कुरुक्षेत्र, 24 अक्टूबर . हरियाणा का कुरुक्षेत्र पराली प्रबंधन में फिसड्डी साबित हो रहा है. पराली जलाने के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. कृषि विभाग के आला अधिकारियों ने कहा कि वो लगातार पराली जलाने वाले किसानों को चिह्नित कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की रूपरेखा तैयार कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, “धान के अवशेषों के प्रबंधन को लेकर हालिया अपडेट काफी महत्वपूर्ण हैं. पिछले साल के मुकाबले इस साल किसानों द्वारा अवशेष जलाने की घटनाओं में लगभग 49 फीसद की कमी आई है, जो व्यापक कार्य योजना का परिणाम है. विभिन्न जिलों में पराली प्रबंधन पर जो काम किया गया है, उसका असर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है.”
उन्होंने आगे कहा, “अब तक 93 स्थानों से रिपोर्ट मिली हैं, जिनमें से 62 स्थानों पर कार्रवाई की गई है. ये सभी मामले अलग-अलग किसान और स्थानीय निवासियों द्वारा रिपोर्ट किए गए थे. इसके अलावा, कुछ मामलों में मैन्युअल सूचना भी प्राप्त हुई थी. कुल 62 मामलों में पुलिस ने कार्रवाई की है, और इनमें से कितने गिरफ्तार हुए हैं, इसकी जानकारी पुलिस विभाग से मिल सकेगी.”
उन्होंने बताया कि बुधवार को भी पांच नई लोकेशन की रिपोर्ट आई थी, जिनमें से दो स्थानों पर धान के अवशेष जलाए जाने का मामला सामने आया. इन मामलों में तत्काल कार्रवाई की गई है.
उन्होंने बताया कि पराली प्रबंधन के तहत सरकार ने प्रति एकड़ 1,000 रुपये की सहायता भी दी है, जिससे किसानों को प्रोत्साहित किया जा सके कि वे अवशेष न जलाएं. ऐसा करने से पर्यावरण में सुधार होगा और आम जनमानस को भी स्वस्थ वातावरण मिलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में सख्ती दिखाई है और कई अधिकारियों पर कार्रवाई की गई है.
उन्होंने कहा, “हरियाणा के 12-13 जिलों में अवशेष जलाने की घटनाएं अधिक होती हैं, और इस संबंध में 24 अधिकारियों को निलंबित किया गया है. इसके अलावा, इस मुद्दे की गंभीरता को देखते हुए विभिन्न ब्लॉकों में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की गई है, ताकि स्थिति पर लगातार नजर रखी जा सके.”
उन्होंने कहा, “हाल ही में कुछ स्थानों पर आग लगने की घटनाएं भी हुई हैं और अधिकारियों ने उन पर त्वरित कार्रवाई की है. जब भी बड़ी आग लगने की घटनाएं होती हैं, तो उन्हें तुरंत ट्रेस किया जाता है और रिपोर्ट किया जाता है. इस प्रकार की गतिविधियों के प्रबंधन के लिए हर स्तर पर प्रयास जारी हैं, ताकि भविष्य में ऐसे मामलों की संख्या को और कम किया जा सके. इस तरह के ठोस कदम उठाने से यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि कृषि और पर्यावरण दोनों की सुरक्षा हो सके.”
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एसएचके/एकेजे