सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड फैसले के खिलाफ समीक्षा याचिका की खारिज

नई दिल्ली, 5 अक्टूबर . सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना 2018 को असंवैधानिक करार देने वाले संविधान पीठ के फैसले की समीक्षा की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है.

समीक्षा याचिकाओं पर विचार करने के बाद न्यायमूर्ति सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि “रिकॉर्ड को देखने पर कोई त्रुटि नजर नहीं आती. इसलिए समीक्षा याचिकाएं खारिज की जाती हैं.”

पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया था. पीठ ने कहा था कि मतदाताओं को राजनीतिक दलों के चंदे का विवरण जानने के अधिकार से वंचित नहीं क‍िया जा सकता. राजनीतिक दलों को म‍िलने वाले चंदे को चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के चंदे से अलग नहीं माना जा सकता.

15 फरवरी के अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को चुनावी बॉन्ड जारी करने पर तुरंत रोक लगाने का आदेश दिया था. साथ ही भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर राजनीतिक दलों का विवरण प्रकाशित करने का आदेश दिया था. जिन्होंने अप्रैल 2019 से चुनावी बॉन्ड के माध्यम से योगदान प्राप्त किया है.

मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की राय से न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने भी सहमति जतायी थी. पीठ ने कहा था कि, चुनावी प्रक्रिया में काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से मतदाताओं के सूचना के अधिकार के उल्लंघन को उचित नहीं ठहराया जा सकता.

इसके अलावा, पीठ ने कहा था कि, चुनावी बॉन्ड योजना चुनावी वित्तपोषण में “काले धन पर अंकुश लगाने का एकमात्र साधन नहीं है” और ऐसे अन्य विकल्प भी हैं जो उद्देश्य को काफी हद तक पूरा करते हैं.

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने एक अलग लेकिन सहमति वाला फैसला लिखा.

न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, “मैंने भी आनुपातिकता के मानकों को लागू किया है, लेकिन थोड़े अलग बदलावों के साथ. मेरे निष्कर्ष एक जैसे हैं.”

समीक्षा याचिकाओं में से एक में कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने चुनावी बॉन्ड योजना को “इस बात पर ध्यान दिए बिना रद्द कर दिया कि ऐसा करते हुए वह संसद पर अपीलीय प्राधिकारी के रूप में कार्य कर रहा है, तथा ऐसे मामले में अपने विवेक का प्रयोग कर रहा है जो विधायी और कार्यकारी नीति के विशेष अधिकार क्षेत्र में आता है.”

हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने पुनर्विचार याचिकाओं के साथ ही इन याचिकाओं को खुली अदालत में सूचीबद्ध करने के आवेदन को भी खारिज कर दिया.

इस साल अगस्त में, शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें चुनावी बॉन्ड का उपयोग करके चुनावी चंदे में कथित घोटाले की सेवानिवृत्त शीर्ष अदालत के न्यायाधीश की देखरेख में विशेष जांच दल (एसआईटी) से जांच की मांग की गई थी.

सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जब तक जनहित याचिका में उठाए गए मुद्दे पर पहले से ही एफआईआर दर्ज नहीं हो जाती, तब तक “क्विड प्रो क्वो” की जांच के लिए एसआईटी का गठन नहीं किया जा सकता है. साथ ही पीठ ने कहा कि कानून के सामान्य तरीके से याचिका में उठाए गए आरोपों का समाधान किया जा सकता है.

गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज और सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि, शीर्ष अदालत के निर्देश पर जारी चुनावी बॉन्ड के आंकड़ों से पता चलता है कि अधिकांश बॉन्ड कॉरपोरेट द्वारा राजनीतिक दलों को सरकारों या प्राधिकारों से अनुबंध, लाइसेंस और पट्टे प्राप्त करने के लिए बदले में दिए गए हैं.

एकेएस/