दिल्ली का शेर और छत्तीसगढ़ में सुशासन के सूत्रधार, मदन लाल खुराना और रमन सिंह का जीवन सेवा और संघर्ष की मिसाल

New Delhi, 14 अक्टूबर . एक ओर Pakistanी सरहद से शरणार्थी बनकर आए ‘दिल्ली का शेर’, जो अपनी एक पुकार पर राजधानी को थाम लेते थे. दूसरी ओर, ग्रामीण छत्तीसगढ़ के एक आयुर्वेदिक चिकित्सक, जो गरीबों के ‘डॉक्टर साहब’ से सीधे Chief Minister की गद्दी पर विराजमान हो गए. मदन लाल खुराना और डॉ. रमन सिंह दोनों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वे स्तंभ हैं, जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी.

जब भाजपा अपना स्थापना दिवस मना रही है, इन दो दिग्गजों की कहानियां प्रेरणा का स्रोत बनती हैं—एक संघर्ष की आग में तपे शेर की, तो दूसरी शांत क्रांति की लहर की.

मदन लाल खुराना का जन्म 15 अक्टूबर 1936 को ब्रिटिश India के लायलपुर (अब Pakistan का फैसलाबाद) में हुआ. पिता एसडी खुराना और मां लक्ष्मी देवी के सान्निध्य में उनका बचपन बीता, लेकिन 1947 का बंटवारा सबकुछ उजाड़ गया. मात्र 11 वर्ष की आयु में परिवार के साथ दिल्ली के कीर्ति नगर शरणार्थी शिविर पहुंचे खुराना ने वहां की कठिनाइयों को अपनी ताकत बनाई. दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ी मल कॉलेज से स्नातक और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की. यहीं छात्र राजनीति की नींव पड़ी.

1959 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के महासचिव बने. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ाव ने उन्हें भाजपा का मजबूत कंधा दिया. 1970 के दशक में खुराना दिल्ली भाजपा के चेहरे बन चुके थे. उन्हें ‘दिल्ली का शेर’ कहा जाने लगा, क्योंकि उनकी एक आवाज पर सड़कें थम जातीं. डीटीसी किराया बढ़ा तो दिल्ली बंद, दूध महंगा हुआ तो फिर बंद, खुराना की ये रणनीतियां विपक्ष को कांपने पर मजबूर कर देतीं.

1977-80 तक दिल्ली के कार्यकारी पार्षद रहे, फिर महानगर पार्षद बने. दिल्ली में वे भाजपा के पहले Chief Minister बने. तीन वर्षों (1993-96) के कार्यकाल में उन्होंने दिल्ली मेट्रो की डीपीआर को हरी झंडी दी, जो आज राजधानी में सरपट दौड़ रही है. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने शहरी विकास, बुनियादी ढांचे और शरणार्थी लोगों के कल्याण पर विशेष ध्यान दिया, लेकिन हवाला कांड में नाम आने पर 26 फरवरी 1996 को इस्तीफा देना पड़ा.

उसके बाद Lok Sabha सदस्य बनने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की Government में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री बने. 2004 में Rajasthan के Governor के रूप में सेवा दी. 2005 में एलके आडवाणी की आलोचना पर पार्टी से निष्कासित हुए, लेकिन उसी वर्ष वापसी हुई. 27 अक्टूबर 2018 को 82 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ, लेकिन दिल्ली की सड़कों पर उनकी गूंज आज भी सुनाई देती है.

अब बात छत्तीसगढ़ के उस सौम्य डॉक्टर की, जिन्होंने 15 वर्षों तक राज्य की कमान संभाली. डॉ. रमन सिंह का जन्म 15 अक्टूबर 1952 को कवर्धा (अब कबीरधाम) जिले के ठाठापुर गांव में एक किसान परिवार में हुआ. पिता ठाकुर विघ्नहरण सिंह और मां सुधा देवी सिंह की संतान रमन ने बीएएमएस (आयुर्वेद) की डिग्री ली और कवर्धा में प्रैक्टिस शुरू की. गरीबों का मुफ्त इलाज करने वाले ‘डॉक्टर साहब’ जल्द लोकप्रिय हो गए. राजनीति में प्रवेश 1970 के दशक में भारतीय जनसंघ के युवा सदस्य के रूप में हुआ. 1976-77 में सार्वजनिक जीवन की शुरुआत, 1983-84 में कवर्धा नगरपालिका के पार्षद बने.

साल 1990-93 में Madhya Pradesh विधानसभा के सदस्य रहे, फिर 1999 में राजनांदगांव से Lok Sabha पहुंचे. अटल Government में वाणिज्य व उद्योग राज्यमंत्री बने. छत्तीसगढ़ गठन के बाद 2003 के चुनावों में भाजपा की जीत पर 7 दिसंबर को वे राज्य के दूसरे Chief Minister बने. उसके बाद 2008 और 2013 में भाजपा की जीत के बाद सीएम की कुर्सी पर वो 15 सालों तक काबिज रहे.

Chief Minister हाउसिंग मिशन से लाखों घर बने, देवभोग योजना से किसानों को समर्थन मिला. सूचना क्रांति और आजीविका कॉलेजों की स्थापना से युवाओं को सशक्त किया. भ्रष्टाचार विरोधी छवि और साफ-सुथरी शासन ने उन्हें छत्तीसगढ़ का सबसे लंबे समय तक सीएम बना दिया.

2018 में कांग्रेस की भूपेश बघेल Government ने सत्ता हथियाई, लेकिन 2023 में भाजपा की वापसी में रमन सिंह की भूमिका अहम रही. अब वह मौजूदा समय में छत्तीसगढ़ विधानसभा अध्यक्ष के रूप में महत्वपूर्ण दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं.

मदन लाल खुराना का साहस दिल्ली की राजनीति को आकार देता रहा, तो वहीं रमन सिंह की नीतियां छत्तीसगढ़ को समृद्ध बनाती रहीं. आज जब राजनीति में नैतिकता की बहस छिड़ी है तो ये दोनों नाम याद दिलाते हैं कि सियासत में जनता के लिए संघर्ष और उनकी सेवा ही असली शक्ति है.

एकेएस