लगता है, और अचानक उसके व्यक्तित्व में कुछ बदलाव दिखने लगता है.”

विशेषज्ञ के अनुसार उसका पढ़ाई से अचानक ही मोहभंग हो जाता है, सिर या पेट दर्द की शिकायत करता है, स्कूल या कोचिंग जाने से बचने की कोशिश करता है, उसका वजन या तो गिरने लगता है या फिर तेजी से बढ़ने लगता है और वो समाज से खुद को अलग-थलग कर लेता है.

दिल्ली के एक जाने-माने अस्पताल में बाल, किशोर और फोरेंसिक मनोचिकित्सक डॉ. आस्तिक जोशी ने को बताया, “हाल ही में ऐसी घटनाएं सामने आईं जिसमें छोटे बच्चों ने खुदकुशी कर ली. ऐसे में यह जरूरी है कि हम युवाओं में आत्महत्या से जुड़े संकेतों को पहचानें, साथ ही बचाव, दखल और इलाज के उपाय करें.”

जोशी ने आगे कहा, “अक्सर, आत्महत्या करने वाला बच्चा या टीनएजर, सुसाइड करने की कोशिश करने से पहले किसी अपने को अपना इरादा बता देता है. इसके अलावा, कोशिश करने से पहले बच्चे का मूड खराब होने या व्यक्तित्व में बदलाव की आशंका बढ़ जाती है. सुसाइड की कोशिश करने से पहले व्यवहार में बदलाव हो सकते हैं, जैसे सोशल दूरी, नशीली दवाओं का ज्यादा इस्तेमाल, बिना सोचे-समझे गुस्सा करना और अपनी चीजें छोड़ देना.”

विशेषज्ञों ने बढ़ते शैक्षिक दबाव और बढ़ती प्रतिस्पर्धा संस्कृति की ओर इशारा किया, जहां बच्चों को माता-पिता या टीचरों को निराश करने का डर रहता है. कम मनोरंजन के साथ लंबे कोचिंग घंटे भी मेंटल हेल्थ को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

अकेलेपन का एहसास करने के अलावा, बच्चों को सामाजिक और साथियों के दबाव का भी सामना करना पड़ता है; वे “फिट” होना चाहते हैं या साथियों की उपलब्धियों की बराबरी करना चाहते हैं. ये तुलनाएं social media के साथ-साथ साइबरबुलिंग से और बढ़ जाती हैं, जो अक्सर बड़ों से छिपी रहती हैं.

विशेषज्ञों ने माता-पिता से एक सुरक्षित इमोशनल स्पेस बनाने की अपील की, जहां वे बच्चों से उनकी भावनाओं के बारे में पूछें, न कि सिर्फ मार्क्स या एकेडमिक्स के बारे में, और जरूरत पड़ने पर प्रोफेशनल मदद लें.

जोशी ने कहा, “लोगों के साथ मिलना जुलना, स्किल-बेस्ड साइकोथेरेपी का इस्तेमाल करना, स्कूलों के साथ मिलकर काम करना, और भविष्य में सुसाइड की कोशिश की संभावना को कम करने के लिए जरूरत के हिसाब से दवाओं का इस्तेमाल करना, इस समस्या को हल करने के लिए उठाए जा सकने वाले संभावित कदम हैं.”

केआर/