लखनऊ, 18 फरवरी . कक्षा 10 की छात्रा प्राजक्ता स्वरूप के मस्तिष्क में खून का थक्का जम गया था. पिछले सप्ताह उसकी एक बड़ी सर्जरी की गई, जिसके कारण नसों में सूजन आ गई थी.
लड़की पूरी रात जागकर अपनी बोर्ड परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी. उसकी मां उसे जागते रहने में मदद करने के लिए गरमागरम कॉफी के कप दे रही थी.
प्राजक्ता एक शाम बेहोश हो गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया. बाद में उसके माता-पिता को उसकी दराज में गोलियों से भरी एक बोतल मिली और जब उन्होंने गोलियां डॉक्टर को सौंपीं, तो वे यह जानकर हैरान रह गए कि उनकी बेटी नींद-रोधी गोलियां ले रही थी.
एक प्रमुख न्यूरोसर्जन डॉ. शरद श्रीवास्तव ने कहा, “हालांकि यह चौंकाने वाला लग सकता है, लेकिन आजकल बड़ी संख्या में छात्र नींद-रोधी गोलियां ले रहे हैं जो उन्हें परीक्षाओं के दौरान जागते रहने में मदद करती हैं. यह बेहद खतरनाक चलन है और बैंकॉक जैसे देशों से ड्रग्स की तस्करी हो रही है. इन दवाओं के खतरनाक दुष्प्रभाव हो सकते हैं, खासकर अगर इन्हें कैफीन की अधिक मात्रा – बहुत अधिक कप कॉफी – के साथ लिया जाए – जैसा कि प्राजक्ता के मामले में हुआ.”
डॉक्टर के मुताबिक, ये दवाएं काउंटरों पर ‘चुनिया’ और ‘मीठी’ जैसे नामों से बेची जा रही हैं.
एक अन्य चिकित्सक ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, “ये मोडाफिनिल के वेरियंट हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये याददाश्त में सुधार करते हैं, और किसी के मूड, सतर्कता और संज्ञानात्मक शक्तियों को बढ़ाते हैं. यह दवा एम्फ़ैटेमिन की तुलना में अधिक सुखद अनुभव देती है और उपयोगकर्ता को लगातार 40 घंटे या उससे अधिक समय तक जागते और सतर्क रहने में सक्षम बनाती है. एक बार जब दवा ख़त्म हो जाती है, तो आपको बस कुछ देर की नींद लेनी होती है.”
एक रसायनज्ञ सुरिंदर कोहली ने स्वीकार किया कि पिछले एक महीने से नींद रोधी गोलियों, याददाश्त बढ़ाने वाली दवाओं की बिक्री में तेजी आई है.
उन्होंने कहा, “ग्राहक इन दवाओं के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं. वे थकान दूर करने के लिए एनर्जी ड्रिंक भी खरीदते हैं.”
प्रोविजिल ब्रांड नाम के तहत बेची जाने वाली मॉडाफिनिल का उपयोग मुख्य रूप से नार्कोलेप्सी, शिफ्ट वर्क स्लीप डिसऑर्डर, इडियोपैथिक हाइपरसोमनिया और ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया से जुड़ी अत्यधिक दिन की नींद जैसे विकारों के उपचार में किया जाता है.
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने एक चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन किया, उन्होंने कहा, “आतंकवादी भी अब युद्ध के घंटों के दौरान जागते रहने के लिए नींद-रोधी दवाओं का उपयोग करते हैं. यह पहली बार 26/11 के हमलों के दौरान पाया गया था कि आतंकवादी बैकपैक में ड्रग्स ले गए थे. हममें से ज्यादातर लोग इन दवाओं के बारे में विस्तार से नहीं जानते हैं और आम लोगों की ओर से अब तक कोई शिकायत नहीं आई है, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ. आर. सक्सेना ने कहा, “बच्चों पर उच्च प्रतिशत स्कोर करने का अत्यधिक दबाव होता है, ताकि उन्हें अच्छे कॉलेजों में दाखिला मिल सके. अगर बच्चों को अपने दोस्तों से आधा प्रतिशत भी कम मिलता है तो वे निराश हो जाते हैं. बोर्ड परीक्षाओं में 98 और 99 फीसदी अंक लाने का दबाव धीरे-धीरे उन्हें खत्म कर रहा है. माता-पिता को इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि इतने उच्च प्रतिशत अवास्तविक हो सकते हैं और हर बच्चा इतना अंक प्राप्त नहीं कर सकता.”
डॉ. सक्सेना ने कहा कि आज की दुनिया में माता-पिता का मार्गदर्शन लगभग न के बराबर है, खासकर ऐसे मामलों में जहां माता-पिता दोनों कामकाजी हों.
उन्होंने कहा, “माता-पिता के पास अपने बच्चे के व्यवहार में बदलाव देखने और उसे सलाह देने या वह जो दबाव महसूस करता है, उसे समझने का समय नहीं है. बच्चे को उसके हाल पर छोड़ दिया जाता है और वह दोस्तों की सलाह पर ये दवाएं लेना शुरू कर देता है.”
प्राजक्ता के माता-पिता अब स्वीकार करते हैं कि उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि उनकी बेटी किस तरह के दबाव का सामना कर रही है. उसके पिता ने कहा, “वह हमें बताती रही कि वह परीक्षाओं में ज्यादा अंक चाहती है, ताकि उसे दिल्ली के एक अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल सके, क्योंकि उसके दोस्त वहीं जाते होंगे.”
इस बीच, शिक्षक लगातार अध्ययन पैटर्न को बनाए नहीं रखने के लिए माता-पिता के साथ-साथ छात्रों को भी दोषी मानते हैं.
इंग्लिश मीडियम गर्ल्स स्कूल की सेवानिवृत्त शिक्षिका पुष्पा डिसूजा ने कहा, “छात्र पूरे साल पढ़ाई नहीं करते. वे कक्षाएं बंक कर देते हैं और माता-पिता अनजान बने रहते हैं. अगर माता-पिता सालभर अपने बच्चों की पढ़ाई के पैटर्न पर नजर रखें तो परीक्षा का तनाव काफी हद तक कम हो जाएगा.
दूसरी ओर, छात्र-छात्राएं माता-पिता को दोषी मानते हैं.
प्राजक्ता की सहपाठी सुनीति ने गुस्से में कहा, “माता-पिता हमें डांटते रहते हैं और हमें शीर्ष अंक प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं. वे हमारी तुलना अपने दोस्तों के बच्चों से करते हैं और कहते हैं कि हम किसी काम के नहीं हैं. ऐसी स्थिति में हम और क्या कर सकते हैं?”
(अनुरोध पर कुछ नाम बदल दिए गए हैं/रोक दिए गए हैं.)
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एसजीके/