‘किशोरावस्था में मातृत्व से निपटना महिला सम्मान के लिए जरूरी’, जामिया के कार्यक्रम में बोले शिक्षाविद्

नई दिल्ली, 6 मार्च . किशोरावस्था में गर्भधारण से जुड़ी चुनौतियों और कम उम्र में गर्भधारण को रोकने की जरूरत को लेकर दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बुद्धिजीवी गुरुवार को एक मंच पर आए. महिला दिवस के महत्व को उजागर करते हुए जामिया की डॉ. हेमा बोरकर ने इसे एक सशक्त तरीका बताया, जिसके माध्यम से महिला समानता के लिए ठोस कदम उठाए जा सकते हैं.

डॉ. बोरकर ने बताया कि बाल विवाह और किशोरावस्था में गर्भाधान आज भी गंभीर मुद्दे हैं. खासकर, राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में और कोविड-19 महामारी के दौरान बाल विवाहों में वृद्धि देखी गई.

जामिया के सामाजिक कार्य विभाग की प्रमुख, प्रो. नीलम सुखरामानी ने बाल विवाह की शिकार महिलाओं के साथ अपने अनुभवों को साझा किया. उन्होंने बताया कि इस प्रकार के बाल अधिकार उल्लंघन और लिंग आधारित हिंसा का समाधान केवल कानूनी ढांचे के लागू करने से नहीं हो सकता. देश में एक-चौथाई लड़कियां 18 साल से पहले माताएं बन रही हैं, जो चिंताजनक है.

उन्होंने कहा कि महिलाओं के प्रेरणास्रोत बनना प्रेरणादायक है, लेकिन हमें महिला सम्मान और गरिमा को रोजमर्रा की जिंदगी में याद रखना चाहिए.

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के सामाजिक कार्य विभाग ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस को ध्यान में रखते हुए “भारत में किशोर गर्भावस्था और मातृत्व : क्रियावली के लिए प्रभाव” विषय पर एक प्रस्तुति दी और पैनल चर्चा का आयोजन किया. इस सत्र में एक्शन ऐड टीम द्वारा एक शोध रिपोर्ट पर विस्तृत प्रस्तुति दी गई.

रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में किशोरों की सबसे बड़ी जनसंख्या है और किशोर माताओं की स्थिति से जुड़ी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. यह शोध बिहार, ओडिशा, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के चार जिलों में किया गया और इसमें सामाजिक-परिस्थिति मॉडल का उपयोग किया गया था.

रिपोर्ट के निष्कर्षों को प्रस्तुत करते हुए बताया गया कि बाल विवाह किशोर गर्भावस्था का प्रमुख कारण है. इसके बाद आत्म-व्यवस्थित विवाहों का स्थान है. हालांकि अविवाहित गर्भावस्था कम प्रचलित है, फिर भी यह सामाजिक कलंक और कानूनी समस्याओं का कारण बन सकती है.

राजस्थान की एक केस स्टडी के माध्यम से यह बताया गया कि किशोरी लड़कियां किस प्रकार से रिश्तों, निर्णय-निर्माण और जल्दी मातृत्व के दबावों को निभाती हैं. रिपोर्ट में गर्भावस्था को बढ़ावा देने में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, गर्भनिरोधक तक सीमित पहुंच को प्रमुख कारण बताया गया.

सत्र में किशोर माताओं के समक्ष आने वाली विभिन्न समस्याओं को भी उजागर किया गया, जिसमें खराब मातृत्व स्वास्थ्य, वित्तीय और सामाजिक समर्थन की कमी शामिल है. एक महत्वपूर्ण चिंता के रूप में किशोर माताओं में स्कूल छोड़ने की दर में वृद्धि को उजागर किया गया, जिससे भविष्य में उनके रोजगार के अवसर सीमित हो जाते हैं और वे परनिर्भरता के चक्र में फंस जाती हैं.

डॉ. राजिनी ने बताया कि किशोर गर्भावस्था को लिंग असमानता के व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए. बाल विवाह केवल एक व्यक्तिगत या पारिवारिक समस्या नहीं है, बल्कि यह गहरे पितृसत्तात्मक मानदंडों का परिणाम है.

कार्यक्रम में दो प्रमुख प्रवृत्तियों की पहचान की गई – परिवार समर्थित बाल विवाह और घर से भागकर किए गए प्रेम विवाह. बताया गया कि समाज में महिलाओं के प्रति असमानता बनी हुई है और इन किशोरियों को अपने प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में निर्णय लेने की स्वतंत्रता नहीं है.

सभी वक्ताओं और शिक्षकों ने इस बात पर सहमति जताई कि इसका कोई सरल समाधान नहीं है, लेकिन स्पष्ट रास्ते हैं. उन्होंने बताया कि नीतिगत समर्थन, शिक्षा और जमीनी स्तर पर हस्तक्षेपों के माध्यम से किशोर गर्भावस्था और मातृत्व के मुद्दों का समाधान किया जा सकता है.

जीसीबी/एकेजे