21वें सदी के वे क्रिकेटर, जिन्होंने विकेटकीपर-बल्लेबाज होने के मायने ही बदल दिए

New Delhi, 9 सितंबर . 90 के दौर में रोमेश कालुवितराना, मोईन खान, एडम गिलक्रिस्ट और मार्क बाउचर जैसे खिलाड़ियों ने विकेटकीपर-बल्लेबाज की भूमिका को नए आयाम दिए थे. इन्होंने दिखाया था कि एक विकेटकीपर न सिर्फ विकेटकीपिंग ग्लव्स, बल्कि बल्ले के साथ भी टीम की जीत में अहम योगदान दे सकता है.

यही वजह रही कि रोमेश कालुवितराना जैसे विकेटकीपर को 1996 के विश्व कप में श्रीलंकाई पारी की ओपनिंग का जिम्मा सौंपा गया, जिन्होंने शुरुआती 15 ओवरों के खेल को ही बदल दिया. ऑस्ट्रेलिया को तीन विश्व कप खिताब जिताने वाले एडम गिलक्रिस्ट 2007 के विश्व कप में ‘प्लेयर ऑफ द मैच’ तक रहे. मार्क बाउचर साउथ अफ्रीका के लिए बल्लेबाजी में संकटमोचक साबित हुए, तो दूसरी ओर मोईन खान ने पाकिस्तान के लोअर और मिडिल ऑर्डर में बल्लेबाजी करते हुए बेहतरीन मैच फिनिशर की भूमिका निभाई.

पूरे विश्व ने 90 के दौर में इन विकेटकीपर-बल्लेबाजों का जलवा देखा था, जिन्होंने आधुनिक क्रिकेट की बल्लेबाजी की झलक दिखाई थी. इसके बाद 21वीं सदी की शुरुआत में विकेटकीपर-बल्लेबाजों के आक्रामक अंदाज को आगे बढ़ाते हुए क्विंटन डी कॉक, एमएस धोनी, जॉनी बेयरस्टो और ऋषभ पंत जैसे खिलाड़ी उबरकर सामने आए, जिन्होंने सफेद गेंद क्रिकेट के साथ टेस्ट मैचों का भी बैटिंग स्टाइल बदलने में अहम योगदान दिया.

क्विंटन डी कॉक तेज रिफ्लेक्स और कलाई की फुर्ती से बेहतरीन स्टंपिंग करने में माहिर थे. उन्होंने स्पिन गेंदबाजों के साथ बेहतरीन तालमेल दिखाया. उनकी भरोसेमंद कैचिंग और विकेट के पीछे लगातार सक्रियता पूरी टीम में जोश भरने का काम करती थी. बेहतरीन विकेटकीपर के साथ, बाएं हाथ के इस आक्रामक और निडर बल्लेबाज को तेजी से रन जुटाने के लिए पहचाना जाता है, जो कई मौकों पर बतौर सलामी बल्लेबाज उतरे. शक्तिशाली शॉट के अलावा शानदार ड्राइव लगाने की खासियत क्विंटन डी कॉक को एक कुशल बल्लेबाज साबित करती है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बतौर विकेटकीपर 500 से ज्यादा शिकार कर चुके क्विंटन डी कॉक ने 12 हजार से भी ज्यादा रन बनाते हुए खुद को साउथ अफ्रीकी टीम का अहम सदस्य बनाया.

भारत के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी चीते सी फुर्ती, बाज जैसी तेजी और चील जैसी पैनी निगाहों के लिए मशहूर रहे. वे दुनिया के सबसे तेज स्टंपिंग करने वाले विकेटकीपरों में शुमार हैं. धोनी दबाव की स्थिति में विकेट के पीछे जितने शांत रहते, बल्लेबाजी में उतने ही आक्रामक नजर आते. धोनी ने करियर के शुरुआती दौर में भारतीय क्रिकेट में विकेटकीपर की भूमिका को पूरी तरह से बदलकर रख दिया. माही ने शक्तिशाली, लेकिन अपरंपरागत शॉट खेलते हुए बेहतरीन फिनिशर की भूमिका निभाई. अपने मजबूत कंधों के साथ इस खिलाड़ी ने ‘हेलीकॉप्टर शॉट’ को विकसित किया.

जॉनी बेयरस्टो इंग्लैंड के ऐसे विकेटकीपर बल्लेबाज रहे, जिन्होंने कीपिंग के साथ बैजबॉल स्टाइल में बैटिंग करके टेस्ट क्रिकेट की परिभाषा को नए सिरे से तय करने में निर्णायक भूमिका अदा की. बेयरस्टो बैजबॉल स्टाइल के अगुवा साबित हुए, जो बाद में रेड बॉल में इंग्लिश मॉर्डन बैटिंग की पहचान बन गई है. एक आक्रामक और निडर दाएं हाथ के बल्लेबाज के रूप में जॉनी बेयरस्टो में पावरप्ले में तेजी से रन जुटाने की क्षमता है. उन्होंने कई बड़ी पारियां खेलते हुए गेम चेंजर की भूमिका निभाई है.

यह लिस्ट ऋषभ पंत के बगैर पूरी नहीं हो सकती. पंत को धोनी का उत्तराधिकारी माना गया. शुरुआती दौर में पंत ने भले ही कुछ फैंस को नाखुश किया, लेकिन इसके बाद उन्होंने अपनी कमियों को सुधारा. स्पिन गेंदबाजों के साथ स्टंपिंग और कैच में लपकने में चुस्ती दिखाते हुए पंत विकेट के पीछे डाइव लगाने के लिए भी जाने जाते हैं. पंत न सिर्फ बेखौफ, बल्कि जुझारू खिलाड़ी हैं. उनकी बल्लेबाजी इनोवेटिव है और उनके तरकश में क्रिकेट के तमाम शॉट्स मौजूद हैं. पंत की आक्रामक बैटिंग ने टेस्ट मैचों में धोनी को भी पीछे छोड़ दिया है. तेज गेंदबाजों पर भी रिवर्स स्वीप लगाने वाले पंत एक बड़े हिटर के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने कई मौकों पर भारतीय टीम के लिए ‘संकटमोचक’ की भूमिका निभाई है.

आरएसजी/एएस