शिमला के सेबों से गुलजार होगा पूर्वांचल का तराई क्षेत्र

लखनऊ, 11 जुलाई . पहाड़ों के बीच सेब की होने वाली खेती अब तराई के किसानों के लिए वरदान बनेगी. इसकी तैयारी पूरी हो चुकी है.

गोरखपुर के बेलीपार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है. लगभग तीन वर्ष पहले गोरखपुर के बेलीपार स्थित कृषि विकास केंद्र ने इसका अनूठा प्रयोग किया था. साल 2021 में संस्थान ने हिमाचल से सेब की कुछ प्रजातियां मंगाई. उन्हें खेतों में लगाया और वर्ष 2023 में इनमें फल आ गए.

इस सफल प्रयोग ने किसानों को अपनी ओर आकर्षित किया और एक किसान ने इसकी खेती अपने दम पर शुरू कर दी. संस्थान की सफलता से प्रेरित होकर गोरखपुर के पिपराइच के उनौला गांव के किसान धर्मेंद्र सिंह ने इसकी खेती का रिस्क लिया.

साल 2022 में हिमाचल से सेब के 50 पौधे मंगा खेती शुरू की. अब उनके पौधों में फल भी आ चुके हैं. इस उपलब्धि से उत्साहित संस्थान अब सेब की खेती का दायरा बढ़ाने की तैयारी में है. कुछ किसानों से बातचीत चल रही है. इस साल एक एकड़ में सेब के बाग लगाने की तैयारी है.

किसान धर्मेंद्र सिंह के मुताबिक, साल 2022 में उन्होंने हिमाचल से अन्ना और हरमन-99 प्रजातियों के 50 पौधे मंगाए थे. इस साल उनमें फल आए हैं. उनका कहना है कि सेब की खेती के विचार आने के बाद से ही जुनून सा रहने लगा. पैसे की कमी की वजह से सरकारी अनुदान के बारे में पता किया गया. समय समय पर कृषि विज्ञान केंद्र से जरूरी सलाह भी ली गई. अब इसे विस्तार देने की तैयारी है. पौधों का ऑर्डर दिया जा चुका हूं.

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार (गोरखपुर) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सिंह ने कहा कि जनवरी 2021 में सेब की तीन प्रजातियों अन्ना, हरमन- 99 और डोरसेट गोल्डन को हिमाचल प्रदेश से मंगवाकर केंद्र पर उनका रोपण हुआ था. दो साल बाद इनमें फल आ गए. यही तीनों प्रजातियां पूर्वांचल के कृषि जलवायु क्षेत्र के भी अनुकूल हैं.

उन्होंने कहा, अन्ना हरमन-99, डोरसेट गोल्डन आदि का ही चयन करें. बाग में कम से कम दो प्रजातियां के पौधों का रोपण करें. यह अच्छे परागण के लिए जरूरी है. फलों की संख्या अच्छी आएगी. चार-चार के गुच्छे में फल आएंगे. फलों की अच्छी साइज के लिए शुरुआत में ही कुछ फलों को निकाल दें. नवंबर से फरवरी रोपड़ का उचित समय है. लाइन से लाइन और पौध से पौध की दूरी 10 गुणा 12 फीट रखें. प्रति एकड़ लगभग 400 पौधे का रोपण करें. रोपाई के तीन से चार वर्ष में ही 80 फीसद पौधों में फल आने शुरू हो जाते हैं. तराई क्षेत्र में कम समय की बागवानी के लिए सेब बहुत अनुकूल है.

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