New Delhi, 24 अगस्त . भारत एक ऐसा देश है जहां हर त्योहार सिर्फ पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होता, बल्कि उसमें हमारी भावनाएं, रिश्ते, परंपराएं और कहानियां भी जुड़ी होती हैं. इन त्योहारों में से एक खास त्योहार है हरतालिका तीज. आमतौर पर इसे सुहागिन महिलाओं का व्रत माना जाता है, जिसमें वे निर्जला रहकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. साथ ही अविवाहित लड़कियां भी यह व्रत करती हैं ताकि उन्हें एक अच्छा और मनचाहा जीवनसाथी मिले.
इस साल हरतालिका तीज का व्रत 26 अगस्त को रखा जाएगा.
पंचांग के अनुसार तृतीया तिथि 25 अगस्त को दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर शुरू होगी और 26 अगस्त को दोपहर 1 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदया तिथि यानी सूर्योदय की तिथि को मानते हुए व्रत 26 तारीख को रखा जाएगा. पूजा का शुभ समय सुबह 5 बजकर 56 मिनट से 8 बजकर 31 मिनट तक है.
इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं, साफ कपड़े पहनती हैं और पूरे मन से व्रत का संकल्प लेती हैं. मिट्टी या रेत से भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां बनाई जाती हैं और उन्हें लकड़ी की चौकी पर सजा कर स्थापित किया जाता है. फिर देवी-देवताओं की पूजा की जाती है. फूल, बेलपत्र, चंदन, धूप-दीप, मिठाई, फल और सोलह श्रृंगार की चीजों से भगवान को भोग लगाया जाता है. महिलाएं पारंपरिक मंत्रों का जाप करती हैं, हरतालिका तीज की व्रत कथा सुनती हैं और आरती करती हैं.
यह पूजा अक्सर प्रदोष काल में यानी शाम के समय की जाती है. कई स्थानों पर महिलाएं रातभर जागकर भजन-कीर्तन भी करती हैं.
हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, जब माता पार्वती विवाह योग्य हुईं तो उनके पिता हिमालय ने उनका विवाह भगवान विष्णु से तय कर दिया. लेकिन माता पार्वती का मन भगवान शिव में था. उन्होंने अपनी सखियों के साथ वन में जाकर तपस्या की और रेत से शिवलिंग बनाकर शिवजी की आराधना की. इस कठिन तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया. यही वह दिन था, जिसे हर साल तीज के रूप में मनाया जाता है.
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पीके/केआर