सुप्रीम कोर्ट और भारत के मौलिक अधिकारों की यात्रा सतत संघर्षपूर्ण रही : एसजी तुषार मेहता

सोनीपत, 28 मार्च . भारत के सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता का कहना है कि मौलिक अधिकारों की यात्रा सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच एक सतत संघर्ष, एक सतत लड़ाई की कहानी है.

तुषार मेहता ने ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी (जेजीयू) के जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल में ‘मौलिक अधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट की यात्रा’ विषय पर न्यायमूर्ति पीएन भगवती मेमोरियल लेक्चर दिया.

तुषार मेहता ने अपने संबोधन के दौरान याद दिलाया, “यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि 1935 का भारत सरकार अधिनियम भारत के संविधान के लिए मूलभूत ढांचा था. हम एक राष्ट्र के रूप में भाग्यशाली हैं कि हमारे दूरदर्शी संस्थापक पिता और माताओं ने दुनिया के सबसे खूबसूरत संविधानों में से एक का मसौदा तैयार किया. भारत सरकार अधिनियम 1935 में मौलिक अधिकारों पर कोई अध्याय नहीं था. आज, मौलिक अधिकारों को संविधान में गहराई से शामिल किया गया है कि कोई भी देश ऐसे कानून नहीं बनाएगा जो मौलिक अधिकारों के तहत दिये अधिकारों को छीनते हों या उनका उल्लंघन करते हों.”

तुषार मेहता ने कहा, ”ऐसे उदाहरण हैं जब बहुसंख्यकवादी सरकारों ने मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की कोशिश की, लेकिन आज ये अधिकार बुनियादी ढांचा का हिस्सा हैं.”

तुषार मेहता ने शंकरी प्रसाद से लेकर केएस पुट्टास्वामी के फैसले तक के मौलिक अधिकारों की विकासवादी कहानी को अदालत के अंदर और बाहर के कई किस्सों के जरिए सुनाया. उन्होंने इस योजना में न्यायमूर्ति भगवती की भूमिका को भी बताया. न्यायमूर्ति भगवती और मिनर्वा मिल्स के फैसले के साथ ही मौलिक अधिकारों पर कानून काफी हद तक व्यवस्थित हो गया.

इस अवसर पर एसजी तुषार मेहता का स्वागत करते हुए ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के संस्थापक कुलपति प्रोफेसर डॉ. सी. राज कुमार ने कहा, ”हम न्यायाधीश पीएन भगवती मेमोरियल लेक्चर देने के लिए सहमत होने और हमारे विश्वविद्यालय को उनके निरंतर प्रोत्साहन और समर्थन के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के आभारी हैं.”

उन्होंने आगे कहा कि न्यायमूर्ति पीएन भगवती एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत में कानून और न्याय की सीमाओं को पार किया तथा दुनिया में उनके योगदान के लिए भी उन्हें पहचाना गया. उन्होंने कई सालों तक संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति के हिस्से के रूप में कार्य किया और वे विश्व में राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के विकास के लिए भी जिम्मेदार थे.

आज हम न्यायमूर्ति पीएन भगवती की विरासत का सम्मान कर सकते हैं. हमें विश्वास है कि यह लेक्चर मौलिक अधिकारों को कायम रखने में भारत के सुप्रीम कोर्ट की यात्रा पर सार्थक संवाद और आत्मनिरीक्षण के लिए उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा.

विवि के प्रोफेसर डॉ. एसजी श्रीजीत ने कहा, ”न्यायमूर्ति भगवती बेजुबानों की आवाज थे. वंचित लोगों के प्रतिनिधि थे. इसने उन्हें अदालत के पत्र-संबंधी क्षेत्राधिकार के आह्वान के माध्यम से जनहित याचिकाओं का चैंपियन बना दिया. उनमें यह स्वीकार करने की मानसिकता थी कि आपातकाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट बेहतर कार्य कर सकता था. एडीएम जबलपुर में लिए गए पद के लिए उनका अपराध बोध इतना गहरा था कि उनमें ‘अपराध स्वीकार करने’ का साहस था. कानून की शक्ति और न्यायपालिका के आदेश में उनका अटूट विश्वास था.

जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल की एसोसिएट प्रोफेसर और एसोसिएट डीन डॉ. खुशबू चौहान ने परिचय भाषण देते हुए कहा, ”अपने पूरे इतिहास में, भारत के सुप्रीम कोर्ट को संविधान में निहित मौलिक अधिकारों को बनाए रखने का गंभीर कर्तव्य सौंपा गया है. इस संबंध में इसकी यात्रा कई मील के पत्थर, चुनौतियों और विजय से चिह्नित हुई है, जिसने न केवल राष्ट्र के कानूनी परिदृश्य को, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के ताने-बाने को भी आकार दिया है.”

भारतीय कानून क्षेत्र के दिग्गज न्यायमूर्ति पीएन भगवती ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश और मुख्य न्यायाधीश दोनों के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके दूरदर्शी फैसलों और न्याय के प्रति अटूट प्रतिबद्धता ने भारत के न्यायशास्त्रीय परिदृश्य पर एक अविश्वसनीय छाप छोड़ी है, जो न्यायविदों, वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की पीढ़ियों को प्रेरित करती है.

प्रोफेसर सुरभि भंडारी सहायक प्रोफेसर और सहायक डीन, जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल ने विश्वविद्यालय की ओर से धन्यवाद ज्ञापन दिया.

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