New Delhi, 10 सितंबर . उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले स्थित अकबरपुर में साल 1900 में जन्मे नीम करोली बाबा का असली नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था. उन्होंने 17 साल की उम्र में ज्ञान प्राप्त कर ली थी, जिसके बाद उन्होंने संन्यास ले लिया. हनुमान जी के अवतार माने जाने वाले नीम करोली बाबा ने 11 सितंबर 1973 को उत्तर प्रदेश के वृंदावन में समाधि ली थी. आइए नीम करोली बाबा के चमत्कारों के बारे में जानते हैं.
देश-विदेश में प्रसिद्ध नीम करोली बाबा के भक्तों और श्रद्धालुओं की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. श्रद्धालु नैनीताल के करीब स्थित कैंची धाम में नियमित तौर पर बाबा के मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं. उनके भक्तों में एप्पल के मालिक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्क और हॉलीवुड एक्ट्रेस जूलिया रॉबर्ट्स शामिल हैं.
नीम करोली बाबा हमेशा कंबल ओढ़ा करते थे, इसलिए श्रद्धालु उन्हें आज भी कंबल चढ़ाते हैं. रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) की किताब ‘मिरेकल ऑफ लव’ में नीम करोली बाबा के चमत्कारों का जिक्र है, जिसमें ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का भी उल्लेख है.
बाबा नीम करोली सादा जीवन के लिए याद किए जाते थे और उन्होंने हमेशा लोगों को अच्छे कार्यों के लिए प्रेरित किया. साल 1958 में बाबा ने अपना घरबार त्याग दिया और पूरे उत्तर भारत का भ्रमण किया. वे अलग-अलग नाम लक्ष्मण दास, हांडी वाले बाबा और तिकोनिया वाले बाबा से जाने जाते थे. बाबा ने गुजरात के ववानिया मोरबी में तपस्या की, जहां वे तलईया बाबा के नाम से प्रसिद्ध थे.
बाबा नीम करौली के दो बेटे और एक बेटी हैं. Madhya Pradesh के Bhopal में बड़े बेटे अनेक सिंह अपने परिवार के साथ रहते हैं, जबकि छोटे बेटे धर्म नारायण शर्मा फॉरेस्ट रेंजर थे, जिनका निधन हो गया.
बाबा की कई चमत्कारी कहानी काफी प्रसिद्ध है. कहा जाता है कि एक बार नीम करोली बाबा बिना टिकट के ट्रेन में सफर कर रहे थे. टिकट न होने की वजह से टिकट कलेक्टर (टीटी) ने बाबा को अगले स्टेशन पर उतार दिया था. इसके बाद बाबा ने पास में ही बैठकर ध्यान लगाया और जमीन में अपना चिमटा गाड़ दिया. काफी कोशिश के बावजूद ट्रेन का इंजन चालू नहीं हुआ. इसके बाद रेलवे के अधिकारियों ने बाबा से माफी मांगी और वे जैसे ही ट्रेन में बैठे, गाड़ी चल पड़ी. इसके बाद उस स्टेशन का नाम नीम करोली बाबा के नाम पर रखा गया.
कैंची धाम में एक बार भंडारे का आयोजन किया गया, लेकिन उसमें घी की कमी हो गई थी. इसे लेकर भक्त काफी परेशान हुए और सोचने लगे कि बाबा का प्रसाद कैसे बनेगा? इस पर नीम करोली महाराज ने पास की नदी से पानी मंगवाया और उनके निर्देश पर लाया गया पानी भोजन में डालते ही घी में बदल गया और प्रसाद तैयार हो गया.
नील करोली महाराज एक बार फतेहगढ़ में वृद्ध दंपत्ति के घर में रुके थे. उस बुजुर्ग दंपत्ति का बेटा युद्ध के मैदान में फंसा था. उसी रात बाबा घर पर एक कंबल ओढ़कर सो गए. कहा जाता है कि बुजुर्ग दंपति के बेटे ने एहसास किया कि वही कंबल उसे गोलियों से बचा रहा था.
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डीकेपी/