जनता ने हमें सदन में जनकल्याण, प्रगति और संरक्षण के लिए भेजा है : सतीश महाना

लखनऊ/पटना, 20 जनवरी . उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सतीश महाना ने विधायकों की सीटिंग कम होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ से कम हुआ है. डिजिटल माध्यमों से जागरूकता आ रही है. आने वाले समय में विधानसभा में सीटिंग भी बढ़ेगी.

पटना में सोमवार से शुरू हुए दो-दिवसीय 85वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन में ‘संविधान की 75वीं वर्षगांठः संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने में संसद और राज्य विधायी निकायों का योगदान’ विषय पर उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने अपने विचार व्यक्त किए.

उन्होंने कहा कि समय, काल और परिस्थितियों के अनुसार लोग इलेक्टोरल पॉलिटिक्स की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं. हमें वोट कैसे मिलेगा, जो हमारा ध्यान विधायिका की तरफ होना चाहिए, वो शिफ्ट होकर व्यक्तिगत स्वार्थ तक सीमित हो गया है. संविधान हमारे लिए क्या कहता है, उसके अनुरूप क्या करना है, इस पर ध्यान कम है. जब से डिजिटल मीडिया, सोशल मीडिया सुदृढ़ हो रहा है, वैसे व्यक्ति जागरूक हो रहा है. व्यक्ति अपने आप विधायक से पूछता है कि आप विधानसभा में क्यों नहीं बोले हैं. जैसे-जैसे इस प्रकार की जागरूकता बढ़ेगी, वैसे ही विधानसभा की सीटिंग भी बढ़ेगी.

उन्होंने कहा कि सदन अपनी कार्यवाही का स्वायत्त मालिक होता है और अध्यक्ष उसका सर्वाेच्च निर्णयकर्ता होता है. संविधान ने पीठासीन अधिकारियों और विधानसभाओं को बहुत अधिकार और शक्तियां प्रदान की हैं. संविधान निर्माताओं ने विधानसभाओं के संचालन के विस्तृत नियम नहीं बनाए थे, लेकिन संविधान ने पीठासीन अधिकारियों और विधानसभाओं को परिस्थितियों के अनुसार नियम बनाने और संशोधित करने के अधिकार दिए हैं. हम लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की बात तो करते हैं, लेकिन अपने अधिकारों की बात नहीं कर पाते हैं.

उन्होंने कहा कि जब हम संविधान के अनुरूप ‘हम सब भारतीय’ की बात करते हैं, तो इसकी शुरुआत चुने हुए जनप्रतिनिधियों से होती है, इसीलिए आजादी के 75 वर्ष बाद भी जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है कि वे संविधान के अनुरूप जनता के अधिकारों और प्रगति को सुनिश्चित करें. जनता ने हमें सदन में जनकल्याण, प्रगति और संरक्षण के लिए भेजा है. जब हम अधिकारों की बात करते हैं तो उत्साहपूर्वक आगे आते हैं, लेकिन जिम्मेदारियों के मामले में पीछे रह जाते हैं.

विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि संविधान की रचना के समय तकनीक का अभाव था, लेकिन आज के तकनीकी युग में संविधान के मूल स्वरूप और आधुनिक तकनीक के बीच सामंजस्य बनाना अनिवार्य है. पीठासीन अधिकारियों की जिम्मेदारी संविधान की मूल भावना को बनाए रखने और इसे जनकल्याण के लिए उपयोग करने की है. संविधान निर्माताओं ने ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के तहत देश के विकास की कल्पना की थी.

विकेटी/एबीएम