New Delhi, 4 अगस्त . नील आर्मस्ट्रॉन्ग, वो इंसान जिन्होंने धरती और चांद के बीच की दूरी मिटा दी. वो क्षण जब उन्होंने चांद को छुआ, इतिहास के पन्नों में सुनहरा अक्षर बन गया.
5 अगस्त 1930 को अमेरिका के ओहायो राज्य में जन्मे नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने बचपन में ही आकाश को अपना सपना बना लिया था. महज 6 साल की उम्र में पहली बार हवाई जहाज में उड़ान भरने के बाद उन्हें यह आभास हुआ कि उनका जीवन आकाश से जुड़ा है. वे बॉय स्काउट्स के सदस्य थे और ओहायो के ब्लूम हाई स्कूल से पढ़ाई की.
आगे की पढ़ाई के लिए वे पर्ड्यू यूनिवर्सिटी गए, लेकिन कोरियन वॉर के दौरान उन्होंने पढ़ाई छोड़कर नौसेना में शामिल होकर युद्धक विमान उड़ाने शुरू किए. युद्ध के बाद पढ़ाई पूरी की और फिर एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री भी हासिल की.
नील का करियर सिर्फ एक पायलट का नहीं था. वे एक शोधकर्ता, इंजीनियर और अंतरिक्ष के शोधार्थी भी थे. उन्होंने कई उन्नत विमानों का परीक्षण किया, जिनमें एक्स-15 रॉकेट प्लेन भी शामिल था, जो अत्यधिक गति और ऊंचाई तक उड़ान भरने वाला विशेष विमान था.
1962 में उन्हें अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने दूसरे बैच के अंतरिक्षयात्रियों में शामिल किया. उनका पहला अंतरिक्ष मिशन जेमिनी-8 था, जहां उन्होंने साथी अंतरिक्षयात्री डेविड स्कॉट के साथ दो अंतरिक्ष यानों को अंतरिक्ष में पहली बार सफलतापूर्वक जोड़ा. यह उपलब्धि अंतरिक्ष विज्ञान के लिए मील का पत्थर साबित हुई.
हालांकि, इतिहास में उनका नाम अमर हुआ अपोलो 11 मिशन के जरिए, जब 1969 में उन्होंने मिशन कमांडर के रूप में चांद की धरती पर पहला कदम रखा. उनके साथ बज एल्ड्रिन और माइकल कॉलिंस भी थे. कॉलिंस यान में ही रहे, जबकि नील और एल्ड्रिन चंद्रमा की सतह पर उतरे. लैंडर का नाम था- “ईगल” और जब नील ने चंद्रमा पर पहला कदम रखा तो उनके शब्द इतिहास बन गए– “यह एक व्यक्ति का छोटा कदम है, लेकिन मानवता के लिए एक विशाल छलांग.”
दोनों अंतरिक्षयात्रियों ने चांद की सतह पर 2 घंटे से ज्यादा समय बिताया, चट्टानें इकट्ठी कीं, प्रयोग किए और फिर तीनों मिलकर पृथ्वी पर सकुशल लौटे.
अपोलो 11 के बाद नील ने नासा को अलविदा कह दिया. 1971 से 1979 तक वे एक कॉलेज में प्रोफेसर रहे और युवाओं को विज्ञान और इंजीनियरिंग की शिक्षा दी.
इसके बाद वे एक व्यवसायी बने, लेकिन अंतरिक्ष और एयरोनॉटिक्स के क्षेत्र से उनका लगाव बना रहा. वे कई महत्वपूर्ण संगठनों से जुड़े रहे, जहां वे नई पीढ़ियों को मार्गदर्शन देते रहे.
25 अगस्त 2012 को 82 वर्ष की उम्र में नील आर्मस्ट्रॉन्ग का निधन हो गया. उनके जाने से एक युग का अंत हुआ, लेकिन उनका सपना, उनका साहस और उनका वह ‘छोटा कदम’ आज भी करोड़ों लोगों को सपने देखने और उन्हें सच करने की प्रेरणा देता है.
चांद पर पहला कदम सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह मानव सभ्यता की उड़ान थी और नील आर्मस्ट्रॉन्ग उस उड़ान के अग्रदूत थे.
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डीएससी/एबीएम