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भागलपुर, 5 नवंबर . बिहार के भागलपुर जिले के नौगछिया अनुमंडल स्थित बिहपुर प्रखंड के अमरपुर गांव निवासी संजय चौधरी पूरे देश में ‘हनी मैन’ के नाम से प्रसिद्ध हैं. कभी महज 50 हजार रुपए के लोन से मधुमक्खी पालन शुरू करने वाले संजय चौधरी आज सालाना करीब 6 करोड़ रुपए की कमाई कर रहे हैं और लगभग 30 लोगों को रोजगार दे रहे हैं.
संजय चौधरी के घर रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ पहुंचे और उन्होंने खुद उनके द्वारा उत्पादित ऑर्गेनिक शहद का स्वाद चखा. मंत्री ने कहा कि संजय चौधरी आत्मनिर्भर India की सच्ची मिसाल हैं. वे आज देश के नंबर-1 मधु उत्पादक बन चुके हैं. यह सफलता Prime Minister Narendra Modi और Chief Minister नीतीश कुमार की कृषि-केंद्रित नीतियों का परिणाम है.
संजय चौधरी ने से बातचीत में बताया कि उन्हें शहद उत्पादन की प्रेरणा बिहार Government के कार्यक्रम ‘कृषि वैज्ञानिक आपके द्वार’ से मिली. उसी समय उन्होंने किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के तहत 50 हजार रुपए का लोन लिया और 50 बॉक्स खरीदकर लीची के बागान में रखे. कुछ ही समय में शहद उत्पादन से अच्छी आमदनी दिखी तो उन्होंने इस क्षेत्र में पूरी तरह उतरने का निर्णय लिया.
उन्होंने बताया कि कृषि वैज्ञानिक रामाशीष सिंह उनके मार्गदर्शक बने और उन्होंने उन्हें यह मंत्र दिया, ‘नौकरी लेने वाला नहीं, नौकरी देने वाला बनो.’ इसके बाद संजय चौधरी ने बिहार कृषि विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डॉ. मेवालाल चौधरी से तकनीकी प्रशिक्षण और आर्थिक सहयोग प्राप्त किया.
सफलता के बाद संजय चौधरी को बिहार के 38 जिलों के कृषि विज्ञान केंद्रों में बतौर मधुमक्खी पालन प्रशिक्षक (ट्रेनर) बुलाया गया. 2008 में जब नीतीश Government ने कृषि रोड मैप शुरू किया, तब उन्हें ‘प्रगतिशील किसान’ के रूप में चयनित किया गया.
उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे हौसला बढ़ता गया. मैंने तकनीक को अपनाया, गुणवत्ता पर ध्यान दिया और लोगों को भी इस क्षेत्र से जोड़ने की कोशिश की. आज मैं न सिर्फ खुद आत्मनिर्भर हूं, बल्कि दर्जनों परिवारों को रोजगार भी दे रहा हूं.
संजय चौधरी ने बताया कि आज बिहार शहद उत्पादन में देश का दूसरा सबसे बड़ा राज्य बन चुका है. उन्होंने कहा कि मधुमक्खी पालन और खेती-बाड़ी एक-दूसरे के पूरक हैं, जिससे किसानों की आमदनी दोगुनी हो सकती है. Prime Minister Narendra Modi ने कहा था कि शहद उत्पादन और मधुमक्खी पालन से ‘विश्वकल्याण’ होता है. यह केवल आय का जरिया नहीं, बल्कि प्रकृति और कृषि दोनों की रक्षा का माध्यम भी है.
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एएसएच/डीकेपी