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New Delhi, 29 अक्टूबर . राजनीति शह-मात का खेल है, लेकिन सियासत में ‘चाणक्य’ वही कहलाता है, जिसकी चाल सफलता का इतिहास लिखती है. India की वर्तमान राजनीति में हर पार्टी के पास अलग-अलग ‘चाणक्य’ हैं. यह केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा में भी है, लेकिन पार्टी के अंदर पहले ‘चाणक्य’ कहे गए प्रमोद महाजन, जिन्हें खुद अटल बिहारी वाजपेयी ‘लक्ष्मण’ कहा करते थे. प्रमोद महाजन वह नेता थे, जो अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के दौर में भाजपा की सेकेंड लाइन में खड़े हुआ करते थे.
मौजूदा परिदृश्य में भाजपा का यह स्वर्णिम काल कहा जा सकता है, लेकिन गुजरे दौर में पार्टी ने अनेकों उतार-चढ़ाव देखे. उस समय पार्टी के ‘लक्ष्मण’ प्रमोद महाजन ही थे, जो संकटमोचक बने. अटल बिहारी वाजपेयी का Prime Minister बनना हो, लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा हो, Maharashtra में शिवसेना से गठबंधन हो या नया ‘शाइनिंग इंडिया’ का मंत्र देना, ये सब बातें प्रमोद महाजन के जिक्र के बिना अधूरी हैं.
30 अक्टूबर 1949 को महबूबनगर (तेलंगाना) में जन्मे प्रमोद महाजन ने पत्रकार से लेकर भाजपा नेता बनने का सफर तय किया था. स्कूली समय में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ाव हो चुका था. 1970 के दशक में पहले पत्रकार (संघ के मराठी अखबार ‘तरुण भारत’ में काम) के तौर पर और फिर प्रचारक (1974) बनकर उन्होंने संघ में अपनी जगह बना ली थी.
हालांकि, 1975 में आपातकाल लगा तो उन्हें भी जेल की यात्रा पर जाना पड़ा. उसी समय में पत्रकारिता के साथ-साथ राजनीति का जुनून चढ़ रहा था. प्रमोद महाजन की सक्रियता ने भाजपा में उनके लिए रास्ते बनाए और यहां से आगे उनका एक नया सफर शुरू हुआ था.
आगे चलकर उनकी सियासी समझ और ईमानदारी ने उनके नाम को राजनीति की बुलंदियों तक पहुंचाने का काम किया. उन्होंने कम समय में ही तेजी से राजनीति में तरक्की की. 1978 में वे Maharashtra राज्य इकाई के महासचिव बनाए गए. 1983 में वे पार्टी के अखिल भारतीय सचिव थे और फिर 1986 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने.
उसी समय में देश में राम मंदिर आंदोलन जोर पकड़ने लगा था. भाजपा की अपनी तैयारी थी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं के हाथ में बागडोर थी. कहा जाता है कि 1983 में जब चंद्रशेखर ने पदयात्रा की तो राम मंदिर आंदोलन के लिए आडवाणी ने भी ऐसी ही पदयात्रा निकालने का मन बनाया था. उस समय प्रमोद महाजन की राय ने आडवाणी को एक नया रास्ता दिखाया और पदयात्रा की जगह रथयात्रा की तैयारी की गई. प्रमोद महाजन ने मेटाडोर को रथ में बदल दिया था और उसे ‘रामरथ’ नाम दिया गया. तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक के लिए रथयात्रा की थी, जिसमें बड़ी भूमिका प्रमोद महाजन ने निभाई.
यह रथयात्रा भाजपा के लिए एक संजीवनी जैसी थी. आने वाले आम चुनावों में भाजपा का जनसमर्थन लगातार बढ़ता गया. 1996 के आम चुनावों में भाजपा को Lok Sabha में 161 सीटें प्राप्त हुईं और प्रमोद महाजन भी अपना पहला Lok Sabha चुनाव जीतकर संसद पहुंच गए थे. अटल बिहारी वाजपेयी Prime Minister बनाए गए तो महाजन रक्षा मंत्री बने. Government सिर्फ 13 दिन चल गई. इसका दुख भाजपा में सबको था और उस समय अटल बिहारी वाजपेयी ने भी संसद में ऐतिहासिक भाषण दिया था.
इसी दौरान प्रमोद महाजन के लिए एक परीक्षा की घड़ी थी. Gujarat में भाजपा के दो कद्दावर नेताओं के बीच दरार आ चुकी थी. कहा जाता है कि उस वक्त आडवाणी ने प्रमोद महाजन को सुलह कराने का जिम्मा सौंपा, जिसमें वे सफल होकर लौटे. इस तरह 1995-96 में वे भाजपा के संकटमोचक बने.
दो साल के बाद 1998 में भाजपा को फिर से सत्ता में आने का मौका मिला था. पार्टी ने आम चुनावों में 182 सीटों पर जीत दर्ज की थी. उसी बीच भाजपा की अगुवाई में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का गठन हुआ, जिसमें जयललिता के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक भी इसका हिस्सा बनीं. वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की Government ने शपथ ली, लेकिन जयललिता की पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया, जिस कारण Government Lok Sabha में विश्वासमत के दौरान एक वोट से गिर गई.
इसके पीछे वह अनैतिक आचरण था, जिसमें Odisha के तत्कालीन कांग्रेसी Chief Minister गिरधर गमांग ने पद पर रहते हुए भी Lok Sabha की सदस्यता नहीं छोड़ी और विश्वासमत के दौरान Government के विरुद्ध मतदान किया. इस आचरण के कारण ही देश को दोबारा आम चुनावों का सामना करना पड़ा. 1999 में हुए चुनावों में फिर से भाजपा को 182 सीटें मिलीं, लेकिन एनडीए गठबंधन बहुमत का आंकड़ा छूने में सफल रहा. Government बनाने के लिए पहली बार 20 पार्टियों से ज्यादा सहयोगियों को साथ लाया गया था. इसमें अहम रोल प्रमोद महाजन का था.
जब एनडीए बनने की बात शुरू हुई तब कुछ घंटों में ही प्रमोद महाजन ने नेताओं से बातचीत शुरू की. प्रमोद महाजन कुछ घंटों में ही ममता बनर्जी, जयललिता और आंध्र से चंद्रबाबू नायडू से बात कर चुके थे, जो सफल थी. Government बनने तक प्रमोद महाजन इन नेताओं से संपर्क में बने रहे. लगातार इस काम में जुटे रहे कि गठबंधन में कोई बाधा न आए. इस घटनाक्रम के बारे में जितेंद्र दीक्षित ने अपनी किताब ‘बॉम्बे आफ्टर अयोध्या’ में लिखा था.
इस Political उतार-चढ़ाव में प्रमोद महाजन की भूमिका कम नहीं हुई थी. उन्होंने Prime Minister अटल बिहारी वाजपेयी के Political सलाहकार से लेकर संचार मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री तक कई जिम्मेदारियां निभाईं.
तमाम समाचार लेखों में जिक्र मिलता है कि 2004 में समय से पहले चुनाव कराने के पीछे भी प्रमोद महाजन थे, जिनके हाथ में भाजपा के हाईटेक प्रचार कार्य की बागडोर सौंपी गई थी. उसी समय वे ‘इंडिया शाइनिंग’ जैसे नारे भाजपा के लिए लेकर आए थे. हालांकि, यह अलग बात है कि उस चुनाव में पार्टी और एनडीए को नुकसान उठाना पड़ा.
इसके बाद दिसंबर 2005 में भाजपा की रजत जयंती का आयोजन हुआ. जिम्मेदारी प्रमोद महाजन को ही सौंपी गई थी. यह कार्यक्रम प्रमोद महाजन के लिए यादगार बना, क्योंकि आयोजन के अंत में अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें ‘लक्ष्मण’ का खिताब दिया था. Maharashtra में बालासाहेब ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना और भाजपा के बीच गठबंधन में भी प्रमोद महाजन की भूमिका रही.
हालांकि, मई 2006 में भाजपा के ‘संकटमोचक’ प्रमोद महाजन की जिंदगी अचानक थम गई. 22 अप्रैल 2006 को सुबह लगभग 7.30 बजे प्रमोद महाजन को गोली मारी गई थी. यह हमला करने वाला कोई और नहीं, बल्कि उनका छोटा भाई प्रवीण महाजन था. लगभग 13 दिन बाद 3 मई को प्रमोद महाजन ने इस दुनिया को छोड़ दिया.
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डीसीएच/डीकेपी