मोदी सरकार के 11 साल : संस्कृति से गौरव की ओर, हर कदम पर प्रगति की कहानी

नई दिल्ली, 3 मई . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले 11 वर्षों में भारत की सांस्कृतिक यात्रा एक रंग-बिरंगी रंगोली की तरह उभरकर सामने आई है. इसमें परंपरा की गहराई, आधुनिकता की समझ और वैश्विक जुड़ाव का अद्भुत समावेश है. हम्पी जैसे कालातीत धरोहर स्थलों से लेकर योग और आयुर्वेद जैसी प्राचीन विधा को विश्व मंच पर स्थापित करने तक, भारत ने अपनी विरासत को संजोने के साथ-साथ उसे वैश्विक पहचान दिलाई है.

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश में मंदिरों के गलियारों और तीर्थ स्थलों का अभूतपूर्व पुनर्विकास हुआ है. काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, महाकाल लोक उज्जैन, मां कामाख्या मंदिर, राम मंदिर अयोध्या, केदारनाथ धाम और जूना सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार से भारत की आध्यात्मिक आत्मा को एक नई ऊर्जा मिली है. ये परियोजनाएं धार्मिक भावनाओं के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था और पर्यटन को भी प्रोत्साहित कर रही हैं.

तीर्थयात्रा को सुगम बनाने के लिए सरकार ने चारधाम राजमार्ग परियोजना, हेमकुंड साहिब रोपवे और बौद्ध सर्किट विकास जैसी योजनाएं शुरू की हैं. करतारपुर कॉरिडोर ने भारत-पाक सीमा पर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब को भारतीय सिखों के लिए सुलभ बनाया है.

भारत की समावेशी सांस्कृतिक पहचान को ध्यान में रखते हुए प्रसाद योजना के तहत मस्जिदों, चर्चों और अन्य धर्मों के पूजा स्थलों का भी पुनर्विकास किया गया है. स्वदेश दर्शन और हृदय योजनाओं के माध्यम से पर्यटन एवं विरासत शहरों के विकास में समग्र निवेश किया गया है. इस समग्र विकास का परिणाम यह है कि 2024 में भारत में 9.66 मिलियन विदेशी पर्यटक आए और देश ने 2,77,842 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा की आय अर्जित की.

भारत की खोई हुई धरोहरों को वापस लाने के अभियान ने भी गति पकड़ी है. 2013 से पहले, विदेश से भारत को केवल 13 चोरी की गई प्राचीन वस्तुएं वापस की गई थी. हालांकि, 2014 के बाद से अब तक 642 प्राचीन वस्तुएं विभिन्न चरणों में भारत लौटाई गई हैं, जिनमें से अकेले अमेरिका से 578 कलाकृतियां लौटी हैं. यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है.

भारत के राष्ट्र-निर्माताओं को उचित सम्मान देने की दिशा में भी कई उल्लेखनीय कदम उठाए गए हैं. प्रधानमंत्री संग्रहालय, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक, राष्ट्रीय पुलिस स्मारक, जलियांवाला बाग स्मारक और 11 आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय जैसे संस्थान देश की स्मृति में बलिदानों को जीवित रखते हैं. भारत मंडपम और नया संसद भवन भारत की सांस्कृतिक विरासत और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रतीक बनकर उभरे हैं.

‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ अभियान और काशी तमिल संगमम जैसे आयोजनों ने भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के बीच सेतु का काम किया है. महाकुंभ 2025 का आयोजन, जिसमें एक माह में 66 करोड़ से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए, इस बात का प्रमाण है कि भारत में आध्यात्मिक एकता कितनी गहराई से रची-बसी है.

भारत ने योग को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई है. अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस ने दुनिया भर में स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन के प्रति जागरूकता बढ़ाई है. 2024 में उत्तर प्रदेश में 25.93 लाख लोगों ने योग की ऑनलाइन शपथ ली और कई विश्व रिकॉर्ड बनाए गए. 2025 का योग दिवस “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य के लिए योग” थीम के साथ मनाया जाएगा.

आयुर्वेद को भी वैश्विक मान्यता दिलाने के प्रयासों में तेजी आई है. आयुष मंत्रालय ने 24 देशों के साथ समझौते किए हैं और 35 देशों में आयुष सूचना केंद्र स्थापित किए हैं. जामनगर में डब्ल्यूएचओ ग्लोबल ट्रेडिशनल मेडिसिन सेंटर की स्थापना और “हील इन इंडिया” व “आयुष वीज़ा” जैसी पहलों ने भारत को समग्र चिकित्सा के वैश्विक केंद्र के रूप में उभारा है.

संस्कृति के क्षेत्र में भारत की वैश्विक साख को बढ़ाने के लिए मुंबई में विश्व ऑडियो विजुअल एंटरटेनमेंट समिट (WEAVES) 2025 का आयोजन किया गया, जिसमें 100 से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया और 8,000 करोड़ रुपये से अधिक के समझौते किए गए. इस आयोजन ने भारत के रचनात्मक उद्योगों को वैश्विक मंच प्रदान किया.

भारत की यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में भी वृद्धि हुई है. जुलाई 2024 में असम के मोइदम्स को इस सूची में शामिल किया गया, जिससे अब भारत के पास 43 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं.

पीएसके/जीकेटी