अध्ययन ने बताया किन बच्चों में अधिक होता है थायरॉयड कैंसर का जोखिम

न्यू यॉर्क, 19 अप्रैल . यूएस की येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने बताया है कि अगर छोटे बच्चों को जीवन की शुरुआती अवस्था में बहुत बारीक धूल के कणों (पीएम 2.5) से भरे प्रदूषण और रात में बाहर की कृत्रिम रोशनी (ओ-एएलएएन) के संपर्क में लाया जाए, तो उन्हें थायरॉइड कैंसर होने का खतरा बढ़ सकता है.

यह रिसर्च ‘एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स’ नामक पत्रिका में छपी है. रिसर्च के अनुसार, हवा में मौजूद छोटे-छोटे कणों और रात में बाहर की कृत्रिम रोशनी के संपर्क में आने से 19 साल तक के बच्चों और युवाओं में पैपिलरी थायरॉइड कैंसर का खतरा बढ़ सकता है.

यह जोखिम विशेष रूप से तब बढ़ता है जब ये बच्चे गर्भावस्था के समय या जन्म के पहले एक साल के भीतर इन चीजों के संपर्क में आते हैं. यह समय ‘पेरिनेटल अवस्था’ कहलाती है.

येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में पर्यावरण स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. निकोल डेजील ने कहा कि यह चिंता की बात है क्योंकि ये दोनों चीजें आजकल बहुत आम हो गई हैं, खासकर शहरों में.

इस शोध में कैलिफोर्निया के 736 ऐसे बच्चों और किशोरों का डेटा लिया गया जिन्हें 20 साल की उम्र से पहले पैपिलरी थायरॉइड कैंसर हुआ था, और उनकी तुलना 36,800 ऐसे लोगों से की गई जिन्हें यह बीमारी नहीं हुई.

शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट और नक्शों की मदद से यह जांचा कि जन्म के समय बच्चे किन क्षेत्रों में रहते थे और वहां प्रदूषण और रात की रोशनी का स्तर कितना था. अध्ययन के सभी प्रतिभागी कैलिफोर्निया से थे.

नतीजों से पता चला कि अगर हवा में बारीक कणों (पीएम2.5) की मात्रा 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर बढ़ जाए, तो थायरॉइड कैंसर का खतरा 7 प्रतिशत तक बढ़ सकता है.

यह असर किशोरों (15–19 वर्ष) और हिस्पैनिक बच्चों में सबसे ज्यादा देखा गया. वहीं, जो बच्चे ऐसे इलाकों में पैदा हुए जहां रात को कृत्रिम रोशनी ज्यादा होती है, उनमें थायरॉइड कैंसर होने की संभावना 23 से 25 प्रतिशत तक ज्यादा पाई गई.

डॉ. डेजील ने कहा कि बच्चों और किशोरों में थायरॉइड कैंसर तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन अभी तक हमें इसके कारणों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है. यह अध्ययन पहला बड़ा प्रयास है जो यह बताता है कि जीवन की शुरुआत में होने वाला प्रदूषण और रात की रोशनी इस बीमारी की वजह हो सकते हैं.

हालांकि शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि इस नतीजे को पक्के तौर पर मानने से पहले और ज्यादा रिसर्च की जरूरत है.

एएस/