शख्सियत दमदार : ललित पाठक हैं हौसले की मिसाल, दोनों पैर गंवाए, हिम्मत रखी बरकरार

प्रयागराज, 23 जून, . अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती. ऐसा ही कुछ साबित करके दिखाया है ललित पाठक ने.

तमाम बच्चों की तरह उत्तर प्रदेश के प्रयागराज स्थित रानीमंडी के रहने वाले ललित पाठक भी क्रिकेटर बनने का सपना देखा करते थे, लेकिन साल 2012 उनके लिए बेहद मुश्किल था. एक ट्रेन हादसे में ललित ने अपने दोनों पैर गंवा दिए. मगर इसके बावजूद कभी अपनी शारीरिक स्थिति को खेल के आड़े नहीं आने दिया.

ललित ने साबित कर दिखाया- पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है, मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है!!

एक ओर इस हादसे के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था, दूसरी तरफ ललित ने हिम्मत बनाए रखी और पेट्रोल पंप पर काम करना शुरू कर दिया. इसके बाद ललित ने एक होटल में भी काम किया. क्रिकेट के जुनून को कायम रखते हुए ललित अपने परिवार को भी आर्थिक रूप से मदद कर रहे हैं.

ललित पाठक ने कुछ वर्ष पहले सोशल मीडिया के जरिए दिव्यांग कंट्रोल बोर्ड ऑफ इंडिया (डीसीसीबीआई) से संपर्क किया. इसके बाद अपने प्रदर्शन के दम पर दिव्यांग क्रिकेट इंटरनेशनल में एक ऑलराउंडर के रूप में अपनी जगह बना ली.

इंटरनेशनल क्रिकेट की शुरुआत करने के बाद कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर क्रिकेट टूर्नामेंट में अपने जौहर को दिखा चुके ललित पाठक के प्रदर्शन को देखते हुए उत्तर प्रदेश व्हीलचेयर क्रिकेट टीम का कप्तान बनाया गया. ललित आज जिस मुकाम पर हैं, वो दर्शाता है कि कैसे उन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत में बदला.

ललित का सपना माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई का है, जिससे विश्व स्तर पर अपने देश का नाम रोशन कर सकें.

ललित का कहना है की दिव्यांगता को कभी शारीरिक कमजोरी ना समझें. उन्होंने सभी दिव्यांग जनों से अपील की है कि अपनी दिव्यांगता को जीवन में नीरसता का कारण न बनने दें. हमें मौका मिले तो हम कोई भी काम कर सकते हैं. हमें जरूरत है तो सिर्फ एक मौके की, जिससे हम अपने आप को साबित कर सकें.

आरएसजी/एएस