उत्तरकाशी, 12 अप्रैल . चारधाम यात्रा मार्ग से जुड़ी यमुनोत्री हाईवे की बहुप्रतीक्षित सिलक्यारा-फैलगांव सुरंग अब आर-पार हो चुकी है. इस सुरंग के ब्रेक थ्रू यानी आर-पार होने के बाद अब इसके फिनिशिंग कार्य में लगभग एक से डेढ़ साल का समय लगेगा, जिसके बाद यहां से वाहनों की आवाजाही शुरू हो सकेगी. इससे यमुनोत्री धाम की दूरी करीब 28 किलोमीटर कम हो जाएगी और यात्रा भी आसान व सुरक्षित हो जाएगी.
चारधाम सड़क परियोजना के तहत इस सुरंग का निर्माण कार्य वर्ष 2018 में शुरू हुआ था. उत्तराखंड के ब्रह्मखाल क्षेत्र के पास स्थित इस सुरंग की लंबाई 4.5 किलोमीटर है. पहले इसे वर्ष 2022 तक पूरा करने का लक्ष्य था, लेकिन तकनीकी और प्राकृतिक कारणों से समय-सीमा आगे खिसकती गई. सबसे बड़ा झटका 12 नवंबर 2023 को तब लगा, जब सिलक्यारा मुहाने के पास भूस्खलन हो गया और निर्माण कार्य पूरी तरह से रुक गया. करीब दो से ढाई महीने तक कार्य बंद रहा, जिसके बाद जनवरी 2024 में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने कार्यदायी संस्था एनएचआईडीसीएल को फिर से निर्माण शुरू करने की अनुमति दी.
सुरंग के निर्माण में हाईटेक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है. करीब 150 करोड़ रुपये की लागत से सुरंग में इलेक्ट्रो मैकेनिकल काम किए जाएंगे. इटली से मंगवाया गया फायर सप्रेशन सिस्टम भी लगाया जाएगा, जिसमें तापमान बढ़ने या आग लगने की स्थिति में हजारों नोजल सेंसर की मदद से फुहार छोड़कर आग को नियंत्रित करेंगे. सुरंग के दोनों छोर पर कंट्रोल रूम बनाए जा रहे हैं, जिनसे ट्रैफिक, कैमरे, सेंसर और सुरक्षा तंत्र को नियंत्रित किया जाएगा. स्काडा तकनीक से सुरंग की निगरानी और नियंत्रण की जाएगी.
इस सुरंग के बनने से सिलक्यारा और बड़कोट के बीच सीधा संपर्क स्थापित होगा और यात्रा समय व दूरी में भारी कमी आएगी. परियोजना की कुल लागत 1383.708 करोड़ रुपये है और अब एनएचआईडीसीएल ने अपनी वेबसाइट पर इस परियोजना को जनवरी 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. हालांकि, विभागीय अधिकारियों का कहना है कि कोशिश की जाएगी कि आगामी यात्रा सीजन तक सुरंग को वाहनों के लिए खोल दिया जाए.
एनएचआईडीसीएल के महाप्रबंधक मौ. शादाब इमाम ने सुरंग के आर-पार होने पर खुशी जाहिर की और सभी अधिकारियों व कर्मचारियों को बधाई दी. उन्होंने कहा कि यह सफलता टीमवर्क का परिणाम है और अब हमारा अगला लक्ष्य सुरंग की फिनिशिंग को समयबद्ध तरीके से पूरा करना है, ताकि श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों को इसका जल्द लाभ मिल सके.
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