सितारा देवी : वो आग जो कथक की मशाल बनी, आज भी उनका कोई सानी नहीं

Mumbai , 24 नवंबर . सितारा देवी को लोग ‘कथक की रानी’ कहते थे, जिन्हें रवीन्द्रनाथ टैगोर ने आठ साल की उम्र में ‘नृत्य सम्राज्ञी’ की उपाधि दी थी. उन्होंने 94 साल की उम्र तक मंच पर घुंघरू बांधे और कभी भी अपनी कला को नहीं छोड़ा.

8 नवंबर 1920 को कोलकाता के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मीं सितारा (असली नाम धनलक्ष्मी) का बचपन ही नृत्य में डूबा हुआ था. उनके पिता सुकदेव महाराज खुद कथक गुरु थे और मां मथुरा देवी पारंपरिक नृत्य की जानकार. उस जमाने में जब अच्छे घर की लड़कियां नाचना तो दूर, उसका नाम लेना भी पाप समझती थीं, सितारा ने मात्र 10 साल की उम्र में पहला पेशेवर प्रदर्शन किया.

12 साल की उम्र तक वे बंबई (तब का नाम) आ चुकी थीं और 16 साल की उम्र में ‘नागिन’ फिल्म में पहली बार परदे पर नृत्य किया.

सितारा देवी का नाम आते ही आंखों के सामने जो तस्वीर उभरती है, वो है- लाल-पीली साड़ी, भारी गहने, आंखों में काजल की तेज रेखा और घुंघरू की वो झंकार जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती थी. उन्होंने कथक को केवल शास्त्रीय नृत्य नहीं रहने दिया, उसमें ठुमरी, दादरा, कजरी, और होरी सब कुछ समा दिया. उनका नृत्य ऐसा था कि लोग कहते थे, ‘जैसे बिजली कड़कती है.’

उन्होंने 100 से ज्यादा फिल्मों में नृत्य किया. ‘मदर इंडिया’, ‘अनजाना’, और ‘हरे राम हरे कृष्ण’ जैसी फिल्मों में उनके नृत्य आज भी देखे जाते हैं. लेकिन फिल्मों को उन्होंने कभी अपना अंतिम लक्ष्य नहीं बनाया. जब 1967 में India Government ने उन्हें ‘पद्मश्री’ देने का ऐलान किया तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया. बाद में 1973 में उन्हें पद्मश्री मिला, लेकिन उन्होंने उसे लेने से फिर इनकार कर दिया.

उनकी जिंदगी जितनी रंगीन थी, उतनी ही बेबाक. उन्होंने तीन शादियां कीं. पहली नजर के प्यार में डायरेक्टर किदार शर्मा से, फिर प्रोड्यूसर नजीर अहमद से और अंत में अपने शिष्य प्रताप बर्वे से. हर बार समाज ने उंगली उठाई, हर बार सितारा ने अपनी कला से जवाब दिया.

सितारा 94 साल की उम्र में भी मंच पर 45 मिनट तक लगातार नाचती थीं. उनकी आखिरी परफॉर्मेंस 2013 में Mumbai के शनमुखानंद हॉल में हुई थी.

25 नवंबर 2014 को 94 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी नृत्य कला आज भी लाखों दिलों में बसती है. सितारा चली गईं, लेकिन उनके घुंघरू आज भी गूंजते हैं.

एससीएच/एबीएम