New Delhi, 17 सितंबर . 9 साल पहले उरी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया था, जब जम्मू-कश्मीर में पिछले दो दशकों का सबसे बड़ा सैनिक नुकसान हुआ. 18 सितंबर 2016 को जो हुआ, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता है. हमने 18 सैनिकों को खो दिया. 4 आत्मघाती आतंकवादी नियंत्रण रेखा के बहुत पास उरी सेक्टर में स्थित भारतीय सेना के ब्रिगेडर हेडक्वार्टर में घुस चुके थे और भारी जनहानि पहुंचाई.
उरी का दृश्य भयावह था. यह भोर से ठीक पहले का समय था. सुबह लगभग 5.30 बजे 4 कायर और Pakistan के पाले आतंकवादियों ने सोए हुए सैनिकों को निशाना बनाया था. आतंकी करीब 3 मिनट के भीतर एक के बाद एक डेढ़ दर्जन से ज्यादा ग्रेनेड फेंक चुके थे. चारों आतंकवादी एके-47 राइफलें लिए हुए थे. ग्रेनेड हमलों के कारण जल्द ही, चारों ओर आग फैल गई और सैनिकों को अपनी चपेट में ले लिया.
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ ने अपनी किताब ‘इंडियाज ब्रेव्हार्ट्स: अनटोल्ड स्टोरीज़ फ्रॉम द इंडियन आर्मी’ में लिखा, “अभी भोर भी नहीं हुई थी कि फोन की तेज घंटी ने मेरी नींद खोल दी. बारामूला डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) का फोन था. उन्होंने बताया, ‘उरी स्थित हमारे बेस पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया है, और मुझे डर है, महोदय, स्थिति नाजुक है.”
सतीश दुआ ने किताब में लिखा, “मुझे यह बताने की जरूरत नहीं कि यह कितना गंभीर था. अगर आतंकवादी किसी सैन्य अड्डे पर व्यक्तिगत रूप से हमला करते हैं, तो वे संभवतः आत्मघाती मिशन पर थे. और जब कोई व्यक्ति मरने के लिए तैयार होकर आता है, तो वह मरने से पहले ही भारी नुकसान और भारी जनहानि कर देता है. कुछ मिनट बाद आए अगले फोन कॉल ने इसकी पुष्टि कर दी. तीस मिनट बाद हमें सारी जानकारी मिल गई. चार आत्मघाती आतंकवादी नियंत्रण रेखा के बहुत पास, उरी स्थित हमारे अड्डे में घुस आए थे और भारी जनहानि कर दी थी.”
आतंकवादियों ने ब्रिगेडियर हेडक्वार्टर को अपना निशाना और समय बहुत अच्छी तरह चुना था. बटालियन बदलने की प्रक्रिया चल रही थी. एक बटालियन ऊंचाई वाले इलाके में सिर्फ दो सर्दियां ही रह सकती है. इसलिए 10 डोगरा की बटालियन वहां से जाने की तैयारी में थी और उसकी जगह नई बटालियन आने वाली थी. इस स्थानांतरण अवधि के दौरान दोनों बटालियनों के सैनिक कई जरूरी प्रक्रियाओं का पालन करते हैं. इस समय सभी चौकियों पर सैनिकों की संख्या भी सामान्य से दोगुनी होती जाती थी.
उरी बेस पर भी दोनों बटालियनों के सैनिक जमा थे, जिनमें से कुछ को तंबुओं में ठहराया गया था. उस समय सैनिक शिविर में जवान अपने टेंट में सोए हुए थे.
इसलिए उरी बेस आत्मघाती आतंकवादियों के लिए एक अच्छा निशाना साबित हुआ. जब वे बाड़ काटकर शिविर में दाखिल हुए, तब भी अंधेरा था. लेकिन उन्हें जल्द ही पहचान लिया गया और उन पर गोलीबारी की गई. एक आतंकवादी के मारे जाने के बाद भी बाकी तितर-बितर हो गए और सो रहे सैनिकों और जागने वाले सैनिकों पर अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी.
उरी हमले में 18 सैनिक शहीद हो गए और 30 से ज्यादा घायल हो गए. सेना ने चारों आतंकवादियों को मार गिराया, लेकिन तब तक वे भारतीय सेना को भारी नुकसान पहुंचा चुके थे.
खैर, यह अलग बात है कि India ने उरी हमले के बाद Pakistan के पाले आतंकवादियों पर सर्जिकल स्ट्राइक की और 18 जवानों की शहादत का बदला लिया, लेकिन उरी में हुआ बलिदान आज भी देश नहीं भूला है.
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डीसीएच/डीएससी