गंगटोक,10 जुलाई . सिक्किम ने हिमनदीय आपदाओं के लिए 13 सदस्यीय आयोग का गठन किया है. इसका गठन 4 अक्टूबर, 2023 को सिक्किम में हुई विनाशकारी हिमनदीय झील विस्फोट बाढ़ (जीएलओएफ) के मद्देनजर किया गया है.
यह आयोग कोरोंग-कंचनजंगा झील परिसर में एक बहु-झील सुरक्षा संरचना स्थापित करने की महत्वाकांक्षी योजना पर काम कर रहा है, जिसकी अंतिम सिफारिशें इस साल दिसंबर तक प्रस्तुत की जाएंगी. इस संरचना को हिमनदीय झीलों के क्रमिक विनाश को रोकने और जलवायु-जनित आपदाओं के प्रति क्षेत्र की दीर्घकालिक सहनशीलता को बढ़ाने के लिए डिजाइन किया जा रहा है.
India Government के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अखिलेश गुप्ता की अध्यक्षता वाले इस आयोग में 13 सदस्य शामिल हैं. इनमें हिमनद विज्ञानी, जलवायु वैज्ञानिक, आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय संस्थानों के वरिष्ठ अधिकारी और सिक्किम वन विभाग के प्रतिनिधि हैं.
आयोग के सबसे महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों में से एक कोरोंग-कंचनजंगा झील परिसर में प्रस्तावित बहु-झील सुरक्षा प्रणाली है. इस क्षेत्र में कई परस्पर जुड़ी हिमनद झीलें हैं, यह 2023 के हिमनदीय ग्लेशियर (जीएलओएफ) से बुरी तरह प्रभावित हुआ था. इस सुरक्षा संरचना का उद्देश्य भविष्य में, विशेष रूप से भारी हिमनद पिघलने या अत्यधिक वर्षा के दौरान, जल-प्रपातीय दरारों को रोकना है.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रधान निदेशक धीरेन जी. श्रेष्ठ ने समाचार एजेंसी से बातचीत के दौरान कहा, “इस संरचना की संकल्पना केवल एक झील के लिए नहीं, बल्कि झीलों की एक ऐसी प्रणाली के लिए की जा रही है जो संचयी जोखिम पैदा करती है. यदि कोई विफलता ऊपर से शुरू होती है तो वह नीचे की ओर भी फैल सकती है. यह प्रणाली उस श्रृंखला प्रतिक्रिया को बाधित करेगी.”
हिमालय के नाज़ुक पर्यावरण को स्वीकार करते हुए श्रेष्ठ ने जोर देकर कहा कि इस क्षेत्र के लिए पारंपरिक बुनियादी ढांचा उपयुक्त नहीं हो सकता. इसके बजाय, आयोग कम प्रभाव वाली, अनुकूलनशील तकनीकों जैसे सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप, पाइपलाइन और स्वचालित डाटा संग्रह प्रणालियों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. यह उच्च-ऊंचाई वाले इलाकों के लिए बेहतर अनुकूल हैं. इन तकनीकों का उद्देश्य न्यूनतम पारिस्थितिक व्यवधान के साथ जल स्तर को सुरक्षित और स्थायी रूप से नियंत्रित करना है.
आयोग ने उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों का व्यापक क्षेत्रीय दौरा किया है. सदस्यों ने प्रभावित निवासियों, स्थानीय नेताओं और पूर्व पार्षदों से सीधे संपर्क करके जीएलओएफ के सामाजिक-पर्यावरणीय प्रभाव पर प्रत्यक्ष डाटा एकत्र किया. 28 जून को राज्य जल संरक्षण विभाग द्वारा एक प्रमुख हितधारक परामर्श आयोजित किया गया जहां राज्य Government, भारतीय सेना और आईटीबीपी के अधिकारियों ने तकनीकी अवलोकन साझा किए.
इस साल दिसंबर तक प्रस्तुत होने वाली अंतिम रिपोर्ट में जलवायु-जनित हिमनद आपदाओं की वैश्विक समीक्षा, शमन के लिए क्षेत्रीय रणनीतियां, नीतिगत सिफारिशें, विभिन्न हितधारकों के लिए एक भूमिका आधारित ढांचा और स्पष्ट रूप से परिभाषित वित्त पोषण तंत्र शामिल होंगे. श्रेष्ठ ने बताया कि आयोग दीर्घकालिक बुनियादी ढांचे और तैयारी कार्यक्रमों के समर्थन हेतु राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय वित्त पोषण स्रोतों का भी मूल्यांकन कर रहा है.
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एएसएच/जीकेटी