आपातकाल में संविधान की हत्या हुई, उसे इतिहास के पन्ने से हटाया नहीं जा सकता : रोहन गुप्ता

नई दिल्ली, 26 जून . देश में साल 1975 में लगाई गई इमरजेंसी को लोकतंत्र के इतिहास का काला अध्याय बताते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने सदन में दो मिनट का मौन रखवाया जिस पर विपक्ष ने हंगामा किया. विपक्ष के हंगामे पर भाजपा नेता रोहन गुप्ता ने प्रतिक्रिया दी है.

देश में लगाई गई इमरजेंसी पर सदन में रखे गए मौन के दौरान विपक्ष के हंगामे पर उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान संविधान पर हमला हुआ था. संविधान बचाने की बात करने वाले लोगों की पार्टी ने आपातकाल में जिस प्रकार से संविधान की हत्या की, उसे इतिहास के पन्ने से हटाया नहीं जा सकता. यह तय करना पड़ेगा कि भविष्य में इस देश में ऐसी घटना कभी ना हो, आपातकाल देश के लोकतंत्र और संविधान पर एक काला धब्बा है.

उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने सदन में मौन का विरोध किया, इससे उनकी मानसिकता दिखती है. कई बार उनके नेता कहते हैं कि गलत हुआ था, अगर गलत हुआ था तो उसे स्वीकार कीजिए, दूर क्यों भाग रहे हैं, हकीकत को आप बदल नहीं सकते. एक तरफ संविधान बचाने के नाम पर आप वोट मांगते हैं. दूसरी तरफ आपका इतिहास क्या रहा है वह सब जानते हैं. यह दोहरा मापदंड नहीं चलने वाला.

सांसद पद की शपथ से दौरान असदुद्दीन ओवैसी की ओर से लगाए गए ‘जय फिलिस्तीन’ के नारे पर रोहन गुप्ता ने कहा कि मुझे नहीं पता कि ओवैसी ने कहां से यह बयान दिया है, यह देश 140 करोड़ जनता का है. संसद के पहले दिन नेगेटिव बात कर माहौल खराब करने का काम किया गया है. इस पर खुद ओवैसी को जवाब देना चाहिए. मुझे जहां तक जानकारी है, संसद के रिकॉर्ड से उनके बयान को हटा लिया गया है और आगे जो कार्रवाई होगी वह संसद ही तय करेगी.

राहुल गांधी को विपक्ष का नेता बनाए जाने पर रोहन गुप्ता ने कहा कि अगर राहुल गांधी ने जिम्मेदारी ली है तो मेरा इस पर कुछ भी बोलना ठीक नहीं रहेगा. मेरी उनसे अपेक्षा है कि वह सकारात्मक तरीके से काम करेंगे. विपक्ष का काम है पॉजिटिव थिंकिंग रखना, सरकार पर सवाल उठाएं लेकिन हर चीजों पर सवाल नहीं उठाना चाहिए. आने वाले दिनों में देखेंगे कि राहुल गांधी का कैसा ट्रैक रिकॉर्ड रहता है.

‘मैंने कभी भी मनीष सिसोदिया का नाम नहीं लिया है’, सीएम केजरीवाल के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि केजरीवाल कब, क्या बोलते हैं, वह खुद ही जानते हैं. उनके ऊपर बहुत ही गंभीर आरोप हैं और ऐसे में एक राज्य के मुख्यमंत्री को नैतिकता के आधार पर अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. अपने ऊपर गंभीर आरोप लगने के बाद भी वह बचाव की मुद्रा में हैं. हर रोज वह नई चीज लेकर आते हैं, दिल्ली की जनता उन्हें समझ चुकी है. लोकसभा चुनाव में दिल्ली की जनता ने उन्हें बुरी तरह से नकार दिया, भाजपा को सातों सीटें दी हैं. लोकसभा चुनाव में केजरीवाल के जो साथी थे, उन्होंने भी उनका साथ छोड़ दिया.

उन्होंने कहा कि हकीकत देश के सामने है. निगेटिव मानसिकता की राजनीति, विक्टिम कार्ड खेलने वाली बात अब नहीं चल चलती. सबूत आपके खिलाफ है, पूरे देश के सामने इतनी बड़ी एजेंसी ने सबूत इकट्ठे किए हैं और कोर्ट उन सबूत के आधार पर आपको बेल नहीं दे रही है. कोर्ट से जब केजरीवाल को बेल मिल जाती है तो उसे वह अच्छा कदम बताते हैं, सत्यमेव जयते कहते हैं और जब बेल नहीं मिलती है तो लोकतंत्र की हत्या बताते हैं. यह दोहरा मापदंड नहीं चलेगा, केजरीवाल ने गुनाह किया है तो उसकी सजा के लिए उन्हें तैयार रहना चाहिए.

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