बड़े युद्ध की आहट! क्यों इजरायल-हिजबुल्लाह संघर्ष से डरी है दुनिया

नई दिल्ली, 19 सितंबर . मध्य पूर्व में जारी दो बड़े संघर्षों ने पूरे विश्व को चिंता में डाल दिया है. इजरायल एक साथ हिजबुल्लाह और हमास के साथ युद्ध में उलझा हुआ है. कई विश्लेषक और नेताओं ने चेतावनी दी है कि अगर शांति नहीं स्थापित हुई तो और देश भी इस संघर्ष में उलझ सकते हैं और यह संकट पूरे मध्य पूर्व को अपनी चपेट में ले सकता है. फिलहाल जो हालात हैं वे ज्यादा उम्मीद नहीं बांधते हैं.

लेबनान में इजरायल के हवाई हमले जारी हैं. हिजबुल्लाह के साथ संघर्ष में भी इजरायल वहीं भाषा बोल रहा है जो हमास के साथ लड़ाई में बोलता रहा है. इस बार भी उसका कहना है कि हिजबुल्लाह के खात्मे तक उसकी कार्रवाई जारी रहेगी. हालांकि करीब साल भर के मिलिट्री ऑपरेशन के बाद वह गाजा में हमास को खत्म नहीं कर पाया है.

यहूदी राष्ट्र ने गुरुवार को इस बात से इनकार किया कि वह लेबनानी सशस्त्र समूह हिजबुल्लाह और लेबनानी राजनीतिक दलों के साथ युद्धविराम पर सहमत हो गया है. बता दें अमेरिका और सहयोगी देशों ने 21 दिनों के युद्धविराम की अपील की थी.

इससे पहले बुधवार को सुरक्षा परिषद की एक बैठक को सम्बोधित करते हुए यूएन चीफ एंटोनियो गुटेरस ने भी संकट के क्षेत्रीय रूप धारण कर लेने के खिलाफ आगाह किया. उन्होंने कहा, “लेबनान में आफत का तूफान मचा है. इजरायल और लेबनान को अलग करने वाली सीमा रेखा ‘ब्लू लाइन’ पर गोलाबारी हो रही है, जिसका दायरा व तीव्रता बढ़ती जा रही है.”

आखिर संघर्ष के बड़े स्तर पर फैल जाने का खतरा क्यों बना हुआ है? इसे समझने के लिए हमें मध्य पूर्व देशों की राजीनीतिक पेचीदगियों को समझना होगा.

इजरायल और अरब देशों के संबंध एतिहासिक रूप से तनावपूर्ण रह हैं जिसके चलते यह क्षेत्र कई युद्धों को झेल चुका है. फिर यहूदी राष्ट्र हिजबुल्लाह और हमास के साथ उलझा हुआ है. इन दोनों को ईरान का खुला समर्थन हासिल है. विशेषकर हिजबुल्लाह की स्थापना ईरान का अहम रोल रहा है. ऐसा माना जाता रहा है कि हिजबुल्लाह लेबनानी आर्मी से भी ज्यादा ताकतवर है और उसके शक्तिशाली और आधुनिक हथियारों की कोई कम नहीं है.

हालांकि अभी तक ईरान की इजरायल के लेबनान में मिलिट्री एक्शन पर कोई तीखी प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की है. इसकी वजह ईरान की नवर्निवाचित राष्ट्रपति को पेजेशकियन को माना जा रहा है कि जिन्होंने इस पूरे मसले पर अपना रुख काफी नरम रखा है. लेकिन कब तक वह नरम रुख पर टिके रहते हैं यह देखने वाली बात होगी. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है ईरान के कट्टरपंथी रूढ़िवादियों को उनका यह समझौतावादी रुख पसंद नहीं आ रहा है. अगर हिजबुल्लाह के खिलाफ इजरायल अपना अभियान बढ़ता है तो ईरान चुप्प बैठे रहना मुश्किल होगा.

गृहयुद्ध में उलझे सीरिया तक भी इस संकट की आंच पहुंचती दिख रही है. ऐसी खबरें हैं कि गुरुवार को सीरिया-लेबनान बॉर्डर पर इजरायल ने हवाई हमला किया जिसमें 8 लोग घायल हो गए हैं. वैसे यहूदी राष्ट्र अक्सर सीरिया में एयर स्ट्राइक को अंजाम देता है. उसका दावा है कि ऐसा वह यह कार्रवाई हिजबुल्लाह के खिलाफ करता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लेबनान में इजरायली मिलिट्री एक्शन के बाद बड़ी संख्या में लोग सीरिया की तरफ पलायन कर रहे हैं.

इस बीच इराकी शिया मिलिशिया कताइब हिजबुल्लाह के एक बयान के बाद यह आशंका उभर आई है कि क्या इराक और इजरायल के बीच भी संघर्ष शुरू हो सकता है. दरअसल कताइब हिजबुल्लाह ने धमकी दी कि अगर इजरायल ने इराक पर हमला किया तो वह देश में मौजूद अमेरिकी सेना पर हमला करेगा. मिलिशिया का दावा है कि इराकी एयर स्पेस में अमेरिका और इजरायल की तेज गतिविधियां देखी जा रही हैं. ये ‘इराक के खिलाफ जायोनी (इजरायली) हमले की संभावना’ का संकेत देती हैं.

वहीं मध्य पूर्व के अन्य देशों में जनता की हमदर्दी हिजबुल्लाह और विशेष रूप से हमास के साथ है. अरब देशों की सरकारों पर लगातार इजरायल के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का दबाव वहीं की जनता की ओर से बना हुआ है.

हाल ही में सऊदी क्राउन प्रिंस और प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन सलमान अल ने कहा कि ‘पूर्वी येरूशलेम’ राजधानी वाले एक ‘स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य’ के गठन के बिना सऊदी अरब इजरायल के साथ राजनयिक संबंध स्थापित नहीं करेगा. क्या क्राउन प्रिंस का ये बयान जनता के इजरायल के प्रति कठोर रुख अपनाने के दवाब की वजह से आया है? क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में ये दोनों मुल्क संबंधों को समान्य बनाने की कोशिश कर रहे थे.

इस पूरे संकट में अमेरिका और पश्चिम की भूमिका भी सवालों के घेरे में है. अमेरिका जहां एक तरफ शांति की अपील जारी कर रहा है. वहीं दूसरी तरफ उसका इजरायल को भी वह खुलकर समर्थन देता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इजरायल ने गुरुवार को कहा कि उसे अपने चल रहे सैन्य प्रयासों का समर्थन करने और क्षेत्र में सैन्य बढ़त बनाए रखने के लिए अमेरिका से 8.7 बिलियन डॉलर का सहायता पैकेज मिला है.

पश्चिम की संदेहास्पद भूमिका इस संकट को और भी पेचीदा बनी रही है. वह उन कॉन्सपीरिएसी थ्योरी को बल दे रही है कि पश्चिम संकटग्रस्त मध्य पूर्व में ही अपना फायदा देखता है.

एमके/