सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में दृष्टिबाधित लोगों को न्यायिक सेवा से बाहर रखने पर लिया स्वत: संज्ञान

नई दिल्ली, 7 मार्च . सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मध्य प्रदेश भर्ती नियमों में किए गए संशोधनों पर आपत्ति जताने वाली एक पत्र-याचिका पर स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया है. संशोधनों के जरिये राज्य ने दृष्टिबाधित और दृष्टिहीन उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा में नियुक्ति से बाहर रखा है.

पत्र-याचिका पर न्यायिक संज्ञान लेते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया.

पीठ में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं. शीर्ष अदालत ने पत्र-याचिका को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत रिट याचिका में बदलने का आदेश दिया.

इसमें कहा गया है: “मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम, 1994 में संशोधन किया गया है जिसके परिणामस्वरूप नियम 6ए के जरिये दृष्टिबाधित और दृष्टिहीन उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा में नियुक्ति से पूरी तरह बाहर कर दिया गया है.”

इसके अलावा, इसने वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल से मामले में न्याय मित्र के रूप में अदालत की सहायता करने का अनुरोध किया.

जून 2023 में शामिल किये गये नियम 6ए में प्रावधान है कि सेरेब्रल पाल्सी को छोड़कर तथा कुष्ठ रोग, बौनापन, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी और एसिड अटैक पीड़ितों सहित लोकोमोटर विकलांगता से पीड़ित व्यक्तियों के लिए छह प्रतिशत पद क्षैतिज रूप से आरक्षित होंगे, जैसा कि राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसेबिलिटीज एक्ट 2016 (2016 का 49) की धारा 34 के तहत निर्दिष्ट है.

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