New Delhi, 27 अगस्त . भाग्यश्री साठे एक भारतीय शतरंज खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपने उत्कृष्ट खेल से खास पहचान बनाई. महाराष्ट्र की रहने वाली ग्रैंडमास्टर भाग्यश्री ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई उपलब्धियां हासिल की हैं. भाग्यश्री भारत की महिला शतरंज खिलाड़ियों में अग्रणी मानी जाती हैं, जिन्होंने इस खेल से जुड़ने के लिए कई युवाओं को प्रेरित किया.
4 अगस्त 1961 को Mumbai में जन्मीं भाग्यश्री बचपन से ही बेहद होशियार थीं. भाग्यश्री मुश्किल सवालों को आसानी से हल कर देतीं. पिता ने शतरंज से भाग्यश्री को परिचित करवाया. धीरे-धीरे इस खेल में उनकी रुचि बढ़ती जा रही थी.
भाग्यश्री कभी भाई-बहन, तो कभी पिता के साथ शतरंज खेला करतीं. बहुत जल्द ऐसा समय भी आ गया, जब भाग्यश्री अपने पिता को ही इस खेल में मात देने लगीं.
भाग्यश्री शतरंज में इतनी डूब जातीं कि उन्हें आस-पास क्या हो रहा है, इसका पता तक नहीं चलता, लेकिन जैसे-जैसे भाग्यश्री बड़ी हो रही थीं, वैसे-वैसे उनके लिए पढ़ाई पर ज्यादा फोकस करना जरूरी हो गया था, लेकिन फिर भी उन्होंने शतरंज को अपना शौक बनाए रखा.
12वीं कक्षा के बाद भाग्यश्री ने शतरंज में अपना करियर बनाने का फैसला लिया. उन्होंने 1979 में मद्रास विमेंस चेस चैंपियनशिप में आठवां स्थान हासिल किया. साल 1985 में मद्रास नेशनल विमेंस चेस चैंपियनशिप जीत ली. 28 अगस्त 1986 को भाग्यश्री साठे ने ग्रैंडमास्टर की उपाधि अपने नाम की. उन्होंने 28वीं वाईएमसीए नेशनल बी महिला शतरंज चैंपियनशिप में बहुप्रतीक्षित जीत दर्ज की थी.
भाग्यश्री ने पांच बार (साल 1985, 1986, 1988, 1991 और 1994) इंडियन विमेंस चैंपियनशिप जीती. साल 1991 में उन्होंने एशियन विमेंस चैंपियनशिप अपने नाम की.
नौ बार शतरंज ओलंपियाड में हिस्सा ले चुकीं भाग्यश्री को साल 1986 में ‘पद्म श्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जिसके बाद साल 1987 में ‘अर्जुन पुरस्कार’ से नवाजा गया.
भाग्यश्री साठे शतरंज में कई सारे खिताब अपने नाम करते हुए दूसरों के लिए प्रेरणा बनी हैं. आज के दौर में भाग्यश्री को शतरंज में एक आदर्श के तौर पर देखा जाता है.
–
आरएसजी