कोलकाता से शुरू हुई थी ‘एक रुपये के सिक्के’ की कहानी

New Delhi, 18 अगस्त . आज के डिजिटल युग में जब हम महज एक क्लिक में यूपीआई से पेमेंट कर देते हैं, तो शायद ही कोई सोचता हो कि कभी भारत में लेन-देन पूरी तरह सिक्कों और नोटों पर टिका था. लेकिन, क्या आपको पता है कि भारत में पहला ‘एक रुपये का सिक्का’ कब बना था? यह कहानी है 19 अगस्त 1757 की, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोलकाता की टकसाल में पहला एक रुपये का सिक्का जारी किया था.

साल 1757 भारतीय इतिहास का निर्णायक मोड़ था. इसी साल प्लासी का युद्ध हुआ, जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराकर बंगाल पर अपनी पकड़ बना ली. इसके बाद कंपनी ने नवाब से एक संधि की, जिसके तहत उन्हें सिक्के ढालने का अधिकार मिल गया, और उसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए 19 अगस्त को पहली बार भारत में एक रुपये का सिक्का सामने आया.

इस सिक्के पर ब्रिटिश सम्राट विलियम 4 की तस्वीर छपी. बाद में, 1857 की क्रांति के बाद जब भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से छिनकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों में गया, तब सिक्कों पर ब्रिटिश मोनार्क की छवि छपने लगी. इस तरह सिक्के न सिर्फ लेन-देन का जरिया बने, बल्कि सत्ता और ताकत का प्रतीक भी.

हालांकि, ईस्ट इंडिया कंपनी इससे पहले भी सूरत, बॉम्बे और Ahmedabad में टकसालें स्थापित कर चुकी थी. लेकिन, एक रुपये का पहला सिक्का विशेष रूप से कोलकाता की टकसाल से ही ढाला गया और फिर इसे बंगाल के मुगल प्रांत में चलाया गया. 1914 से 1918 के बीच, यानी पहले विश्व युद्ध के दौरान, चांदी की भारी कमी हुई. तब सिक्कों की जगह कागज के नोट लाए गए. फिर भी, कंपनी के सिक्के 1950 तक भारत में चलते रहे.

भारत जब 1947 में आजाद हुआ, तब भी ये ही सिक्के चलन में थे. लेकिन 1950 में स्वतंत्र भारत का पहला सिक्का जारी हुआ, जिस पर अशोक स्तंभ के सिंह शीर्ष की छवि थी. आज की पीढ़ी शायद ‘आना’ शब्द से अनजान हो, लेकिन आजादी के शुरुआती दशकों में ‘आना सिस्टम’ प्रचलित था. 1 रुपये में 16 आना और 1 आना में 4 पैसे होते थे. यानी उस दौर में आधा आना, 2 आना और 4 आना जैसे सिक्के खूब चलते थे.

पीएसके/केआर