बिहार पुलिस महानिदेशक का सख्त निर्देश, एससी-एसटी मुकदमों में लापरवाही बर्दाश्त नहीं

पटना, 25 मार्च . बिहार के पुलिस महानिदेशक विनय कुमार ने राज्य के सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया है कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के मामलों की जांच में कोई कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी. जिलों के अनुसूचित जाति-जनजाति थानों के साथ ही सामान्य थानों में इस अधिनियम के तहत दर्ज मामलों का अनुसंधान 60 दिनों में पूर्ण किया जाए.

पुलिस महानिदेशक ने मंगलवार को पुलिस मुख्यालय में आयोजित अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों से संबंधित एक दिवसीय प्रशिक्षण-सह-संवेदीकरण कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया.

उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत दर्ज मामलों की जांच में लापरवाही बरतने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. इस अधिनियम के तहत दर्ज मामलों को लटकाए रखने वाले जांच अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाएगा.

इस कार्यशाला का आयोजन सीआईडी और बिहार सरकार के अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण विभाग ने संयुक्त रूप से किया. इस अवसर पर बिहार पुलिस के अपराध अनुसंधान विभाग के पुलिस महानिदेशक अमित कुमार जैन समेत राज्य के विभिन्न जिलों में तैनात अनुसूचित जाति-जनजाति थानों के थानाध्यक्षों के साथ वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे.

पुलिस महानिदेशक ने कहा कि एससी, एसटी अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में दोषियों को सजा दिलाने की गति में तेजी लाई जाए. बिहार में हर साल अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत औसतन छह से सात हजार केस दर्ज किए जाते हैं, लेकिन इन मामलों के अभियुक्तों को सजा दिलाने की रफ्तार कम है. पिछले साल यानी वर्ष 2023-24 में दर्ज मामलों में सजा दिलाने का औसत 10 प्रतिशत से भी कम रहा है.

उन्होंने कहा कि बिहार देश का पहला राज्य है, जहां सभी 40 पुलिस जिलों में अनुसूचित जाति-जनजाति थाने कार्यरत हैं. जबकि देश के विभिन्न राज्यों के महज 140 जिलों में ही अनुसूचित जाति-जनजाति थाने कार्यरत हैं.

उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि बिहार में अनुसूचित जाति-जनजाति थानों की संख्या अधिक होने के कारण यहां दर्ज होने वाले मामलों की संख्या भी देश के अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है. यहां इस अधिनियम के तहत कई फर्जी मामले भी दर्ज कराए जाते हैं.

एमएनपी/एबीएम