गंगटोक, 22 मई . सिक्किम के अंतिम राजा चोग्याल पाल्डेन थोडनप नामग्याल की 102वीं जयंती मनाई गई. इस अवसर पर विशेष प्रदर्शनी का आयोजन किया गया और दिवंगत चोग्याल और सिक्किम के पूर्व दीवान नारी के. रुस्तमजी के बीच ‘असाधारण मित्रता’ पर आधारित पुस्तक का विमोचन किया गया.
कार्यक्रम राजधानी गंगटोक के नामग्याल इंस्टीट्यूट ऑफ तिब्बतोलॉजी में आयोजित किया गया. इस अवसर पर राज्यपाल ओम प्रकाश माथुर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. नारी के. रुस्तमजी के परिवार के सदस्य भी मौजूद थे. नारी के. रुस्तमजी (1919-1993) एक प्रतिष्ठित भारतीय सिविल सेवक थे. उन्होंने 1950 और 1960 के दशक की शुरुआत में सिक्किम, भूटान और असम में काम किया और फिर 1972 में मेघालय के पहले मुख्य सचिव बने.
सिक्किम में उन्होंने चोग्याल ताशी नामग्याल और बाद में उनके बेटे चोग्याल पाल्डेन थोंडुप के शासन के दौरान सिक्किम के दीवान के रूप में कार्य किया. यह उपाधि ब्रिटिश भारत के अधीन और बाद में स्वतंत्र भारत में 1975 में विलय होने तक अस्तित्व में रही.
अपने कार्यकाल के दौरान दीवान की उपाधि नहीं दिए जाने के बावजूद रुस्तमजी सिक्किम और भूटान के राजनीतिक अधिकारी थे. यह ऐसा पद था जिसके पास दीवान के समान वास्तविक शक्तियां थीं. रुस्तमजी ने चोग्याल को सलाह दी और सिक्किम के राजनीतिक भविष्य और भारत के साथ संबंधों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
कार्यक्रम के दौरान, नारी रुस्तमजी की बेटियों शहनाज़ रुस्तमजी स्लेटर और रश्ने रुस्तमजी अथायडे ने सिक्किम के अंतिम राजा के साथ अपने पिता की दोस्ती के किस्से सुनाए. उन्होंने बताया, “मुझे लगता है कि मेरे पिता का सिक्किम से पहला अनुभव और परिचय 1943 में हुआ था, जब वे पहली बार पूर्व चोग्याल पाल्डेन थोंडुप नामग्याल के साथ इस हिमालयी राज्य में आए थे, जो उस समय क्राउन प्रिंस थे. वे देहरादून में भारतीय सिविल सेवा प्रशिक्षण शिविर में थे और उनके बीच तुरंत दोस्ती हो गई. वे एक-दूसरे के प्रति आकर्षित हुए और मुझे लगता है कि रुस्तमजी ने इस खूबसूरत भूमि और इसके लोगों के साथ सहानुभूति और जुड़ाव महसूस किया जो उनके जीवन भर बना रहा. सिक्किम हमेशा उनके लिए बहुत प्रिय था.”
रश्ने रुस्तमजी अथायडे ने कहा, “50 साल बाद सिक्किम लौटना हमारे लिए बेहद भावनात्मक है. बचपन में हमने दुर्गा पूजा की छुट्टियां यहीं बिताई थीं, जब हमारे पिता नारी रुस्तमजी मुख्य सचिव थे. चोग्याल बहुत मिलनसार थे. वे घोड़े पर और पैदल यात्रा करते थे, लोगों से जुड़ते थे और स्थानीय संस्कृतियों का जश्न मनाते थे. ये यादें अनमोल हैं और हम अपने पिता की विरासत का सम्मान करने के लिए सिक्किम के आभारी हैं.”
नामग्याल इंस्टीट्यूट ऑफ तिब्बतोलॉजी के निदेशक डॉ. पासंग डी. फेम्पू ने कहा, “चोग्याल पाल्डेन थोंडुप नामग्याल की 102वीं जयंती मनाने के लिए हमने इस बार कुछ अनूठा करने का फैसला किया है. सामान्य शैक्षणिक कार्यक्रमों के बजाय, हम नारी रुस्तमजी और अंतिम चोग्याल के बीच गहरी दोस्ती का जश्न मना रहे हैं, जो 1942 में शुरू हुई और जिसने सिक्किम के विकास को आकार दिया. सिक्किम राष्ट्रीयकृत परिवहन, स्टेट बैंक ऑफ सिक्किम, सिक्किम हैंडलूम और हस्तशिल्प और यहां तक कि नामग्याल इंस्टीट्यूट ऑफ तिब्बतोलॉजी जैसी संस्थाएं भी उनके समय में ही शुरू की गई थीं. दुर्लभ व्यक्तिगत दस्तावेज और तस्वीरें- जिन्हें पहले कभी सार्वजनिक रूप से नहीं दिखाया गया. इस प्रदर्शनी के लिए परिवार की तरफ से उदारतापूर्वक साझा की गई हैं. यह रुस्तमजी को श्रद्धांजलि है, जिनके योगदान को काफी हद तक अनदेखा किया गया है. इसके लिए हम उनकी बेटियों को धन्यवाद देते हैं.”
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पीएके/डीएससी