तहव्वुर राणा ने हेडली को किया सपोर्ट, मुंबई में खोला था ऑफिस : रिटायर्ड एडीजी पीके जैन का बड़ा खुलासा

मुंबई, 14 अप्रैल . 26/11 मुंबई आतंकी हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को आखिरकार भारत लाया जा चुका है. उस वक्त महाराष्ट्र पुलिस में आईजी सिक्योरिटी के पद पर रहे रिटायर्ड एडीजी पीके जैन ने से बात करते हुए उसको लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए.

पीके जैन के मुताबिक, तहव्वुर राणा 26/11 हमले का मास्टरमाइंड था. हमले को अंजाम देने के लिए उसने न केवल हेडली को सपोर्ट किया, बल्कि मुंबई में बाकायदा एक ऑफिस भी खोला. राणा पाकिस्तानी सेना में डॉक्टर की रैंक पर रह चुका था, जिसका फायदा उठाकर वह ड्रग्स की तस्करी करता था. अमेरिका में गिरफ्तार होने के बाद राणा को 2009 में 26/11 केस में अरेस्ट किया गया, लेकिन अमेरिकी सरकार ने उसे भारत को सौंपने से मना कर दिया था.

भारत सरकार ने 2019 में पहली बार अमेरिका को राणा के प्रत्यर्पण के लिए औपचारिक निवेदन भेजा था और लंबे फॉलोअप के बाद 2025 में राणा को भारत लाया गया है.

पीके जैन ने बताया कि राणा और डेविड हेडली की दोस्ती स्कूल के दिनों से थी. राणा ने हेडली की हर तरह से मदद की. मुंबई में ऑफिस खोलने से लेकर फंडिंग और सुरक्षा तक राणा ने हैंडल किया. हेडली ने ही 26/11 का पूरा ग्राउंडवर्क किया. उसने राहुल भट्ट (फिल्म निर्माता मुकेश भट्ट का बेटा) के साथ मुंबई का सर्वे किया और संभावित टारगेट की जानकारी पाकिस्तान में अपने आकाओं को दी.

राणा और हेडली दोनों लश्कर-ए-तैयबा के ऑपरेटिव रहे हैं. राणा ने पाक आर्मी छोड़ने के बाद सीधे लश्कर को जॉइन किया. इनका संबंध हाफिज सईद से भी है, जिसकी पुष्टि तस्वीरों से होती है. जैन के अनुसार, इन दोनों को आईएसआई हैंडल करती थी और पूरे ऑपरेशन को लश्कर-ए-तैयबा अंजाम दे रही थी.

एक सवाल के जवाब में पीके जैन ने कहा कि इशरत जहां, जो एक एनकाउंटर में मारी गई थी, लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ी हुई थी. आईएसआई भारत में कई मोहरे एक्टिव रखती है, कुछ कश्मीर में, कुछ देश के अन्य हिस्सों में. इशरत भी इन्हीं में से एक थी और उसके साथ मारा गया व्यक्ति भी लश्कर से जुड़ा था.

एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि इशरत को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की हत्या की साजिश के लिए इस्तेमाल किया जाना था. हालांकि जैन ने इस दावे की पुष्टि नहीं की, लेकिन ये जरूर कहा कि इशरत लश्कर के लिए काम कर रही थी और इसके सबूत सुरक्षा एजेंसियों के पास हैं.

जैन का मानना है कि उस वक्त पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह भाजपा में तेजी से उभरते नेता थे, इसलिए उन्हें टारगेट किया गया. तत्कालीन सरकार ने उन्हें फंसाने की पूरी कोशिश की. ज्यूडिशियल इन्क्वायरी, सीबीआई जांच और अन्य माध्यमों से परेशान किया गया और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने के बावजूद कुछ साबित नहीं हुआ.

डीएससी/जीकेटी