Odisha, 20 सितंबर . India की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर में Odisha का एक विशेष स्थान है. यहां के मंदिर, तीर्थ और धार्मिक मान्यताएं न केवल हिंदुओं की आस्था का केंद्र हैं बल्कि पौराणिक कथाओं से भी गहराई से जुड़ी हुई हैं. खासकर पितृ तर्पण और श्राद्ध अनुष्ठानों के संदर्भ में Odisha के कई स्थल अत्यंत पवित्र माने जाते हैं. जाजपुर, पुरी और भुवनेश्वर ऐसे ही प्रमुख स्थान हैं जहां हर साल हजारों श्रद्धालु अपने पितरों की शांति और मोक्ष के लिए अनुष्ठान करते हैं.
Odisha का जाजपुर जिला पितृ तर्पण और श्राद्ध के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है. इसे नाभि गया भी कहा जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, गयासुर भगवान विष्णु का परम भक्त था. उसने वर्षों तक तपस्या कर यह वरदान पाया कि उसका शरीर इतना पवित्र हो जाए कि जो भी उसके दर्शन करेगा, उसे तुरंत मोक्ष मिल जाएगा. वरदान के प्रभाव से गयासुर ने अपने शरीर को विशाल बना लिया ताकि समस्त मानव जाति को मुक्ति मिल सके. किंतु उसके इस वरदान से इंद्र भयभीत हो गए और उन्होंने त्रिमूर्तियों ब्रह्मा, विष्णु और महेश से सहायता मांगी.
त्रिमूर्तियां ब्राह्मणों का रूप धारण कर गयासुर के पास पहुंचे और उससे यज्ञ के लिए भूमि मांगी. उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर कोई भी स्थान पवित्र नहीं है, इसलिए उसका शरीर ही सर्वोत्तम भूमि हो सकता है. गयासुर सहमत हो गया और सात दिनों तक यज्ञ के लिए अपने शरीर को समर्पित कर दिया. उसने शरीर को इतना फैलाया कि उसका सिर गया (बिहार), नाभि जाजपुर (Odisha) और पैर पीठापुरम (आंध्र प्रदेश) तक पहुंच गए.
यज्ञ के अंतिम दिन शिव ने मुर्गे का रूप लेकर आधी रात को बांग दी. गयासुर इसे प्रातः समझकर उठ गया और यज्ञ अपूर्ण रह गया. अपनी भूल पर पश्चाताप करते हुए उसने क्षमा मांगी. तब त्रिमूर्तियों ने आशीर्वाद दिया कि उसके कारण ये तीनों स्थल सदा पवित्र रहेंगे. यही कारण है कि गया, जाजपुर और पीठापुरम आज भी पितृ तर्पण और शक्ति पीठ के रूप में पूजनीय हैं.
जाजपुर का बिरजा मंदिर, जिसे गिरिजा शक्तिपीठ भी कहा जाता है, यहां का प्रमुख तीर्थ स्थल है. इस मंदिर में स्थित गहरे कुएं में पिंड अर्पित किए जाते हैं. मान्यता है कि इस कुएं में चाहे जितना भी अर्पण किया जाए, वह धीरे-धीरे अदृश्य हो जाता है, जो पितरों तक पहुंचने का प्रतीक माना जाता है.
चार धामों में से एक पुरी भी पितृ तर्पण के लिए महत्वपूर्ण स्थान है. जगन्नाथ मंदिर के कारण यह विश्वप्रसिद्ध है, लेकिन पितृ पक्ष में यहां पिंडदान का विशेष महत्व है. आश्विन मास में हजारों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं और महानदी व भार्गवी नदी के संगम स्थल पर श्राद्ध कर्म करते हैं.
पौराणिक मान्यता है कि इस संगम पर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है. यही कारण है कि पितृ पक्ष के दौरान पुरी आस्था और श्रद्धा का अद्भुत संगम बन जाता है. यहां किए गए तर्पण से आत्मा को शांति और मुक्ति का मार्ग मिलता है.
Odisha की राजधानी भुवनेश्वर को उत्कल-वाराणसी और गुप्त काशी कहा जाता है. यहां काशी की तरह असंख्य शिव मंदिर हैं. धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि भुवनेश्वर में श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों को वही फल मिलता है जो वाराणसी में मिलता है. यही कारण है कि यहां भी बड़ी संख्या में लोग पितृ पक्ष में अनुष्ठान करने आते हैं.
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पीआईएम/डीएससी