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New Delhi, 12 सितंबर . नेपाल में अंतरिम Government के गठन पर अनिश्चितता जारी है. देश में Political उथल-पुथल है और कई इलाकों से अभी भी हिंसा से जुड़ी खबरें आ रही हैं. करीब 70 घंटे हो गए हैं और स्थिति दो कदम आगे और तीन कदम पीछे जैसी है. कहने का मतलब है कि कार्यवाहक Government के गठन पर कुछ भी स्पष्ट नहीं हो सका है.
नेपाल में जेन-जी के आंदोलन के बाद Prime Minister केपी शर्मा ओली से लेकर कई मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया. इसी बीच देश की स्थिति संभालने के लिए नेपाली सेना सामने आई और जल्द से जल्द हालात काबू करने के दावों के साथ ही अंतरिम Government के गठन का भरोसा दिया.
वहीं, अंतरिम Prime Minister के शपथ ग्रहण में एक संवैधानिक बाधा का सामना करना पड़ रहा है. इसके तहत केवल वर्तमान सांसद ही अंतरिम Prime Minister बन सकते हैं.
एक तरफ संविधान का पालन करने और अंतरिम Government गठन के तरीके ढूंढे जा रहे हैं, दूसरी तरफ देश में सेना समर्थित कार्यवाहक Government के शासन को लेकर भी आशंकाएं हैं. माना जा रहा है कि सेना पूरी तरह जेन-जी के समर्थन में है. सेना ने स्पष्ट कर दिया है कि विरोध-प्रदर्शन करने वाली जेन-जी की भविष्य में किसी भी Government में भूमिका होगी.
कार्यवाहक Government के गठन को लेकर स्थिति पूरी तरह साफ नहीं है. एक पक्ष पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के समर्थन में है तो दूसरे पक्ष ने काठमांडू के मेयर बालेंद्र शाह को समर्थन दिया है.
इस आपसी खींचतान में कार्यवाहक Government के गठन की प्रक्रिया लंबी हो रही है और तमाम तरह की आशंकाएं भी बढ़ रही हैं. देश के जैसे हालात हैं, उसे देखते हुए Political विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल लंबे समय तक Political शून्यता के साथ आगे नहीं बढ़ सकता है.
अगर अंतरिम Government बनती है, तो कम्युनिस्ट यूएमएल और नेपाली कांग्रेस जैसी कई अन्य पार्टियां भी उसमें अपने लिए जगह चाहेंगी. हालांकि, समस्या यह है कि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि जेन-जी इसे स्वीकार करेगा.
दूसरी ओर, सेना भी देश में निर्णायक परिवर्तन चाहती है और उसने साफ कर दिया है कि भविष्य में जिस Government का गठन होगा, उसमें उन लोगों को भी स्पष्ट भूमिका देनी होगी, जिन्होंने नेपाल में बदलाव के लिए आंदोलन का रास्ता चुना. जो लोग राजशाही की वापसी का समर्थन कर रहे थे, वे भी आज इस विचार में शामिल हैं. हालांकि, नेपाल पर नजर रखने वालों का कहना है कि राजशाही की वापसी की संभावना बहुत कम है, क्योंकि इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी.
नेपाल के मौजूदा हालात पर नजर रखने वालों का दावा है कि यहां राजशाही वापस आने की संभावना फिलहाल नहीं दिख रही है. वहीं, खुफिया एजेंसियों को डर है कि काठमांडू, विराटनगर और पोखरा तक सीमित आंदोलन आने वाले समय में ग्रामीण इलाकों में भी फैल सकता है, जिससे देश की स्थिति काफी विकट और डरावनी होने की संभावना है.
अगर प्रदर्शन और हिंसा लंबे समय तक जारी रही तो इसका सीधा असर नेपाल की अर्थव्यवस्था और पर्यटन उद्योग पर पड़ेगा. वहीं, आम जनता को भी भारी कीमत चुकानी होगी.
मौजूदा समय में एक विकल्प यह है कि संसद भंग होने पर अनुच्छेद 273 के तहत आपातकालीन स्थिति घोषित कर दी जाए. इसके अलावा, President अनुच्छेद 76 और 77 के तहत किसी को भी नियुक्त कर सकते हैं. किसी तटस्थ व्यक्ति की नियुक्ति तभी हो सकती है, जब कोई भी पार्टी बहुमत वाली Government न बना पाए.
सेना जेन-जी का समर्थन तो करती है, लेकिन उसने यह स्पष्ट कर दिया है कि उसे सैन्य तख्तापलट में कोई दिलचस्पी नहीं है. वह जल्द से जल्द समाधान चाहती है ताकि कानून-व्यवस्था बहाल हो सके.
नेपाली सेना के पास फिलहाल इतनी शक्ति है कि वह Political दलों को एक समझौते पर पहुंचने और अंतरिम प्रमुख के रूप में एक उपयुक्त उम्मीदवार खोजने के लिए मजबूर कर सके.
यह एक संभावना है, लेकिन इस फैसले को चुनौती देने के लिए अन्य Political दलों के अदालत का दरवाजा खटखटाने का भी खतरा है.
अभी इन चुनौतियों से निपटने के लिए, संविधान संशोधन भी संभव नहीं है, क्योंकि इसे लागू करने के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी. मौजूदा हालात को देखते हुए यह पूरी तरह असंभव प्रतीत होता है.
अगर आपातकाल की घोषणा की जाती है तो इसके अन्य परिणाम होंगे और स्थिति ज्यादा खराब हो सकती है. इन सबको देखते हुए एकमात्र विकल्प अंतरिम प्रमुख के रूप में एक सर्वसम्मत प्रत्याशी का चयन करना है और इसके लिए सभी पक्षों का एकमत होना बेहद जरूरी है.
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एबीएम/