सुप्रीम कोर्ट ने श्री बांके बिहारी जी मंदिर ट्रस्ट अध्यादेश 2025 के संचालन को अस्थायी रूप से निलंबित किया

New Delhi, 8 अगस्त . Supreme court ने Friday को कहा कि वह यूपी सरकार के 2025 के उस अध्यादेश के प्रावधानों को अस्थायी रूप से निलंबित करेगा, जिसके तहत मथुरा-वृंदावन स्थित प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी मंदिर का प्रबंधन प्रभावी रूप से सरकार ने अपने हाथ में लिया था.

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश सरकार के श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास अध्यादेश, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित करेगा. पीठ ने कहा कि अध्यादेश की वैधता पर निर्णय होने तक, उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक समिति मंदिर के मामलों की निगरानी करेगी.

पीठ ने प्रस्तावित प्रबंधन समिति में जिला कलेक्टर, State government के अन्य अधिकारी और हरिदासी संप्रदाय के प्रतिनिधि के शामिल होने के संकेत दिए.

न्यायालय ने कहा कि वह Saturday तक यूपी सरकार के मंदिर प्रशासन को अपने नियंत्रण में लेने के फैसले के खिलाफ कई याचिकाओं पर विस्तृत आदेश अपलोड करेगा. यह मंदिर पारंपरिक रूप से 1939 की योजना के तहत निजी प्रबंधन के अधीन चलाया जाता रहा है. इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि वह 15 मई के अपने उस फैसले को वापस लेगा, जिसमें State government को मंदिर के फंड का इस्तेमाल गलियारा विकास परियोजना के लिए करने की अनुमति दी गई थी.

पिछली सुनवाई में न्यायमूर्ति कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक लंबित सिविल विवाद में आवेदन दायर कर मंदिर के धन के उपयोग की अनुमति मांगने के “गुप्त तरीके” पर आपत्ति जताई थी.

एक याचिका में दावा किया गया कि हाल ही में जारी अध्यादेश से सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है, जिससे मंदिर प्रबंधन समिति की स्वायत्तता प्रभावित हो रही है. इसमें कहा गया कि State government के पास ऐसा अध्यादेश जारी करने का कोई मजबूत कारण नहीं है और सरकार ने मंदिर के प्रशासन को अपने नियंत्रण में लेने के लिए कोई ठोस वजह नहीं बताई.

वकील संकल्प गोस्वामी की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि इस अध्यादेश के प्रावधान हरिदासी/सखी सम्प्रदाय के धार्मिक मामलों को खुद संभालने के अधिकार का उल्लंघन करते हैं. साथ ही, यह सम्प्रदाय के सदस्यों के अपने धर्म को मानने, प्रचार करने और उसका पालन करने के अधिकार को भी प्रभावित करता है. अध्यादेश से धार्मिक रीतियाँ, परंपराएँ और रिवाज बदलने की कोशिश की जा रही है, जो देवता को नाराज कर सकता है और पूरे सम्प्रदाय को खत्म करने का खतरा पैदा कर सकता है.

पीएसके