प्रयागराज, 4 दिसंबर . प्रयागराज में साल 2025 में 13 जनवरी से 26 फरवरी तक आयोजित होने वाले महाकुंभ के आयोजन की तैयारियां जोरों पर हैं. अलग-अलग अखाड़ों के द्वारा भूमि पूजन और ध्वजा स्थापित करने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है. इसी बीच ने श्री पंचदशनाम प्राचीन जूना अखाड़ा के बारे में जानकारी हासिल की. शिव संन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा बताया जाता है जिसमें लाखों नागा साधु और महामंडलेश्वर संन्यासी हैं. इनमें से अधिकतर नागा साधु हैं.
जूना अखाड़े की स्थापना उत्तराखंड में की गई थी. जूना अखाड़े को भैरव अखाड़ा भी कहा जाता है. वही जूना अखाड़े के इष्टदेव दत्तात्रेय भगवान हैं. इनका केंद्र वाराणसी के हनुमान घाट पर है. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा का मुख्यालय वाराणसी में स्थित है. इन अखाड़ों के संन्यासियों का कार्य जप-तप, साधना, ध्यान, धार्मिक प्रवचन देना और लोगों को धर्म का मार्ग बताना है. वर्तमान में इस अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरी जी महाराज हैं और अध्यक्ष महंत प्रेम गिरि जी महाराज हैं.
किसी भी अखाड़े में आचार्य महामंडलेश्वर का पद श्रेष्ठ माना जाता है. जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी महाराज हैं. इस अखाड़े से तमाम देशी-विदेशी भक्त जुड़े हुए हैं जिनकी संख्या हजारों लाखों में हैं. जूना अखाड़े के संत अष्ट कौशल महंत योगानंद गिरी ने से बात करते हुए बताया, “श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा अत्यंत प्राचीन और दुनिया का सबसे बड़ा अखाड़ा है. इसका कारण यहां पांच से दस लाख के बीच नागा साधुओं की संख्या है. साथ ही यह शैव धर्मावलंबियों का सबसे बड़ा अखाड़ा भी है. अखाड़े के अंदर नागा संन्यासियों के अलावा महामंडलेश्वर, महंत आदि अन्य पदाधिकारी होते हैं.”
जूनागढ़ की शाखाएं हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और तमाम शाखाएं देश भर में हैं. प्राचीन काल में यह दशनामी अखाड़ा था, फिर दशनामी भैरव अखाड़ा हुआ और फिर उसके बाद जूनागढ़ अखाड़े का गठन हुआ. समय काल के अनुसार इस प्रकार से जैसे-जैसे संख्या बढ़ती गई, तो अखाड़े सात भागों में बढ़ते चले गए. ‘जूना’ का मतलब होता है ‘प्राचीन’.
योगानंद गिरी ने आगे कहा, “हमारे यहां परंपरा में जो संन्यास की दीक्षा होती है, वह हमारे यहां पंच गुरुओं के द्वारा दी जाती है. फिर उसके बाद उसका संस्कार होता है. आचार्य महामंडल ईश्वर के द्वारा संन्यास दीक्षा के तहत मंत्र दिया जाता है.”
योगानंद गिरी ने बताया कि विश्व को एक नया पथ देने के लिए सभी अखाड़े कुंभ मेले में भागीदारी करते हैं और अपने विचारों का मंथन करते हैं. कुंभ सिर्फ स्नान पर्व नहीं है. प्रयागराज का कुंभ बहुत खास है क्योंकि यहां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है. गंगा यमुना तो प्रत्यक्ष संगम है, लेकिन सरस्वती का जो संगम है वह ज्ञान रूप में है, जिसमें हमारे देश-देश के महात्मा संत यहां पर अपने विचारों का मंथन करते हैं और राष्ट्र चेतना को जागृत करते हैं. हमारा देश, विश्व गुरु कैसे बने, सनातन का प्रचार प्रसार कैसे हो और विश्व में शांति कैसे आए, इन सब पर मंथन होता है. इसलिए प्रयागराज का विशेष महत्व माना गया है.
इसके अलावा कुंभ को उसके सही अर्थों में समझना भी अहम है. प्रयागराज का कुंभ महज स्नान पर्व नहीं है. बल्कि विचार पर्व है, जहां पर विचार होता है, गोष्ठियां होती हैं, मानवीय सभ्यता को जीवंत रखने के लिए, मानवीय सभ्यता में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए, सामाजिक, मानसिक कुरीतियों को दूर करने के लिए प्रयागराज में मंथन होता है. क्योंकि प्रयागराज के कुंभ में सरस्वती रूपी नदी संतों के ज्ञान रूपी नदी है. वह नदी गंगा यमुना के साथ जब मिलती है तो फिर मंथन होता है और मंथन एक हमारी प्राचीन परंपरा रही है.
मंथन भारत की प्राचीन मान्यताओं में विशेष स्थान रखता है. जब देवासुर संग्राम हुआ उस समय भी समुद्र मंथन हुआ, जिसके परिणाम से तमाम 14 रत्न निकले, जिसमें से एक अमृत कलश भी निकला. कलश को धन्वंतरि लेकर के आए और उस अमृत कलश को पाने के लिए 12 दिन तक युद्ध चला था. हर तीन दिन बाद एक जगह पर अमृत बूंदे गिरी थी, उसके परिणामस्वरूप, प्रयाग, उज्जैन, नासिक एवं हरिद्वार में चार जगहों पर कुंभ लगता है. लेकिन प्रयाग में ही अमृत का वितरण हुआ है इसलिए प्रयाग का विशेष महत्व है.
योगानंद गिरी ने आगे बताया कि माघ के महीने में सूर्य जब मकर राशि में प्रवेश करते है तो सारे देवी देवता यहां पर उपस्थित होते हैं. सारे देवी देवताओं के आने की वजह से इस तीर्थ को तीर्थो का राजा प्रयागराज भी कहा जाता है. महाकुंभ के दौरान संगम स्नान का महत्व यही है कि इस दौरान संक्रांतियां बनती हैं जैसे मकर संक्रांति होती है, मौनी अमावस्या होती है, ऐसे पर्व बनते हैं, ऐसे पूरे नक्षत्र बनते हैं जिसमें स्नान करने का अनंत गुना फल प्राप्त होता है. प्रयागराज में माघ के महीने में आकर लोग एक महीने तक कल्पवास करते हैं.
वही लोग महाकुंभ आने पर गंगा यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करते हैं. स्नान करने के बाद और फिर भगवत कथा संत वचन को श्रवण करके गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों का समागम हो जाता है. जिससे दैहिक और भौतिक पापों का निवारण होता है और मनोवृत्ति शांत होती है, मनोविकार दूर होते हैं. सनातन धर्म की यही सुंदरता है कि हम स्व कल्याण के लिए नहीं, बल्कि सबके कल्याण के लिए कार्य करते हैं.
जब बात शाही स्नान के समय प्रथम स्नान की बात तो उसमें अखाड़ों की चयन समिति आपसी सामंजस्य के साथ व्यवस्था करती है. किसी में हम प्रथम स्नान करेंगे तो किसी में आप कर लीजिए. अखाड़े की संप्रभुता को देखते हुए ही आपसी सहमति से निर्णय होता है कि प्रथम स्नान कौन करेगा, द्वितीय स्नान और तृतीय स्नान कौन करेगा. आपसी सहमति के साथ ना कोई बड़ा ना कोई छोटा. सबको अवसर मिलना चाहिए.
योगानंद गिरी का मानना है कि इस बार महाकुंभ की तैयारियों में थोड़ी ढिलाई भी देखी गई है. जैसे 14 तारीख नजदीक है लेकिन अभी तक मेला क्षेत्रों में संपूर्ण सड़कों का निर्माण नहीं हो सका, पुल का निर्माण नहीं हो सका, जल की व्यवस्था नहीं हो सकी, पाइपलाइन नहीं डाले जा सके. पर उम्मीद है कि सरकार समय से इन कार्यों को कर लेगी.
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एएस/