गया, 25 जुलाई . सरकार की सोच है कि कृषि की पढ़ाई महज़ किताबों और कक्षाओं में नहीं, बल्कि मैदान (फील्ड) आधारित वास्तविक अनुभवों पर होनी चाहिए. यही कारण है कि कृषि विज्ञान के छात्र स्वयं फसल की बोआई, कटाई और प्रसंकरण का अनुभव प्राप्त करने लगे हैं.
गया स्थित दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) कृषि की शिक्षा को व्यावहारिक बनाने की दिशा में सार्थक प्रयास कर रहा है. विश्वविद्यालय के कृषि विभाग के छात्रों ने स्वयं आगे बढ़कर सीयूएसबी परिसर के कृषि फार्म में धान की रोपाई का उत्सव मनाया. इस मौके पर कुलपति प्रोफेसर कामेश्वर नाथ सिंह ने विश्वविद्यालय के कृषि विभाग के पठन-पाठन पाठ्यक्रम की विशेषताओं को साझा किया.
उन्होंने ‘धान की रोपाई उत्सव’ पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदुस्तान किसान है और किसान हिंदुस्तान है. किसानों की उपेक्षा करके विकसित भारत की कल्पना नहीं की जा सकती है. विभाग के प्राध्यापकों तथा विद्यार्थियों से अपेक्षा है कि वे अपने सार्थक प्रयास से कृषि व्यवसाय को लोकप्रिय एवं रोजगार उन्मुख बनाएं, जिससे विकसित भारत को मूर्त रूप देने में कृषि की भूमिका सिद्ध होगी.
कुलपति ने कहा कि सीयूएसबी का यह प्रयास है कि कृषि की शिक्षा केवल डिग्री के लिए नहीं बल्कि कृषि में उद्यमिता तथा विकास के लिए हो. कैंपस किसानों से जुड़ सके और उनकी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर सके. सीयूएसबी में किया गया कृषि संबंधित शोध और सफल प्रयोग किसानों तक पहुंचे, हम इस दिशा में प्रयासरत हैं. आज समय की यह आवश्यकता है कि किसान और विज्ञान के बीच समन्वय स्थापित हो तभी हम विकसित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति कर सकते हैं.
कृषि विभाग के विद्यार्थियों ने मानसून की बारिश के बाद प्रायोगिक पाठ्यक्रम के तहत धान की रोपाई की.
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एमएनपी/एबीएम