इस्लामाबाद, 1 अप्रैल . पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईएचसी) के छह मौजूदा न्यायाधीशों के एक पत्र से संबंधित मामले पर स्वत: संज्ञान लिया है, जिसमें देश की खुफिया एजेंसियों पर परेशान करने, धमकी देने, ब्लैकमेल करने और न्यायिक मामले तथा निर्णय लेने में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया गया है.
देश भर की कानूनी बिरादरी द्वारा पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश पर दबाव डालने के बाद सुप्रीम कोर्ट एक्शन में आया है.
सुप्रीम कोर्ट का फैसला कानूनी बिरादरी के कम से कम 300 सदस्यों के आईएचसी के छह न्यायाधीशों के समर्थन में आने की घोषणा के बाद आया है. कानूनी बिरादरी ने उच्चतम न्यायालय से मामले पर तत्काल संज्ञान लेने का आह्वान किया था क्योंकि यह देश की खुफिया एजेंसियों द्वारा न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप से संबंधित है.
कानूनी बिरादरी ने कहा कि इस तरह के हस्तक्षेप संविधान के अनुच्छेद 184(3) के तहत स्पष्ट उल्लंघन हैं.
कानूनी बिरादरी ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश तसद्दक जिलानी के तहत एक सदस्यीय जांच आयोग के गठन को भी खारिज कर दिया, और जोर देकर कहा कि मामले की गंभीरता और संवेदनशीलता अधिक महत्वपूर्ण है तथा पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले आयोग की बजाय मुख्य न्यायाधीश द्वारा स्वत: संज्ञान लेने की आवश्यकता है.
पत्र में कहा गया है, “मामले की संघीय सरकार के दायरे में की गई कोई भी जांच उन सिद्धांतों का उल्लंघन करती है जिनकी जांच रक्षा के लिए यह जांच की जानी है. हम जोर देकर कहना चाहते हैं कि इस तरह के जांच आयोग और इसकी कार्यवाही कदाचित विश्वसनीय नहीं होगी.”
“हम इस्लामाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, इस्लामाबाद बार एसोसिएशन, सिंध हाई कोर्ट बार एसोसिएशन, पाकिस्तान बार काउंसिल, खैबर पख्तूनख्वा बार काउंसिल और बलूचिस्तान बार काउंसिल द्वारा पारित प्रस्तावों का उस हद तक समर्थन करते हैं, जहां तक वे न्यायपालिका की स्वतंत्रता के सिद्धांत को बनाए रखने का संकल्प लेते हैं. हम इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के छह न्यायाधीशों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हैं, उनकी साहसी कार्रवाई की सराहना करते हैं और ऐसे सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए उचित कार्रवाई की मांग करते हैं.”
छह वर्तमान न्यायाधीशों के पत्र में प्रत्येक न्यायाधीश द्वारा साझा किए गए चौंकाने वाले विवरण हैं. इसमें बताया गया है कि कैसे उन्हें उत्पीड़न, धमकी, यातना और अवैध निगरानी का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा खुफिया एजेंसियों के संचालक सीधे संपर्क कर न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप भी करते हैं.
जाहिर तौर पर, ऐसा लगता है कि न्यायपालिका सैन्य प्रतिष्ठान के शक्तिशाली प्रभाव के सामने झुकने को तैयार नहीं है और कानूनी तौर पर लड़ने की तैयारी में है.
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एकेजे/