महाराष्ट्र में उलेमाओं द्वारा महाविकास आघाड़ी (MVA) सरकार से की गई विशेष मांगों ने राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में हलचल मचा दी है. यह मांगें न केवल अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की ओर इशारा करती हैं बल्कि यह भी दिखाती हैं कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनावी लाभ के लिए समुदाय विशेष को प्राथमिकता देने की परंपरा का एक नया रूप सामने आ रहा है. MVA में शामिल कांग्रेस पर पहले भी तुष्टीकरण की राजनीति करने के आरोप लगते रहे हैं, और उलेमाओं की इन मांगों को कांग्रेस के समर्थन से जोड़कर देखा जा रहा है.
कांग्रेस का अल्पसंख्यकों के प्रति झुकाव
कांग्रेस का अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति झुकाव कोई नया नहीं है. खिलाफत आंदोलन का समर्थन हो या भारत विभाजन के दौरान हिंदू-मुस्लिम संतुलन को नजरअंदाज करना, कांग्रेस की नीति ने हमेशा अल्पसंख्यक समुदाय को प्राथमिकता दी है. विभाजन के समय महात्मा गांधी के द्वारा पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदू शरणार्थियों को मस्जिदों में शरण न लेने की बात कहने से लेकर पंडित नेहरू द्वारा कश्मीर का नियंत्रण शेख अब्दुल्ला को सौंपना, ये सब घटनाएं कांग्रेस के रुख को स्पष्ट करती हैं. स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस ने मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को भी विशेष अधिकार प्रदान किए, जिससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने की पहल हुई.
तुष्टीकरण की राजनीति और शाहबानो प्रकरण
1985 के शाहबानो प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था, लेकिन राजीव गांधी सरकार ने दबाव में आकर इसे पलट दिया. इसी प्रकार तीन तलाक जैसे मुद्दों पर कांग्रेस का रुख हमेशा से निष्क्रिय रहा है. भाजपा लगातार आरोप लगाती रही है कि कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय के रूढ़िवादी तत्वों के दबाव में उनके अधिकारों की अनदेखी की. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह तक कहा कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है, जो कांग्रेस की अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति को और स्पष्ट करता है.
उलेमाओं की प्रमुख मांगें और कांग्रेस का समर्थन
ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड द्वारा कांग्रेस को समर्थन देने की चर्चा है, जिसके बदले में उन्होंने कांग्रेस से 17 मांगों की सूची दी है. इन मांगों में कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निम्नलिखित हैं:
- वक्फ बोर्ड को 1000 करोड़ का फंड: उलेमाओं ने मांग की है कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड को 1000 करोड़ का फंड दिया जाए, जिससे मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों और धार्मिक स्थलों का विकास हो सके.
- दंगों के मामलों में माफी: उलेमा बोर्ड ने यह मांग की है कि 2012 से 2024 तक जिन मुस्लिम युवाओं पर दंगे के आरोप लगे हैं, उन सभी मामलों को वापस लिया जाए. भाजपा का कहना है कि यह कदम समाज विरोधी तत्वों को प्रोत्साहन देने वाला है और मुस्लिमों के लिए अलग न्याय प्रणाली की ओर इशारा करता है.
- पुलिस भर्ती में प्राथमिकता: उलेमाओं ने मांग की है कि पुलिस भर्ती में मुस्लिम युवाओं को प्राथमिकता दी जाए. यह एक संवेदनशील मुद्दा बन सकता है, क्योंकि पुलिस बल में विशेष समुदाय को प्राथमिकता देने से अन्य समुदायों में असंतोष फैल सकता है.
- मुफ्ती, मौलाना और इमाम को सरकारी कमिटी में शामिल करना: उलेमा बोर्ड ने यह भी मांग की है कि कांग्रेस सरकार बनने पर मुस्लिम मुफ्ती, मौलाना, इमाम और तालीम के जानकारों को सरकारी कमिटी में शामिल किया जाए. इससे उनके समुदाय का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा और नीतियों में उनकी आवाज का महत्व बढ़ेगा.
- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और अन्य हिंदुत्ववादी संगठनों पर प्रतिबंध: उलेमाओं ने कांग्रेस से यह मांग की है कि सत्ता में आने पर RSS और अन्य हिंदुत्ववादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाया जाए. इसके अलावा, कुछ हिंदू संतों को जेल में डालने की मांग भी की गई है, जो एक विवादास्पद विषय बन सकता है.
- इमाम और मुफ्तियों के लिए मासिक वेतन: उलेमा बोर्ड ने मस्जिदों के इमाम और मुफ्तियों को प्रतिमाह ₹15,000 का वेतन देने की मांग भी की है. कांग्रेस की सत्ता में आने पर यह वेतन सरकारी तौर पर दिया जाएगा. इस मांग को तुष्टीकरण की नीति का प्रतीक माना जा रहा है, जिससे अन्य धार्मिक समुदायों में असंतोष फैल सकता है.
भाजपा की प्रतिक्रिया और आलोचना
भाजपा ने कांग्रेस पर तुष्टीकरण की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए इन मांगों की कड़ी आलोचना की है. भाजपा नेताओं का कहना है कि कांग्रेस ने हमेशा ही अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता देकर समाज में एक खाई उत्पन्न की है. भाजपा का मानना है कि इस प्रकार की मांगों को मानकर कांग्रेस समाज में असमानता को बढ़ावा दे रही है और हिंदू समुदाय की भावनाओं का अपमान कर रही है. भाजपा का यह भी कहना है कि धार्मिक समुदायों के आधार पर विशेषाधिकार देना संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, जो समानता और धर्मनिरपेक्षता की बात करता है.
कांग्रेस के सामने चुनौतियां
उलेमाओं की इन मांगों को मानना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा. इन मांगों को मानकर कांग्रेस को अल्पसंख्यक समुदाय का समर्थन तो मिल सकता है, लेकिन इससे अन्य समुदायों में नाराजगी पैदा हो सकती है. कांग्रेस के सामने चुनौती यह है कि वह इन मांगों को स्वीकार कर तुष्टीकरण की नीति अपनाती है या सभी समुदायों के साथ समान व्यवहार करती है. महाराष्ट्र के आगामी चुनावों में यह मुद्दा कांग्रेस के लिए एक संवेदनशील और जटिल विषय बन सकता है.
महाराष्ट्र में उलेमाओं द्वारा की गई मांगें और कांग्रेस द्वारा अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति झुकाव ने एक नई बहस छेड़ दी है. तुष्टीकरण की यह राजनीति न केवल सामाजिक समरसता में बाधा उत्पन्न कर सकती है, बल्कि समाज के अन्य समुदायों में असंतोष और विभाजन का कारण भी बन सकती है. भाजपा का कहना है कि कांग्रेस की नीतियों ने हमेशा से समाज में विभाजन किया है, और अल्पसंख्यक समुदाय को विशेषाधिकार देकर असमानता को बढ़ावा दिया है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इन मांगों पर क्या रुख अपनाती है और इसका आगामी चुनावों पर क्या असर पड़ता है.