सोनीपत, 8 फरवरी . सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरविंद कुमार ने शुक्रवार को ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में फली एस. नरीमन मेमोरियल व्याख्यान देते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को बढ़ावा देता है.
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार ने कहा, “भारत का सर्वोच्च न्यायालय संविधान में निहित मौलिक अधिकारों को बढ़ावा देता है. न्यायपालिका व्यापक कल्याणकारी नीतियों और विकास रणनीतियों के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक न्याय और अधिकारों को सुरक्षित करना चाहती है ताकि राज्य हरसंभव तरीके से न्यूनतम हिस्सा हासिल कर सके. सामाजिक-आर्थिक मानदंडों के आधार पर समाज के कमजोर वर्गों के पक्ष में संवैधानिक संरक्षण सुनिश्चित करना न्यायालय का कर्तव्य है.”
प्रसिद्ध दिवंगत कानूनविद फली एस. नरीमन के योगदान को याद करते हुए न्यायमूर्ति अरविंद कुमार ने कहा, “फली नरीमन न केवल कानून के विशेषज्ञ थे, बल्कि वह कानूनी बिरादरी के विवेक के रक्षक थे, जिनकी अद्वितीय प्रतिभा और वाकपटुता अद्वितीय रूप से मजबूत हृदय के साथ न्याय के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता को भी बरकरार रख सकती थी. उन्होंने हमारे संविधान के आदर्शों को मूर्त रूप दिया, जो निष्पक्षता, साहस और व्यक्ति में अटूट विश्वास की कल्पना करता है और ऐतिहासिक निर्णयों को आकार देता है. उनकी विरासत मानवाधिकारों और न्याय के लिए ऐतिहासिक योगदान से चिह्नित है. मानवाधिकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता केवल न्यायालय तक ही सीमित नहीं थी. शिक्षा के अधिकार पर बहस में भाग लेते हुए, राज्यसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में, उन्होंने टिप्पणी की, मैं उद्धृत करता हूं – ‘एक समाज जो अपने बच्चों को शिक्षा की रोशनी से वंचित करता है, वह अपने लोकतंत्र के भविष्य को धुंधला कर देता है.’ उनके लेखन और भाषणों में अक्सर उनकी यह धारणा झलकती थी कि संवैधानिक नैतिकता को सार्वजनिक नीति का मार्गदर्शन करना चाहिए.”
न्यायमूर्ति अरविंद कुमार के व्याख्यान का शीर्षक था “भारतीय संविधान के 75 वर्ष और भारत का सर्वोच्च न्यायालय : नागरिकों को सशक्त बनाने के लिए मानवाधिकार और सार्वजनिक नीति की भूमिका”, जिसमें अधिकारों, कर्तव्यों और भारत के संविधान के मूल्यों को बनाए रखने में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका पर व्यापक चर्चा की गई.
उन्होंने कहा, “जब हम भारतीय संविधान के 75 वर्ष और सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना का जश्न मना रहे हैं, तो हम इन संस्थानों में निहित परिवर्तनकारी दृष्टिकोण पर विचार करते हैं. फली नरीमन अक्सर कहा करते थे कि संविधान केवल एक दस्तावेज नहीं है. यह हमारे लोकतंत्र की आत्मा है. उन्हें सभी के लिए सम्मान सुनिश्चित करने के इसके वादे पर विश्वास था.
“इस यात्रा के केंद्र में मानवाधिकार और सार्वजनिक नीति का परस्पर संबंध है. सरकार का सही मापदंड संवैधानिक सिद्धांतों को सार्वजनिक नीति में बदलने की उसकी क्षमता में निहित है, जो हर नागरिक का उत्थान करती है. संविधान के निर्माताओं ने व्यावहारिक सोच दिखाई जो अनिवार्य रूप से भविष्योन्मुखी थी, जब कानून के समक्ष समानता के अधिकार को राज्य के नीति के निर्देशक सिद्धांतों से हटाकर मौलिक अधिकारों के अंतर्गत रखा गया था. इस बात पर चर्चा करना जरूरी है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इन मानवाधिकारों को कैसे लागू किया है और इन अधिकारों के कार्यान्वयन को सक्रिय रूप से कैसे बढ़ाया है और साथ ही प्रभावशीलता को भी सुनिश्चित किया है. जीवन के अधिकार के मूल सिद्धांतों को शामिल करने के लिए कुछ प्रावधानों की व्याख्या को व्यापक बनाने में महत्वपूर्ण छलांग लगाई है.”
“भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार की व्याख्या केवल शारीरिक या जीव अस्तित्व के अधिकार के रूप में ही नहीं की है, बल्कि जीवन का आनंद लेने वाले प्रत्येक अंग या क्षमता के उपयोग के अधिकार के रूप में भी की है, जिसमें बुनियादी मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार भी शामिल है. सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार को एक व्यापक और व्यापक अर्थ भी दिया है, जिसमें स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार भी शामिल है, जिसके बिना जीवन लगभग असंभव होगा. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार की व्याख्या भोजन, आश्रय, शिक्षा के अधिकार को शामिल करने के रूप में भी की है. इस प्रकार यह संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति द्वारा नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते के अनुच्छेद छह में सन्निहित जीवन के अधिकार को दिए गए अर्थ के अनुरूप है. सामाजिक-आर्थिक अधिकारों के क्षेत्र में न्यायालयों की भूमिका सीमित हो सकती है. हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विकसित जनहित याचिका और न्यायशास्त्र इस बात का उदाहरण है कि मौलिक अधिकारों की व्याख्या करने में न्यायालय क्या कर सकता है.”
अपने स्वागत भाषण में ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) सी. राज कुमार ने कहा: “हम निस्संदेह देश के सबसे बेहतरीन न्यायविद फली एस. नरीमन की विरासत का जश्न मना रहे हैं. वह देश के सबसे बेहतरीन वकील, मध्यस्थ और सांसद भी हैं. नरीमन ने कई भूमिकाएं निभाईं, लेकिन एक बात जो उन्होंने की, वह यह कि वह सत्ता के सामने सच बोलने के विचार पर अडिग रहे. वह कानूनी पेशे और वास्तव में कानून के नैतिक दिशा-निर्देशक बने रहे. हम इस बात से भी सम्मानित महसूस कर रहे हैं कि स्मारक व्याख्यान सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिष्ठित न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति अरविंद कुमार द्वारा दिया जा रहा है.”
जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के कार्यकारी डीन प्रोफेसर (डॉ.) एस.जी. श्रीजीत ने फली एस. नरीमन के योगदान पर विचार किया और कहा कि उनकी स्मृति में वार्षिक व्याख्यान आयोजित करना सम्मान की बात है.
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एकेजे/एबीएम