New Delhi, 24 जुलाई . मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में जन्मे श्यामाचरण दुबे भारतीय समाजशास्त्री एवं साहित्यकार थे. उन्हें हमेशा एक कुशल प्रशासक और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के विशेष सलाहकार के रूप में याद किया जाता रहा है. उनकी रचना ‘परंपरा, इतिहास-बोध और संस्कृति’ के लिए उन्हें मूर्तिदेवी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
श्यामाचरण दुबे का जन्म 25 जुलाई 1922 में हुआ था. उनकी माता एक राष्ट्रवादी महिला और पिता ‘कोर्ट ऑफ वॉर्ड्स’ के प्रबंधक थे. दरअसल, ‘कोर्ट ऑफ वॉर्ड्स’ ब्रिटिश शासन काल में भारत में स्थापित की गई एक कानूनी संस्था थी, जिसका उद्देश्य नाबालिग या अक्षम व्यक्तियों की संपत्ति और उनके उत्तराधिकारियों की देखभाल करना था.
श्यामाचरण दुबे जब 7-8 वर्ष के थे, तब उनकी मां का निधन हो गया. इसके बाद पिता के संरक्षण में उन्होंने ज्यादातर समय पढ़ाई में बिताया. साहसिक एवं मानवीय गुणों से संपन्न श्यामाचरण दुबे ने शुरुआत में हिंदी की पत्रिकाओं और पुस्तकों में अपनी रुचि दिखाई और आगे चलकर अंग्रेजी के ग्रंथों तक पहुंचे.
उन्होंने गांव के प्राथमिक विद्यालय से अपनी शुरुआती शिक्षा को प्रारंभ किया था. विद्यालय की कक्षाओं में विद्यार्थियों को टाट-पट्टी पर बैठना पड़ता था. इसके बाद उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से राजनीतिक विज्ञान में प्रथम श्रेणी से ऑनर्स किया. इसके बाद मानव विज्ञान को अपने शोध का विषय चुना और इसमें विशेष रूप से छत्तीसगढ़ की कमार जनजाति को अपने अध्ययन का केंद्र बनाया.
अगर श्यामाचरण दुबे के कार्यक्षेत्र की बात करें तो उन्होंने राष्ट्रीय सामुदायिक संस्थान को अपने प्रयासों से अनुसंधान केंद्र बनाया. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज, शिमला के निदेशक के रूप में भी अपनी क्षमताओं का परिचय दिया और फिर जम्मू विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर नियुक्त हुए. अपने गृह राज्य मध्य प्रदेश में राज्य उच्च शिक्षा अनुदान आयोग के सदस्य रहकर उन्होंने विश्वविद्यालय के स्तर पर पाठ्यक्रमों का आधुनिकीकरण करवाया.
उनकी हिंदी की रचनाओं में मानव और संस्कृति, परंपरा और इतिहास बोध, संस्कृति तथा शिक्षा, समाज और भविष्य, भारतीय ग्राम, संक्रमण की पीड़ा, विकास का समाजशास्त्र, समय और संस्कृति महत्वपूर्ण हैं.
श्यामाचरण दुबे ने हाईस्कूल में पढ़ने के दौरान से ही पत्रिकाओं में लिखना शुरू कर दिया था. इसके कुछ ही सालों बाद वो हंस, विशाल भारत, मॉडर्न रिव्यू जैसे प्रतिष्ठित पत्रों के लिए लेख लिखना शुरू कर दिया. उन्होंने हिंदी में मानव और संस्कृति, परंपरा इतिहास-बोध और संस्कृति, शिक्षा समाज और भविष्य में संक्रमण की पीड़ा आदि रचनाएं की.
अपने शोध कार्य को और अधिक विस्तार देने के लिए उन्होंने अंग्रेजी में इंडियन विलेज लिखी, जिसका कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ. इंडियाज चेंजिंग विलेजेज, मॉडर्नाइजेशन एंड डेवलपमेंट, सर्च फॉर अल्टरनेटिव पैराडाइम्स और इंडियन सोसायटी, उनके द्वारा की गई अंग्रेजी की अन्य रचनाएं हैं. इन सभी में आर्थिक और सामाजिक विकास का गंभीर अध्ययन किया गया है.
‘परंपरा, इतिहास-बोध और संस्कृति’ के लिए श्यामाचरण दुबे को भारतीय ज्ञानपीठ (भारत का एक प्रमुख साहित्यिक और शोध संगठन) ने मूर्तिदेवी पुरस्कार से सम्मानित किया.
4 फरवरी, 1996 को श्यामाचरण दुबे का स्वर्गवास हो गया.
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