New Delhi, 26 अगस्त . सोनाली बनर्जी ने 27 अगस्त, 1999 को इतिहास रचते हुए भारत की पहली महिला मरीन इंजीनियर बनने का गौरव हासिल किया. मात्र 22 वर्ष की आयु में, उन्होंने न केवल सामाजिक बाधाओं को तोड़ा, बल्कि पुरुष-प्रधान मरीन इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपनी जगह बनाई.
इलाहाबाद में जन्मीं सोनाली को बचपन से ही समुद्र और जहाजों की दुनिया बहुत आकर्षित करती थी. उनके चाचा नौसेना में थे. वे उनकी प्रेरणा बने. उनकी रोमांचक कहानियों ने सोनाली के मन में समुद्री यात्राओं का सपना जगाया, जिसे उन्होंने कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से पूरा किया.
सोनाली ने 1995 में कोलकाता के तरातला स्थित मरीन इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (एमईआरआई) में प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की. यह पहली बार था जब किसी महिला ने इस संस्थान में दाखिला लिया और प्रशासन के सामने आवास की समस्या खड़ी हो गई. तब संस्थान में कोई महिला हॉस्टल नहीं था और पूरे परिसर में कोई महिला कर्मचारी भी नहीं थी. लंबे विचार-विमर्श के बाद, सोनाली को शिक्षकों के लिए निर्धारित खाली क्वार्टर में रहने की जगह दी गई. 1500 कैडेट्स में वह अकेली महिला थीं, और उन्हें पुरुष-प्रधान माहौल में अपनी योग्यता साबित करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ी.
सोनाली ने हर सेमेस्टर में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और 1999 में अपनी बी.ई. डिग्री पूरी की. इसके बाद, उन्हें छह महीने के प्री-सी प्रशिक्षण के लिए मोबिल शिपिंग कंपनी ने चुना. यह प्रशिक्षण उनके लिए चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि कोई भी शिपिंग कंपनी शुरू में उन्हें प्रशिक्षु के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं थी. फिर भी, सोनाली ने हार नहीं मानी और श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, थाईलैंड, हॉन्गकॉन्ग, फिजी और खाड़ी देशों के बंदरगाहों को छूते हुए प्रशिक्षण पूरा किया. 26 अगस्त, 2001 को, उन्होंने मोबिल शिपिंग कंपनी के जहाज के मशीन रूम की जिम्मेदारी संभालकर इतिहास रच दिया.
सोनाली की इस उपलब्धि ने भारत के समुद्री उद्योग में एक नया अध्याय जोड़ा. उन्होंने न केवल अपने लिए, बल्कि अन्य महिलाओं के लिए भी इस क्षेत्र में अवसर खोले. उनकी सफलता ने कई युवतियों को प्रेरित किया कि वे अपने सपनों को साकार करने के लिए सामाजिक रूढ़ियों को चुनौती दें.
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एससीएच/एएस