मथुरा का वो प्राचीन मंदिर, जो शूर्पणखा के श्रीकृष्ण से भेंट का है गवाह

मथुरा, 27 अक्टूबर . उत्तर प्रदेश का मथुरा विश्व भर में आस्था का केंद्र माना जाता है. श्रीकृष्ण की इस पवित्र नगरी में हजारों मंदिर हैं, जो भगवान की लीलाओं, भक्तों की भक्ति और पुराणों की कथाओं से जुड़े हुए हैं. इन्हीं में से एक है श्री कुब्जा कृष्ण मंदिर, जो आकार में छोटा भले है, लेकिन दो युगों की कहानी को समेटे हुए है.

यह मंदिर मथुरा के परिक्रमा मार्ग पर स्थित है और इसे मथुरा का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है. इस मंदिर में श्री कृष्ण कुब्जा के साथ विराजमान हैं.

इस मंदिर की पौराणिकता त्रेता युग से द्वापर युग तक फैली हुई है. त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम वनवास पर थे, तब उनकी भेंट लंका की राक्षसी शूर्पणखा से हुई थी. शूर्पणखा श्रीराम के रूप और तेज से प्रभावित होकर उनसे विवाह करना चाहती थी, लेकिन श्रीराम ने उसे स्पष्ट रूप से मना कर दिया. उसके इस असफल प्रयास के बाद वह क्रोध और दुख से भर गई.

द्वापर युग में शूर्पणखा ने कुब्जा के रूप में जन्म लिया. कुब्जा मथुरा में कंस के दरबार की एक दासी थी, लेकिन वह भगवान श्रीकृष्ण की बहुत बड़ी भक्त थीं. वह कुबड़ी थी, जिस वजह से लोग कुब्जा कहा करते थे. अपनी शारीरिक स्थिति के कारण कुब्जा का जीवन बहुत कठिन था. लोग उनका मजाक उड़ाते थे, जिस वजह से वह बहुत दुखी रहती थीं.

जब भगवान श्रीकृष्ण कंस का वध करने के लिए मथुरा आएं, तब उनकी मुलाकात कुब्जा से हुई. श्रीकृष्ण ने कुब्जा को सुंदरी कहकर संबोधित किया. कुब्जा को लगा कि शायद श्रीकृष्ण भी बाकी लोगों की तरह उनका मज़ाक उड़ा रहे हैं. उनकी आंखों से आंसू निकलने लगे, लेकिन तभी भगवान ने प्रेम से उनका हाथ पकड़ा और धीरे से उनके शरीर को सीधा कर दिया. इसके बाद वह श्रीकृष्ण को अपना पति मानने लगी, जिससे शूर्पणखा की पिछले जन्म की इच्छा पूरी हुई.

कुब्जा कृष्ण मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले भक्त मानते हैं कि जैसे भगवान ने कुब्जा को उसके दुखों से मुक्ति दिलाई, वैसे ही वे अपने भक्तों की हर पीड़ा दूर कर देते हैं.

पीआईएम/एबीएम