Tuesday , 26 September 2023

शोभायात्रा : नूंह में प्रतीकात्मक कर्फ्यू, निवासियों ने घर के अंदर रहना मुनासिब समझा

गुरुग्राम, 28 अगस्त . हरियाणा के नूंह जिले में विश्‍व हिंदू परिषद द्वारा आहूत ‘शोभायात्रा’ से पहले भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच एक तरह से बंद देखा गया, हालांकि प्रशासन ने कर्फ्यू नहीं लगाया.

31 जुलाई की हिंसा के बाद 250 से अधिक लोगों की गिरफ्तारी और इसी तरह की शोभायात्रा के दौरान झड़पों के बाद घरों को ध्वस्त किए जाने के बाद स्थानीय लोगों ने खुद को अपने घरों में बंद रखने का फैसला किया.

नूंह की हर गली और बाजार बंद कर दिया गया. हालांकि, पुलिस ने कहा कि उसने शोभायात्रा के मद्देनजर लोगों से अपनी दुकानें और प्रतिष्ठान बंद रखने की अपील की है.

नल्हड़ गांव निवासी हामिद खान ने कहा, “31 जुलाई के दंगों से हमारा कोई संबंध नहीं है. फिर भी, हमने अपने घर और दुकानें खो दी हैं. हमें निशाना बनाया गया. इसलिए 28 अगस्त को शोभायात्रा के मद्देनजर हमने घर के अंदर रहने का फैसला किया, ताकि कोई हमें दोषी न ठहरा सके.”

घासेरा गांव में, एक चाय की दुकान के बाहर शोभायात्रा पर चर्चा कर रहे पुरुषों के एक समूह ने कहा : “हम कार के नंबर और वहां से गुजरने वाले अजनबियों के नाम नोट कर रहे हैं. हम खामखा एक और झड़प बर्दाश्त नहीं कर सकते.”

गांव के निवासी महमूद खान ने कहा, “हमारे भाइयों के घरों को बिना किसी कारण ध्वस्त कर दिया गया है. हम स्थानीय प्रशासन के संपर्क में हैं और बाहर नहीं निकलने का फैसला किया है.”

वहीं, इमरान हुसैन ने कहा, “स्थानीय प्रशासन ने बिना किसी नोटिस के हमारी दुकानों और घरों को तोड़ दिया है. मेरे पास कुछ के कागजात थे, जबकि एक पर विवाद था और मामला अदालत में था. हम अभी भी इस डर में जी रहे हैं कि अगर बाहरी लोगों ने प्रवेश किया तो क्या हो सकता है. वे जिले में सद्भाव को बाधित करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. जब तक हम इसकी कीमत चुकाएंगे, वे कांड करके भाग जाएंगे.”

नूंह के लोगों ने झड़प के लिए “राजस्थान के बाहरी मुसलमानों और हिंदू भक्तों के बीच घुस आए कुछ असामाजिक तत्वों” को जिम्मेदार ठहराया.

स्थानीय निवासी इमरान अहमद ने कहा, “राजस्थान के घाटमिका गांव (भिवानी में गोरक्षकों द्वारा मारे गए दो मुस्लिम पुरुषों का गांव) से कई युवा झड़प से दो दिन पहले यहां पहुंचे थे. वे हिंसा फैलाने की पूरी तैयारी के साथ यहां आए थे. हमने हिंदुओं को आश्रय दिया, दंगों के दौरान भी उन्‍हें बचाया, लेकिन बाद में पुलिस ने हमें निशाना बनाया. पुलिस ने नल्हड़ से कुछ युवकों को गिरफ्तार किया, भले ही वे हिंसा में शामिल नहीं थे.”

एसजीके

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