पाला व शीतलहर की मार झेल चुके किसानाें काे अब जाै की फसल बड़ा झटका दे रही है. पाला व शीतलहर से 15 हजार हैक्टेयर से ज्यादा अगेती बुवाई की फसल खराब हाे गई थी. इससे फसल में ठीक से पकाव नहीं आया, जिसका किसानाें काे पैदावार के साथ-साथ भावाें में भी खमियाजा भुगतना पड़ रहा है.
हालात ये है कि दाे माह में ही 3100 रुपए क्विंटल तक बिकने वाले जाै के थाेक भाव मंडी में आते ही 1800 से 2100 रुपए क्विंटल आ गए. यानी एक बाेरी जाै की उपज पर मंडी में किसानाें काे एक हजार रुपए तक का नुकसान हो रहा है. कृषि विभाग के अनुसार जिलेभर में करीब 32 हजार हैक्टेयर में जाै की बुवाई हुई थी. सीकर मंडी में प्रतिदिन 500 से 700 क्विंटल जाै की आवक हाे रही है.
माल्ट काराेबारी महेश जैन व संपत अग्रवाल का कहना है कि सीकर मंडी में पिछले साल के मुकाबले इस साल जाै की आवक ज्यादा है. दूसरा पुराना स्टाॅक हाेने से इस बार माल्ट कंपनियाें की आेर से भी जाै की खरीद शुरू नहीं की गई है. ऐसे में मार्केट में आवक के अनुसार खरीदार नहीं मिल रहे.
काराेबारियाें के अनुसार मार्केट में जाै के थाेक भावाें में गिरावट की बड़ी वजह है इस बार जाै का विदेशी आयात ज्यादा है. दूसरा लाेकल स्तर पर पाला-शीतलहर की चपेट में आने से गुणवत्ता भी कमजाेर रही है. इस वजह से माल्ट कंपनियाें की डिमांड पिछले साल के मुकाबले कम है.
सीकर मंडी में हर साल दिल्ली, गुड़गांव, पंजाब व हरियाणा के खरीदार जाै की खरीद के लिए आते हैं. इस बार बाहरी काराेबारियाें के नहीं आने से जाै का उपयाेग पशुआहार निर्माताओं द्वारा कैटलफीड में किया जा रहा है. ऐसी स्थिति में एक माह से खल-चूरी के थाेक भाव स्थिर हैं.