नई दिल्ली, 4 मार्च . यह मामला तब शुरू हुआ था, जब अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ ने अपने महासचिव शाजी प्रभाकरण को पिछले साल नंवबर में विश्वासघात करने के कारण टर्मिनेट कर दिया था.
यह कल्याण चौबे और शाजी प्रभाकरन की जोड़ी थी, जिन्होंने एआईएफएफ में एक नया अध्याय लिखाा. चौबे, फुटबॉल के शासी निकाय के अध्यक्ष के रूप में चुने जाने वाले पहले पूर्व खिलाड़ी बने थे.
नई आशा और ढेर सारे वादों के साथ दोनों ने भारतीय फुटबॉल की बेहतरी के लिए काम करना शुरू किया, लेकिन फिर अचानक सब कुछ बिखर गया.
अपनी बर्खास्तगी के बाद प्रभाकरन ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक मामला दायर किया. इसमें उन्होंने आरोप लगाया गया कि उनकी बर्खास्तगी गलत थी.
इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि यह फैसला एआईएफएफ के संविधान और उनके नियुक्ति पत्र के नियमों और शर्तों की अनदेखी करके लिया गया था.
जिसके बाद हाई कोर्ट ने शाजी प्रभाकरन को टर्मिनेट करने के एआईएफएफ के फैसले पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी.
इसके बाद महासंघ प्रमुख पर आरोपों की झड़ी लग गई. सबसे पहले आंध्र प्रदेश फुटबॉल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष गोपालकृष्ण कोसाराजू ने धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया.
फिर कानूनी सलाहकार नीलांजन भट्टाचार्य का आरोप आया, जिसके बाद सोमवार को नीलांजन भट्टाचार्य को बर्खास्त कर दिया गया.
हालांकि, इन सबके बीच प्रभाकरन ने चुप्पी बनाए रखना ही बेहतर समझा.
द्वारा संपर्क किए जाने पर, प्रभाकरन शुरू में बोलने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि दिल्ली हाई कोर्ट में उनके द्वारा दायर मामला अभी भी विचाराधीन है.
प्रभाकरन ने से कहा, “उम्मीद है कि आप समझ सकते हैं कि मेरा मामला अदालत में विचाराधीन है. जैसे ही मामला निपट जाएगा, मैं खुलकर सब कुछ बोलूंगा.”
उन्होंने एआईएफएफ के घटनाक्रम पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा, “इसमें कोई शक नहीं, मौजूदा स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है और मैं इन घटनाओं से दुखी हूं.”
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एएमजे/एबीएम